सिलीगुड़ी: कहते हैं कि डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप है. लेकिन उत्तर बंगाल मेडिकल कालेज व अस्पताल में लाचारों की कोई जगह नहीं है. उन्हें वहां कोई भगवान नहीं दिख रहा है. यदि मरीज को कोई जानता-पहचानता नहीं है तो उसकी चिकित्सा राम भरोसे ही होगी. अस्पताल के चिकित्सक भी ऐसे हैं कि लावारिस लोगों की सुध तक नहीं लेते.
गुलमा चाय बागान क्षेत्र के रहनेवाले वयोवृद्ध मनोज उरांव पिछले एक महीने से मेडिकल कालेज में कमर के बल सरक कर इधर-उधर घूम रहे हैं. उन्होंने बताया कि पिछले रक्षा-बंधन के दिन वे जंगल से साइकिल पर सूखी लकड़ियां लेकर घर लौट रहे थे. उस समय रिमझिम बारिश हो रही थी. अचानक उनके बायें पैर में झुनझुनाहट शुरू हुई और वे गिर पड़े. उनके पैर में जैसे लकवा मार गया.
उनके उपर साइकिल व लकड़ी गिर जाने से कमर में गंभीर चोट आयी. बाद में गांववालों ने उन्हें अस्पताल में भरती कराया. लेकिन अस्पताल में उसे मुर्दाघर की तरफ भेज दिया गया. वह आज तक उसी जगह में इधर-उधर घूमते रहते हैं. उनका सुधबुध अब तक किसी ने नहीं लिया है, न ही उनका कोई इलाज अब तक हो पाया है. इलाज के लिए वह अस्पताल में भटक रहे हैं. वह चाहते हैं कि कोई उन्हें शरण दें, उनका इलाज करे व उनके रहने की व्यवस्था करा दें.
बता दें कि इस घटना के बाद से उनकी पत्नी भी किसी दूसरे के साथ भाग गयी. वह इस समय एकदम ही अकेले हैं. कोई संतान नहीं होने की वजह से वह अब किसी सहारे की तलाश अपनी जिंदगी की अंतिम घड़ियां गिन रहे हैं. वहीं लखनऊ की वृद्धा बसंती देवी मेडिकल कालेज व अस्पताल में परिसर करीब 10 से 12 महीनों में दर-दर भटक रही है.
वह कहती हैं कि उसे सिलीगुड़ी क्षेत्र में अचानक घूमने के दौरान उल्टी शुरू हुई. उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. पैर में गंभीर चोट लगी. लोगों ने उसे अस्पताल में भरती करा दिया. कुछ दिन तक उनका इलाज चला. लेकिन बाद में उसे ही मुर्दाघर के पास ही भेज दिया गया. वहीं पर रह कर वह लोगों से भीख मांग कर किसी तरह अपना गुजारा करती है. उसने बताया कि करीब एक महीना पहले ठंड की रात में उसके साथ कुछ नशे में आये लोगों ने रेप भी किया. लेकिन लाचार होने की वजह से वह किसी से अपना दुखड़ा नहीं कह सकी. अपने हालात पर वह जिंदगी जीने को मजबूर है. यह हाल केवल इनका ही नहीं है, वहां पर ऐसे कई मरीज है, जो बेबस जिंदगी यहां जीने को मजबूर है. उनकी सुध कोई नहीं ले रहा है. एक स्थानीय चाय दुकानदार ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि मेडिकल कालेज में जो भी लावारिस मरीज आते हैं, उन्हें बाद में सुपर के निर्देश पर अस्पताल के बाहर कर दिया जाता है. इस बाबत सुपर से संपर्क करने की कोशिश की गयी, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया है.