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झामुमो में दिखने लगी दरार

सियासत. जॉन बरला को नजरअंदाज कर चाय श्रमिकों का संगठन बनाने की तैयारी उत्तर बंगाल झामुमो के नेता झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर लौटे जलपाईगुड़ी : उत्तर बंगाल झारखंड मुक्ति मोरचा (झामुमो) में दरार पड़नी शुरू हो गयी है. अपने नेता जॉन बारला को दरकिनार कर चाय बागानों में चाय श्रमिक संगठन […]

सियासत. जॉन बरला को नजरअंदाज कर चाय श्रमिकों का संगठन बनाने की तैयारी
उत्तर बंगाल झामुमो के नेता झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर लौटे
जलपाईगुड़ी : उत्तर बंगाल झारखंड मुक्ति मोरचा (झामुमो) में दरार पड़नी शुरू हो गयी है. अपने नेता जॉन बारला को दरकिनार कर चाय बागानों में चाय श्रमिक संगठन बनाने की प्रक्रिया झामुमो ने शुरू कर दी है. आगामी राज्य विधानसभा चुनाव के पहले चाय बागानों में झामुमो को मजबूत करने के इरादे से जॉन बारला के सहयोगियों राजू रारा एवं विधान सरकार के नेतृत्व में कदम उठाया गया है.
झामुमो के उत्तर बंगाल अंचल के नेता झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निवास पर बैठक करके गत मंगलवार को ही जलपाईगुड़ी लौटे हैं. उत्तर बंगाल झामुमो के संयुक्त सचिव विधान सरकार ने बताया कि झामुमो के केंद्रीय नेतृत्व ने दिसंबर के भीतर उत्तर बंगाल के चाय बागानों में चाय श्रमिक संगठन बनाने का साफ निर्देश दिया है. प्राथमिक स्तर पर उत्तर बंग चाय मजदूर यूनियन के नाम पर उत्तर बंगाल के चाय बागानों में श्रमिक संगठन बनाने का विचार किया जा रहा है. चाय बागानों में श्रमिको की मौत भूख व चिकित्सा व्यवस्था के अभाव में हो रही है.
उत्तर बंगाल चाय उद्योग में भुखमरी, चिकित्सा व्यवस्था, बंद चाय बागानों को खोलने, चाय श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी लागू करना व डंकन ग्रुप के चाय बागानों की स्थिति सुधारने आदि की मांगों को लेकर झामुमो अपना चाय श्रमिक संगठन बनाकर नये सिरे से आंदोलन में उतरने की तैयारी कर रहा है.
उल्लेखनीय है कि स्वघोषित झामुमो नेता जॉन बरला बार-बार दावा करते रहे हैं कि पीटीडब्लूयू झामुमो का श्रमिक संगठन है एवं खुद को उस संगठन का अध्यक्ष भी बताते हैं. इस विषय पर विधान साहब ने बताया कि पीटीडब्लूयू वास्तव में आदिवासी विकास परिषद का श्रमिक संगठन है. झामुमो का अभी तक कोई श्रमिक संगठन नहीं है. बल्कि चाय श्रमिक संगठन बनाने की पहल नये सिरे से ली जा रही है.
विधान चक्रवर्ती ने बताया कि डंकन ग्रुप के मसले पर कोलकाता स्थित डंकन के कार्यालय का घेराव व चाय बागन की विभिन्न समस्याओं के राज्य व केंद्र सरकार के पास लेकर हाजिर होने की रणनीति बनायी गयी है. दिसंबर महीने के प्रथम सप्ताह में उत्तर बंगाल झामुमो की बैठक चाय श्रमिक संगठन बनाने के लिए बुलायी जायेगी.
आदिवासी विकास परिषद को तोड़कर जॉन बारला झामुमो में शामिल हुए थे. विगत लोकसभा चुनाव में झामुमो ने भाजपा को समर्थन दिया था तथा उस समय आदिवासी विकास परिसद ने तृणमूल को समर्थन दिया था.
इधर 1 दिसंबर को चाय उद्योग में संयुक्त फोरम द्वारा बुलायी गयी हड़ताल का विरोध जॉन बरला ने किया था. तृणमूल कांग्रेस के जिला अध्यक्ष सौरभ चक्रवर्ती ने वाम दलों के इस बंद को असफल करार दिया था एवं हड़ताल के विरोध में जॉन बारला के तृणमूल के साथ होने का दावा भी किया था.
अन्य राजनीतिक दलों का कहना है कि चाय बागनों में झामुमो का एक अच्छा संगठन था. संयुक्त फोरम के साथ होने के बाद अंत में जॉन बरला ने संयुक्त फोरम का विरोध कैसे किया, यह समझ के परे है एवं इस विषय को लेकर ही झामुमो में दरार शुरू हुई है. यहां तक झामुमो के इस रवैये से चाय श्रमिकों ने भी इस राजनीतिक संगठन पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. झामुमो के अन्य सदस्यों को यह समझ में आ गया है कि अगर आगामी विधान सभा चुनाव में अच्छा परिणाम करना है तो चाय श्रमिक आंदोलन के साथ लगातार जुड़े रहना होगा. शायद इसी वजह से अपना चाय श्रमिक संगठन बनाने की सूझी है.
इधर जॉन बारला के छोड़कर ही झामुमो के केंद्रीय कमिटी के साथ उत्तर बंगाल झामुमो की बैठक से जॉन काफी नाराज हैं. उन्होंने बताया कि वे उत्तर बंगाल झामुमो के नेता हैं एवं उत्तर बंगाल में अलग से चाय श्रमिक संगठन बनाने को लेकर कोई बैठक या निर्णय नहीं हुआ है. इस तरह की कोई भी जानकारी उनके पास नहीं है.
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में डुवार्स के नागराकाटा, बानरहाट, कालचिनि, मदारीहाट, मेटली, फालाकाटा आदि इलाकों में झामुमो, गोरखा जनमुक्ति मोरचा, आदिवासी विकास परिषद जैसे आंचलिक राजनीतिक संगठन बड़े राजनीतिक संगठनों के लिये एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं. अगर झामुमो की ओर से नया चाय श्रमिक संगठन जॉन बरला के बिना ही संगठित कर लिया गया, तो फिर जॉन की स्थिति क्या होगी, यह काफी महत्वपूर्ण होगा.

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