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दार्जिलिंग : छठवीं अनुसूची में एससी की अनदेखी स्वीकार नहीं

दार्जिलिंग : पहाड़ में जो भी व्यवस्था लागू हो, अनुसूचित जातियों (एससी) के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए. यह बात ऑल इंडिया नेपाली अनुसूचित जाति एसोसिएशन के केंद्रीय महासचिव रिमेश मोथे ने कही. शहर के गोयनका रोड स्थित गोरखा दुख निवारक सम्मेलन भवन के कॉन्फरेन्स हाल में शनिवार को छठी अनुसूची प्रचार-प्रसार समिति ने […]

दार्जिलिंग : पहाड़ में जो भी व्यवस्था लागू हो, अनुसूचित जातियों (एससी) के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए. यह बात ऑल इंडिया नेपाली अनुसूचित जाति एसोसिएशन के केंद्रीय महासचिव रिमेश मोथे ने कही.

शहर के गोयनका रोड स्थित गोरखा दुख निवारक सम्मेलन भवन के कॉन्फरेन्स हाल में शनिवार को छठी अनुसूची प्रचार-प्रसार समिति ने छठी अनुसूची पर एक संगोष्ठी आयोजित की थी. इसमें रिमेश मोथे के अलावा ऑल इंडिया नेपाली अनुसूचित जाति एसोसिएशन के केन्द्रीय अध्यक्ष कुबेर घतानी, उपाध्यक्ष सीके लोहार, प्रताप सुनाम, विमल दर्नाल, सार्की समाज से इन्सान सार्की, छठी अनुसूची प्रचार प्रसार-समिति से प्रवीन जिम्बा, किशोर गुरूंग आदि उपस्थित थे.

अपने संबोधन में रिमेश मोथे ने कहा कि दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में जो भी व्यवस्था आये उसमें अनुसूचित जाति के अधिकारों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के जरिये अनुसूचित जातियों के लिए अधिकार और सुविधाएं प्रदान की गयी हैं. इसी तरह से राज्य सरकारों ने भी अनुसूचित जातियों के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाओं व अधिकारों की व्यवस्था की है.

लेकिन 2005 में आये छठी अनुसूची के दस्तावेज में अनुसूचित जातीयों के लिए कोई उल्लेख नहीं था, इसलिए उसका विरोध किया गया. छठी अनुसूची के समझौता पत्र में सबसे बड़ी दुख की बात थी कि उसमें ‘फुल एंड फाइनल’ शब्द का प्रयोग था. श्री मोथे ने कहा कि अगर फिर से छठी अनुसूची का प्रस्ताव आता है तो उसमें अनुसूचित जातियों के बारे में भी उल्लेख हो.

सार्की समाज के महासचिव इन्सान सार्की ने अपने सम्भाषण में श्री मोथे के वक्तव्य का समर्थन करते हुए कहा कि अगर भविष्य में दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में कोई नयी व्यवस्था का गठन होता है तो उसमें अनुसूचित जातियों के अधिकार का हनन नहीं करना होगा.

इसी तरह से छठी अनुसूची प्रचार-प्रसार समिति के वरिष्ठ कार्यकर्ता किशोर गुरूंग ने अपने सम्भाषण में कहा कि छठी अनुसूची के दस्तावेज में अनुसूचित जातियों के बारे में कहीं कोई उल्लेख नहीं होना, समझौता करनेवाले राजनैतिक दल की गलती हो सकती है. इसलिए इस तरह की गलती फिर दोबारा नहीं होने देने के लिए इस तरह की संगोष्ठी या सेमिनार का आयोजन होना जरूरी है.

छठी अनुसूची प्रचार-प्रसार समिति इससे पहले भी दार्जिलिंग के इसी गोरखा दुख निवारक सम्मेलन भवन में और कर्सियांग में सेमिनार का आयोजन कर चुकी है.

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