सिलीगुड़ी: आजाद हिंद फौज के सेनानी पाखी दास रविवार को पंचतत्व में विलीन हो गये. 92 वर्षीय पाखी दास का निधन रविवार सुबह सिलीगुड़ी के सूर्यसेन सरणी स्थित अपने निज निवास पर हृदयाघात के कारण हो गया. सुबह 8 बजे उन्हें शहर के एक र्न्िसग होम में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. दोपहर स्थानीय किरणचंद श्मशान घाट में बड़े पुत्र रतन दास ने मुखाग्नि दी. पाखी दास ने अपने पीछे चार लड़के, तीन लड़की व नाती-पोतों से भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं. पत्नी छाया दास तीन वर्ष पहले ही उनका साथ छोड़ गयीं.
रतन ने बताया कि पिताजी को कोई गंभीर बीमारी नहीं थी. रविवार सुबह से ही अचानक उनको सांस लेने में असुविधा हो रही थी. सुबह 8 बजे हृदयाघात की वजह से उनकी मौत हो गयी. उनकी मौत की खबर फैलने के साथ ही पाखी के घर पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. उनके शव यात्र में भी बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए.
उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर, 1926 को पाखी का जन्म बर्मा (अब म्यांमार) में हुआ था. छोटी उम्र में ही उनमें देश भक्ति परवान चढ़ने लगी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस उनके प्रेरणास्रोत थे. देश को आजाद कराने के लिए किशोरावस्था में ही पाखी नेताजी के शरण में आ गये और आजाद हिंद फौज में शामिल हो गये. देश आजाद होने के बाद पाखी ने पहले अपने परिवार के साथ असम में शरण ली. बाद में बंगाल की धरती सिलीगुड़ी में आकर बस गये. देश को आजाद कराने में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए 15 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाखी को राष्ट्रीय पुरस्कार के रूप में ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था. पाखी नेताजी को हमेशा भगवान के रूप में देखे और उनके जन्म दिन को हर साल अपने घर में उत्सव के रूप में मनाते रहे. साथ ही गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस हमेशा महोत्सव के रूप में उन्होंने मनाया.