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मालदा एवं दार्जिलिंग ने बढ़ायी ममता बनर्जी की चिंता
मालदा : राज्य में ऐतिहासिक जीत के बाद भी मालदा और दार्जिलिंग जिले की हार तृणमूल के गले नहीं उतर रही है.इस हार ने पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी की चिंता बढ़ा दी है. इन दोनों जिलों के संगठन पर तृणमूल सुप्रीमो अलग से विचार कर रही हैं. इसका संकेत स्वयं उन्होंने ने ही दिया है. […]
मालदा : राज्य में ऐतिहासिक जीत के बाद भी मालदा और दार्जिलिंग जिले की हार तृणमूल के गले नहीं उतर रही है.इस हार ने पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी की चिंता बढ़ा दी है. इन दोनों जिलों के संगठन पर तृणमूल सुप्रीमो अलग से विचार कर रही हैं. इसका संकेत स्वयं उन्होंने ने ही दिया है.
मालदा जिले के 12 विधानसभा सीट व दार्जिलिंग जिले के छह विधानसभा सीटों में से एक पर भी तृणमूल का कब्जा नहीं हो पाया. फलस्वरूप इन दोनों जिलों के संगठन में बड़े फेरबदल का संकेत उन्होंने दिया है. माना जा रहा है कि दोनों जिले खराब परिणाम पार्टी में गुटबाजी की वजह से हुयी है. इस सच्चाई को स्वयं तृणमूल सुप्रीमों ने स्वीकार किया है.दोनों जिलों के जिला नेतृत्व में भारी फेरबदल की संभावना जतायी जा रही है.
पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अगले कुछ ही दिनो में जिला अध्यक्षों को उनके पद से हटाये जाने की संभावना दिख रही है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोआज्जम हुसैन सरकारी नौकरी छोड़कर दक्षिण मालदा केंद्र से खड़े हुए थे. जीतना तो दूर किसी तरह से तीसरा स्थान हासिल कर पाये थे. इसके बाद भी ममता बनर्जी ने उन्हें अवसर दिया.
जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी उनके कंधो पर डाली थी. इस विधानसभा चुनाव में उन्हें मालतीपुर सीट से उम्मीदवार बनाया. इस बार भी वे तीसरे स्थान पर रहे. इसके साथ ही जिला अध्यक्ष के रूप में भी वे विफल साबित हुए हैं. इन्हीं समीकरणों को देखते हुए उन्हें उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त करने की संभावना प्रबल है. जिला अध्यक्ष के लिये कई नाम सामने आ रहे हैं.
अध्यक्ष पद की रेस में पूर्व मंत्री कृष्णेंदु नारायण चौधरी और सावित्री मित्र का नाम सबसे आगे है. विधानसभा चुनाव में इन्हें भी हार का सामना करना पड़ा है. इसके अलावे वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष दुलाल सरकार का नाम भी इस सूची में शामिल है. इधर, कुछ पार्टी नेताओं का दावा है कि इन तीनो में से किसी को भी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा रही है. इनके अनुसार हारे हुए घोड़े को फिर से रेस में नहीं लाया जा सकता. इन्हें जिलाध्यक्ष बनाने से लोगों गलत संदेश जायेगा. नये चेहरे को सामने लाना होगा.
इधर, दार्जिलिंग के जिलाध्यक्ष रंजन सरकार उर्फ राणा को भी उनके पद से हटाया जा सकता है. चुनाव से कुछ ही महीने पहले उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. लेकिन सिलीगुड़ी जैसे महत्वपूर्ण शहर में वे तृणमूल को जमीन मुहैया नहीं करा पाये. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दार्जिलिंग जिलाध्यक्ष की दौड़ में सिलीगुड़ी नगर निगम के विरोधी दल के नेता नांटू पाल का नाम सबसे आगे चल रहा है.
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