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घीसिंग के बाद गोरामुमो का क्या?
पहाड़ पर सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न मोहन घीसिंग की क्षमता को लेकर संदेह मौरिश कालीकोटे को कमान सौंपने की मांग सहानुभूति से मिल सकता है सहारा गोजमुमो नेताओं की भी बढ़ी चिंता सिलीगुड़ी : गोरामुमो सुप्रीमो सुभाष घीसिंग के निधन के बाद दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही है कि गोरखा राष्ट्रीय […]
पहाड़ पर सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न
मोहन घीसिंग की क्षमता को लेकर संदेह
मौरिश कालीकोटे को कमान सौंपने की मांग
सहानुभूति से मिल सकता है सहारा
गोजमुमो नेताओं की भी बढ़ी चिंता
सिलीगुड़ी : गोरामुमो सुप्रीमो सुभाष घीसिंग के निधन के बाद दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही है कि गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोरचा (गोरामुमो) के भविष्य का क्या होगा? गोरामुमो के केन्द्रीय कमेटी ने सुभाष घीसिंग के निधन के बाद आनन-फानन में उनके पुत्र मोहन घीसिंग को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया है, लेकिन अब पहाड़ के लोग मोहन घीसिंग की क्षमता को लेकर संदेह व्यक्त कर रहे हैं.
मोहन घीसिंग अभी युवा हैं और वह पहाड़ पर डूबी हुई पार्टी में जोश भर सकते हैं, लेकिन यह भी सही है कि मोहन घीसिंग कभी भी सक्रिय राजनीति में नहीं रहे. वह भले ही हर हमेशा सुभाष घीसिंग के साथ रहते थे, लेकिन उन्होंने राजनीति को लेकर कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी.
गोरामुमो के बहुत ही कम कार्यक्रमों में उन्हें देखा गया. ऐसे गोरामुमो के आंतरिक सूत्रों ने तो यहां तक बताया है कि मोहन घीसिंग स्वयं भी गोरामुमो का अध्यक्ष नहीं बनना चाहते. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में गोरामुमो को फिर से खड़ा कर पाना बहुत ही कठिन है. घीसिंग के साथ काम करने वाले तमाम बड़े नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं. अधिकांश नेता या तो बिमल गुरूंग के नेतृत्व वाली गोजमुमो में शामिल हो गये हैं या फिर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है. कर्सियांग की पूर्व विधायक शांता छेत्री हमेशा ही घीसिंग के साथ बनी रही थीं. गोजमुमो के गठन के बाद तमाम दबावों के बाद भी वह बिमल गुरूंग के साथ नहीं गईं. राजनीति में सुभाष घीसिंग की दिलचस्पी कम होते देख पिछले वर्ष वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं. कुछ ऐसा ही मामला राजेन मुखिया के साथ भी हुआ. राजेन मुखिया विषम परिस्थिति में भी सुभाष घीसिंग के साथ खड़े रहते थे.
सुभाष घीसिंग जब दाजिर्लिंग छोड़ कर जलपाईगुड़ी रहने आ गये तब राजेन मुखिया ने कई बार सुभाष घीसिंग को दाजिर्लिंग ले जाने की कोशिश की थी. सुभाष घीसिंग गोजमुमो के भय से दाजिर्लिंग वापस नहीं गये. गोरामुमो के भविष्य को खतरे में देख राजेन मुखिया भी बाद में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये. वह अभी दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार गोरामुमो को मोहन घीसिंग के जगह मौरिश कालीकोटे जैसे नेता को पार्टी का कमान सौंपना चाहिए था. पहाड़ मामलों के विशेषज्ञ शिबू छेत्री का कहना है कि मोहन घीसिंग किसी भी तरह से पर्वतीय क्षेत्र में पार्टी की कमान नहीं संभाल पायेंगे. उन्हें जब राजनीति में दिलचस्पी ही नहीं है तो फिर वह पार्टी को आगे कैसे ले जायेंगे. श्री छेत्री ने बताया कि दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में गोरामुमो का जनाधार नहीं के बराबर है. ऐसे में पार्टी को मोहन घीसिंग नहीं संभाल पायेंगे. मौरिश कालीकोटे जैसे नेताओं को आगे लाना चाहिए था. कुछ वर्ष पहले जब सुभाष घीसिंग की पत्नी का निधन हुआ था तो गोजमुमो ने शव को दाजिर्लिंग नहीं आने दिया था. बाध्य होकर उनका अंतिम संस्कार सिलीगुड़ी में करना पड़ा था. मोहन घीसिंग इस बात के गवाह हैं. उनके निकटवर्ती लोगों ने बताया है कि इस बात से भी मोहन घीसिंग डरे हुए हैं. हालांकि गोरामुमो के कन्वेनर एमजी सुब्बा ऐसी बातों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.
श्री सुब्बा ने मोहन घीसिंग पर ही अपनी आस्था दिखायी है और उन्होंने कहा है कि मोहन घीसिंग के नेतृत्व में ही पहाड़ पर गोरामुमो मजबूत होगी. दूसरी तरफ सुभाष घीसिंग की मौत के बाद पर्वतीय क्षेत्र में जिस प्रकार से उनको लेकर सहानुभूति उमड़ी इसको लेकर गोरामुमो नेता उत्साहित हैं.
घीसिंग के शव यात्र में भी भारी भीड़ उमड़ी थी. सुभाष घीसिंग के समर्थकों का मानना है कि इस सहानुभूति लहर के बूते पर्वतीय क्षेत्र में पार्टी को एक बार फिर से खड़ा किया जा सकता है. दूसरी तरफ घीसिंग की शव यात्र में इतने लोगों की भीड़ देखकर विरोधी गोजमुमो नेता परेशान हैं. विश्वसस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गोजमुमो के कई नेता इस बात को लेकर काफी चिंतित हैं. कई गोजमुमो नेताओं ने इस मुद्दे पर बिमल गुरूंग से भी बातचीत की है.
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