बालुरघाट : उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों में पारंपरिक उत्साह और उमंग के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन संपन्न कर विजयादशमी को देवी दुर्गा की प्रतिमाओं का विधिवत विसर्जन संपन्न किया गया. इस मौके पर महिलाओं ने सिंदूर खेला की विधि का पालन करते हुए एक दूसरे को सिंदूर लगायी.
देवी दुर्गा को विदा देने का रिवाज अलग-अलग जिलों में अलग-अलग है. मिसाल के तौर पर दक्षिण दिनाजपुर जिले के सदर बालुरघाट शहर की गौरीपाल परिवार की सार्वजनिन दुर्गा पूजा का समापन अनूठे तरीके से किया गया. करीब 300 साल पुरानी इस दुर्गा पूजा का समापन माता को पान्ता भात और बोआल और शोल मछलियों का भोग लगाकर किया जाता है.
इस बार भी इसी तरह पान्ता भात का भोग ग्रहण कर भक्तों ने खुद को धन्य माना. जानकारी अनुसार सप्तमी और अष्टमी तिथि को देवी दुर्गा के प्रति निरामिष भोग लगता है. लेकिन नवमी और विजयादशमी को आमिष भोग के साथ पान्ता भात का प्रसाद देवी को अर्पित किया जाता है.
इस भोग को पाने के लिए भक्तों में होड़ मच जाती है. विजयादशमी को पान्ता भात का भोग पाने के लिए श्रद्धालुओं में अभूतपूर्व होड़ देखी गई. इस बारे में स्थानीय भक्त शुभ्रश्लेता गांगुली ने बताया कि गौरीपाल परिवार की दुर्गा पूजा में सिंदूर खेल और पान्ता भात का भोग नहीं मिलने से अधूरापन रह जाता है.
इसीलिए दुर्गा पूजा समाप्त होते ही वे हर साल की तरह इस बार भी पान्ता भात का भोग लेने के लिए आ गईं. गौरीपाल परिवार सार्वजनिन दुर्गा पूजा कमेटी के सदस्य अरुप नंदी ने बताया कि नवमी और दशमी के भोग का कुछ हिस्सा पान्ता भोग के लिए रख दिया जाता है.
इस भोग को पाने के लिए दूर-दराज से भक्तों का समागम होता है. इस बार भी यह विशेष भोग ग्रहण करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा.