कालियागंज : आधुनिक भारतीय समाज में भी विकास की अंधी दौड़ में बुजुर्ग माता पिता उपेक्षित और असहाय होते जा रहे हैं. जिस मां ने अपने बच्चों को जन्म देने के अलावा अपने खून से पाल-पोषकर बड़ा किया वही अगर उसे बुढ़ापे में बेसहारा छोड़ दे तो उसे क्या कहेंगे. कालियागंज प्रखंड अंतर्गत धनकोल गांव की निवासी कांचोबाला का भी यही रोना है. उनके तीन तीन बेटों के रहते हुए उन्हें इस पकी उम्र में भीख मांगकर अपना पेट पालना पड़ रहा है. उम्र की भार से उनकी कमर झुक गयी है.
इस वजह से उन्हें चलने के लिये बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है. ऐसी हालत में वे धनकोल के दुर्गापुर से पैदल चलकर कालियागंज शहर के महेंद्रगंज बाजार चली आयी हैं भीख मांगने. जब प्रतिवेदक ने उनसे इस बेबसी का राज जानना चाहा तो कांचोबाला की आखें कष्ट से भर आयीं. कहने लगीं, इस उम्र में भी भीख मांगकर गुजारा करना पड़ रहा है.
घर में तीन तीन बेटे हैं. लेकिन एक भी ऐसा नहीं है जो उन्हें दो वक्त के भात का इंतजाम कर सके. इसलिये उन्हें घर घर जाकर भीख मांगनी पड़ रही है. अपने दुख को याद करते हुए कहती हैं कि ऐसा कष्ट भगवान किसी शत्रु को भी नहीं दें. हाल ही में वह बीमार पड़ गयीं थीं. बेटों से जब दवा के लिये कहा तो उन्होंने दवा लाना तो दूर, उल्टे धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया.
अब तो जीने की इच्छा भी समाप्त हो गयी है. लेकिन यह मौत निगोड़ी भी तो जल्द नहीं आती है. क्या करें, जब तक ईश्वर ने जिंदगी दी है तब तक किसी तरह जीना ही होगा. लेकिन यह भी कोई जीना हुआ! उनकी शिकायत बेटों के अलावा प्रशासन के प्रति भी है. आज तक उन्हें वृद्ध भत्ता नहीं मिला.
उल्लेखनीय है कि एक तरफ राज्य सरकार का दावा है कि ग्रामीण अंचल विकास की लहर में डूब रहा है वहीं, कांचोबाला जैसी असहाय और बेबस माता पिता दर दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं. ऐसे विकास के क्या मायने हैं जबकि हमारी पुरानी पीढ़ी जिसके कंधे पर बैठकर नई पीढ़ी फल-फूल रही है उपेक्षित और बेसहारा हो जाये. सवाल है कि ऐसे बुजुर्ग लोगों के पुनर्वास के लिये राज्य सरकार क्यों नहीं कोई ठोस योजना लेती है ताकि इनकी बेटे-बहुओं पर से निर्भरता कम हो जाये?