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चिकित्सा के अभाव में गयी छात्रा की जान!

बालूरघाट : चिकित्सा के अभाव में करीब 15 वर्षीय एक छात्रा की जान पर बन आयी है. वह पिछले दो साल से बीमार है और चिकित्सा कराने में उसकी दीदी के घर-बार बिक गये हैं. परिवार के पास अब इतना पैसा नहीं है कि वह उसकी आगे की चिकित्सा करा सकें. यह हाल दक्षिण दिनाजपुर […]

बालूरघाट : चिकित्सा के अभाव में करीब 15 वर्षीय एक छात्रा की जान पर बन आयी है. वह पिछले दो साल से बीमार है और चिकित्सा कराने में उसकी दीदी के घर-बार बिक गये हैं. परिवार के पास अब इतना पैसा नहीं है कि वह उसकी आगे की चिकित्सा करा सकें. यह हाल दक्षिण दिनाजपुर जिले में बालूरघाट थाना अंतर्गत शिवरामपुर गांव की रहने वाली नौवीं कक्षा की छात्रा विलासी बर्मन की है. वह खादिमपुर गर्ल्स हाईस्कूल में पढ़ती थी.
दो साल पहले तक सबकुछ ठीक-ठाक था. वह साइकिल चलाकर बालूरघाट खादिमपुर गर्ल्स हाईस्कूल पढ़ाई के लिए जाती थी. अचानक सबकुछ बदल गया. एक दिन वह बीमार हुई और उसका शरीर फुलने लगा बीमार रहने लगी. परिवार वालों ने स्थानीय डॉक्टरों से उसकी काफी चिकित्सा करायी लेकिन छात्रा विलासी बर्मन ठीक नहीं हुई. इस बीच, उसकी मां सताली बर्मन का भी कैंसर की वजह से मौत हो गई. पिता पहले से ही घर में नहीं रहते थे. पिता कहां है, इसका कोई अता-पता नहीं है. आखिरकार उसकी दीदी शांत्वना बर्मन ने उसकी चिकित्सा की जिम्मेदारी ली. वह अपनी बहन को लेकर अपने घर गोपीनगर आ गयी. उसकी दीदी ने बताया है कि उसे मूल रूप से बुखार लगने और पूरे बदन में तेज दर्द होने की शिकायत है.
वह अब स्कूल नहीं आ-जा सकती. स्कूल तो छुटा ही, उसकी पढ़ाई भी छूट गई है. वह दिनोंदिन कमजोर भी होती जा रही है. पहले बालूरघाट अस्पताल में उसकी चिकित्सा करायी गई. निजी चेंबर में बैठने वाले डॉक्टरों को भी दिखाया गया. फिर भी कोई लाभ नहीं हुआ. वह अपनी बहन की मालदा मेडिकल कॉलेज में भी चिकित्सा करा चुकी है. बहन के इलाज में पूरी जमा पूंजी खत्म हो गई है. घर-वार भी बिक गया है. उसके बाद भी बहन विलासी ठीक नहीं हो पा रही है. उन्होंने आगे कहा कि अब उसे पेन किलर देकर रखा जा रहा है. डॉक्टर हर महीने सात सौ रुपये की दवा देते हैं.
इसी दवा से उसकी बहन किसी तरह से बची हुई है. शांत्वना बर्मन घर-घर जाकर मूड़ी भुजने का काम करती है. उसकी आमदनी इतनी नहीं है कि अपनी बहन की चिकित्सा करा सके. शांत्वना ने कहा कि वह हर कीमत पर अपनी बहन को बचाना चाहती है. लेकिन वह लाचार है. पैसे की कमी से वह अपनी बहन को इलाज के लिए बाहर नहीं ले जा सकती. वह कई बार नेताओं एवं मंत्रियों से मदद की गुहार लगा चुकी है, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ है.

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