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सिलीगुड़ी : बस ‘थैंक यू’ तक सिमट गयी कश्मेरा की किस्मत

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी तथा इसके आसपास के इलाकों में जहां भी कोई शव दिखे, इसकी जानकारी तत्काल घोषपुकुर के रहने वाले कश्मेरा को दे दी जाती है. वह चाहे आम लोग हों या पुलिस अधिकारी कश्मेरा की मदद के बिना किसी भी लाश को निकाल पाना संभव नहीं होता है. किसी ने फांसी लगा ली […]

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी तथा इसके आसपास के इलाकों में जहां भी कोई शव दिखे, इसकी जानकारी तत्काल घोषपुकुर के रहने वाले कश्मेरा को दे दी जाती है. वह चाहे आम लोग हों या पुलिस अधिकारी कश्मेरा की मदद के बिना किसी भी लाश को निकाल पाना संभव नहीं होता है.
किसी ने फांसी लगा ली हो या फिर कोई डूब कर मर गया हो, लाश निकालने का काम कश्मेरा ही करते हैं. जिस लाश के पास जाने में पुलिस वाले भी कतराते हैं उस लाश को निकालने का काम कश्मेरा करता है. पिछले 28 वर्षों के दौरान कश्मेरा ने 10 हजार से भी अधिक लाशें निकाली है. इस काम के प्रति उसका जुनून और जज्बा ऐसा है कि अधिकांश मामलों में वह अपने पैसे खर्च कर देता है. गाहे-बगाहे पुलिस वाले कभी कुछ पैसे दे देते हैं.
लाश निकालने के मामले में उसे कभी कभार ही पैसे मिलते हैं. हालांकि जिस परिवार के भी किसी मृतक का वह शव निकालता है, परिवार के सदस्य थैंक यू अवश्य कहते हैं. एक तरह से कहा जाये तो कश्मेरा की किस्मत थैंक यू तक में ही सिमट गई है. उसके बाद भी वह अपने इस काम को जारी रखना चाहता है, लेकिन समस्या यह है कि प्रशासन द्वारा उसकी किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं की जा रही है.
उसने प्रशासन ने लाख निकालने के लिए जरूरी स्टेचर, लाइफ जैकेट, रस्सी, हूक, वाटर हेलमेट, पावर ग्लास, हैंड ग्लब्स, कैंची, टेप, प्लास्टिक, डिटौल, डिजिटल कैमरा आदि जैसी सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की थी, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ. वह इन सुविधाओं की मांग को लेकर कई बार सिलीगुड़ी के एसडीओ तथा दार्जिलिंग के जिला अधिकारी को पत्र दे चुका है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है. सिलीगुड़ी के एसडीओ ने तो पूरी तरह से हाथ खड़ा कर दिया है. उन्होंने कश्मेरा को साफ-साफ बता दिया है कि उनके अधिकार में इन तमाम सामानों को उपलब्ध कराना संभव नहीं है.
कश्मेरा ने इन मांगों को लेकर माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी क्षेत्र के विधायक शंकर मालाकार तथा तत्कालीन उत्तर बंगाल विकास मंत्री गौतम देव से भी मुलाकात की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ.
एक विशेष भेंट के दौरान कश्मेरा ने बताया कि सड़क दुर्घटना हो या फिर आत्महत्या का मामला, पुलिस तथा स्थानीय लोग शव को निकालने के लिए उसी को बुलाते हैं. इसके अलावा सिलीगुड़ी तथा इसके आसपास के इलाकों में तीस्ता तथा महानंदा नदी में डूब कर मरने की घटना आम है. कई बार तो तीस्ता कैनल से शव के बांग्लादेश बह जाने की वजह से शव को निकालने के लिए उन्हें बांग्लादेश भी जाना पड़ा है.
वह सड़े-गले शव को भी निकाल कर ले आते हैं. कश्मेरा ने बताया कि उनका काम इस प्रकार का है कि वह किसी परिवार से पैसे नहीं मांग सकते. जिस परिवार में किसी की मौत हो जाये, तो वहां पहले ही शोक का माहौल होता है. ऐसे में भला वह पैसे कैसे मांग सकते हैं.
