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कल नयी पार्टी बनायेंगे हर्क बहादुर, पहाड़ की राजनीति में भूचाल

सिलीगुड़ी: 27 जनवरी के बाद दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र की राजनीति में एक नया भूचाल आने की संभावना दिख रही है. कालिम्पोंग के विधायक तथा गोजमुमो के बागी नेता हर्क बहादुर छेत्री नयी पार्टी का गठन कर रहे हैं. न केवल राजनीतिक पर्यवेक्षकों, बल्कि पहाड़ के आम लोगों की भी 27 जनवरी पर निगाहें टिकी हुई […]

सिलीगुड़ी: 27 जनवरी के बाद दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र की राजनीति में एक नया भूचाल आने की संभावना दिख रही है. कालिम्पोंग के विधायक तथा गोजमुमो के बागी नेता हर्क बहादुर छेत्री नयी पार्टी का गठन कर रहे हैं. न केवल राजनीतिक पर्यवेक्षकों, बल्कि पहाड़ के आम लोगों की भी 27 जनवरी पर निगाहें टिकी हुई हैं. हर्क बहादुर छेत्री कालिम्पोंग में जनसभा कर अपनी नयी पार्टी का ऐलान करेंगे. इस बीच, दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में हर्क बहादुर छेत्री की पार्टी को लेकर आम लोगों में काफी चर्चा चल रही है. काफी लोगों का मानना है कि गोजमुमो के कई नेता हर्क बहादुर छेत्री की नयी पार्टी में शामिल हो सकते हैं.

हालांकि हर्क बहादुर छेत्री अथवा उनके निकटतम सहयोगी इस मामले में कुछ भी खुलकर नहीं बता रहे हैं. हर्क बहादुर छेत्री का कहना है कि पार्टी की घोषणा के साथ ही सभी बातों की जानकारी दे दी जायेगी. इस बीच, हर्क बहादुर छेत्री के इस नये कदम को लेकर गोजमुमो नेताओं की परेशानी काफी बढ़ गयी है. गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरूंग अब तक तृणमूल प्रमुख तथा राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हमलावर रूख से परेशान थे. अब उन्हें कभी अपने ही सहयोगी रहे हर्क बहादुर छेत्री की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दरअसल ममता बनर्जी और हर्क बहादुर छेत्री गुपचुप तरीके से बिमल गुरूंग को कमजोर करने में लगे हुए हैं. यही कारण है कि कालिम्पोंग को अलग जिला एवं मिरिक को अलग महकमा बनाया गया है. कालिम्पोंग तथा मिरिक में अब गोरखालैंड मुद्दा उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा है. कालिम्पोंग के स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना है कि वह लोग अलग जिला पाकर काफी खुश हैं. जाहिर है इस बदली नयी परिस्थिति में बिमल गुरूंग अब नयी रणनीति बनाने में जुट गये हैं. गोजमुमो सूत्रों का कहना है कि पार्टी के लिए हर्क बहादुर छेत्री उतनी बड़ी चुनौती नहीं हैं, जितनी बड़ी चुनौती ममता बनर्जी हैं. यही वजह है कि गोजमुमो ने ममता बनर्जी के खिलाफ हमले तेज करने एवं अलग गोरखालैंड राज्य को एक बार फिर से सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने का निर्णय लिया है.

यही वजह है कि बिमल गुरूंग लगातार ममता बनर्जी के खिलाफ हमला बोल रहे हैं. ममता बनर्जी यहां दो दिन पहले बिमल गुरूंग के गढ़ सिंगमारी में उन्हें चुनौती दी, वहीं बिमल गुरूंग भी ममता बनर्जी को चुनौती देने के लिए सुकना आ गये. राज्य की मुख्यमंत्री रविवार को सुकना में ही रुकी हुई थीं. जिस वन बंगलो में मुख्यमंत्री रुकी हुई थीं उससे कुछ ही दूर बिमल गुरुंग उनके खिलाफ हमला बोल रहे थे. बिमल गुरुंग ने तो ममता बनर्जी को पहाड़ से चुनाव लड़ने तक की चुनौती दे दी है. बिमल गुरुंग का कहना है कि ममता बनर्जी बार-बार दार्जिलिंग आ रही हैं. यदि उन्हें दार्जिलिंग से इतना ही प्यार है तो यहां से विधानसभा चुनाव लड़ कर दिखायें. बिमल गुरुंग का आगे कहना है कि मुख्यमंत्री दार्जिलिंग को स्वीट्जरलैंड बनाने की बात कर रही थीं, लेकिन उन्होंने दार्जिलिंग को मुर्दालैंड बना दिया है. वह विभिन्न जातियों के लिए बोर्ड बनाकर गोरखा जाति को बांटने की कोशिश कर रही हैं. बिमल गुरुंग ने आगे कहा कि दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में तीन विधानसभा सीटें हैं और ममता बनर्जी को जहां से इच्छा हो, चुनाव लड़ें और जीत कर दिखायें.

तीन विधानसभा पर नजर: दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में तीन विधानसभा सीटें हैं. दार्जिलिंग, कालिम्पोंग तथा कर्सियांग विधानसभा सीटों पर अमुमन उन्हीं पार्टियों की जीत होती रही है, जिनका बोलबाला पहाड़ पर रहा है. पहले सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाली गोरामुमो के उम्मीदवारों की सभी सीटों पर जीत होती थी. बिमल गुरुंग के नेतृत्व वाली गोजमुमो के उफान के बाद तीनों सीटों पर वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में गोजमुमो उम्मीदवारों की जीत हुई. ममता बनर्जी हर्क बहादुर छेत्री को सामने रखकर इन तीनों विधानसभा सीटों पर सेंध लगाना चाहती हैं.
क्या है गुरुंग की रणनीति
बिमल गुरुंग के नजदीकी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, गोजमुमो गोरखालैंड के साथ ही गोरखा जाति की पहचान को लेकर एक भावनात्मक मुद्दा बनाना चाहते हैं. अगले कुछ दिनों में बिमल गुरुंग दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में कई जनसभाओं को संबोधित करेंगे. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, वह इस जनसभा में लोगों को यह समझाने की कोशिश करेंगे कि बोर्ड बनाकर ममता बनर्जी गोरखा जाति के लोगों को अलग-अलग जाति में बांट रही हैं. इसके साथ ही अलग गोरखालैंड राज्य निर्माण की मांग को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया जायेगा.

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