फिर भी कुछ परिवार के लोग ऐसे भी होते हैं जो पैसे देते हैं. अगर कोई पैसा देता है तो वह लेने से इंकार नहीं करते. लेकिन अधिकांश मामलों में परिवार के सदस्य थैंक यू बोल कर रह जाते हैं. कश्मेरा ने आगे बताया कि सिलीगुड़ी तथा इसके आसपास के इलाकों में सिविल डिफेंस की व्यवस्था उतनी अच्छी नहीं है.
लाश निकालने के लिए किसी को प्रशिक्षण नहीं दिया गया है. आलम यह है कि लाश वह निकालते हैं और उसकी क्रेडिट सिविल डिफेंस के लोग ले जाते हैं. उन्होंने सिविल डिफेंस व्यवस्था को और भी उन्नत बनाने की मांग की. कश्मेरा ने कहा कि नक्सलबाड़ी में सिविल डिफेंस का एक कैम्प कार्यालय तो है, लेकिन यहां सिविल डिफेंस के लोग तैनात नहीं हैं.
अधिकांश मौके पर इस कैम्प में सिविल डिफेंस के अधिकारी या कर्मचारी नहीं मिलते. कश्मेरा ने आगे कहा कि वह सरकार के आदमी नहीं हैं, फिर भी सरकार के लिए चौबीस घंटे ड्यूटी करते हैं. रात को भी यदि हाईवे पर कोई सड़क दुर्घटना हो जाये तो पुलिस के बुलाते पर उन्हें शव को निकालने के लिए जाना पड़ता है. जाहिर है, पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को इस मामले पर गौर करना चाहिए.
स्पीड बोट देने की मांग
कश्मेरा ने तीस्ता कैनल में एक स्पीड बोट उपलब्ध कराने की मांग सरकार से की है. उनका कहना है कि यहां अक्सर ही किसी न किसी के डूब कर मर जाने की घटना घटती है. पुलिस को सूचना देने के बाद भी शव को निकालने की कोई कोशिश नहीं की जाती. वह अपनी जान जोखिम में डालकर शव को निकालने जाते हैं. इसमें समय तो अधिक लगता ही है, साथ ही जान का भी खतरा बना रहता है. इसके अलावा शव तत्काल नहीं निकालने की वजह से उसके भंस कर बांग्लादेश चले जाने की आशंका भी बनी रहती है. कई मौके पर इस तरह की घटनाएं हो चुकी है.
ऑटो से चलती है जिंदगी : कश्मेरा की जिंदगी अपने पुराने ऑटो से चलती है. वह ऑटो रिक्शा से माल ढुलाई का काम करते हैं. उनके परिवार में दो बेटे हैं और दोनों की ही शादी हो चुकी है. ऑटो चलाकर ही कश्मेरा अपने तथा अपने परिवार का पालन-पोषण करता है.
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि वह अपने ऑटो को लेकर ही लाश निकालने चला जाता है. जब भी उसे फोन पर कहीं शव के पड़े होने की जानकारी मिलती है, तो वह अपने ऑटो में तेल डालकर निकल पड़ता है. कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि उसने जो भी कमाई की वह तेल डालने में खर्च हो गया.
एम्बुलेंस का हो रहा है बेजा उपयोग
कश्मेरा का कहना है कि यदि कोई मर जाये तो भी उसके शव का सम्मान होना चाहिए. आम तौर पर शव को निकालने के बाद आनन-फानन में उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाता है.
यह एक अमानवीय प्रक्रिया भी है. उन्होंने आगे कहा कि यदि एक एम्बुलेंस उपलब्ध हो तो उसकी बदौलत वह इज्जत के साथ शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजवा सकते हैं. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि कई विधायक और जनप्रतिनिधि अपने-अपने कोटे से अपने इलाके में एम्बुलेंस उपलब्ध करा देते हैं. आम लोगों के नाम पर इन एम्बुलेंस का दुरुपयोग होता है. एम्बुलेंस के जरिये रोगियों को लाने-ले जाने में कमायी की जाती है
लाश निकालने का काम रहेगा जारी: तमाम परेशानियों के बाद भी कश्मेरा शव निकालने के काम को आगे भी जारी रखना चाहते हैं. उनकी बस यही इच्छा है कि एक स्पीड बोट एवं एम्बुलेंस के साथ शव निकालने के लिए आवश्यक जिन सामग्रियों की मांग उन्होंने की है, वह प्रशासन उपलब्ध करा दे. यदि पुलिस तथा सरकार की ओर से मेहनताने के तौर पर आर्थिक सहायता भी मिले तो काफी अच्छा रहेगा.

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