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कबाड़ में बेची विद्यार्थियों की किताबें… डॉ भीमराव आंबेडकर हिंदी प्राथमिक विद्यालय में गड़बड़झाला
सिलीगुड़ी : एक तरफ सरकारी विद्यालयों में किताबों का अभाव है, तो दूसरी तरफ एक सरकारी विद्यालय में किताबों को कबाड़ में बेच दिया गया है. इस तरह बिना किसी की अनुमति के किताबें बेचने से शिक्षा परिषद भी दंग है. सिलीगुड़ी नगर निगम के एक नंबर वार्ड स्थित डॉ भीमराव आंबेडकर हिंदी प्राथमिक विद्यालय […]
सिलीगुड़ी : एक तरफ सरकारी विद्यालयों में किताबों का अभाव है, तो दूसरी तरफ एक सरकारी विद्यालय में किताबों को कबाड़ में बेच दिया गया है. इस तरह बिना किसी की अनुमति के किताबें बेचने से शिक्षा परिषद भी दंग है. सिलीगुड़ी नगर निगम के एक नंबर वार्ड स्थित डॉ भीमराव आंबेडकर हिंदी प्राथमिक विद्यालय से करीब डेढ़ क्विंटल किताब बेचने का मामला सामने आया है. विद्यालय के प्रभारी शिक्षक ने भी बिना किसी की अनुमति के किताब बेचने की बात को स्वीकार की है.
शनिवार को प्रभात खबर के सिलीगुड़ी संस्करण में ‘आधा सत्र बीतने को, अभी तक नहीं मिली किताब’ शीर्षक वाली खबर प्रकाशित हुई, जिसमें बताया गया कि किस तरह अंग्रेजी और हिंदी माध्यम के विद्यार्थी किताबों के अभाव से जूझ रहे हैं. लेकिन वहीं दूसरी तरफ एक सरकारी हिंदी प्राथमिक विद्यालय ने किताबों को कबाड़ में बेच दिया है. जानकारी के अनुसार, एक सप्ताह पहले शनिवार को डॉ भीमराव आंबेडकर हिंदी प्राइमरी विद्यालय के प्रभारी शिक्षक ने फेरीवाले कबाड़ी को बुलाकर 1200 रुपये में डेढ़ क्विंटल किताबें बेच दी हैं.
फेरीवाले ने इन किताबों को माटीगाड़ा के गोरूहाटी में में एक कबाड़ी को बेचा. माटीगाड़ा के कबाड़ दुकानदार अनूप राहा ने बताया कि शनिवार को एक फेरीवाले ने डेढ़ क्विंटल सरकारी किताबें उसके पास बेची थीं. ये किताबें रिसाइक्लिंग के लिए बागडोगरा के कारखाने में भेज दी गयी हैं. सूत्रों का कहना है कि शिक्षकों की मिलीभगत से किताबों को बेच कर रुपया आपस में बांट लिया गया है. किताबें बेचने का किसी भी शिक्षक ने विरोध नहीं किया.
यहां बता दें कि पहली से लेकर पांचवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को सरकार मुफ्त में किताबें मुहैया कराती है. स्वाभाविक रूप से किताबें सरकार की संपत्ति हैं. शिक्षा परिषद कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, विद्यालय की सरकारी संपत्ति का एक कागज तक बिना अनुमति के नहीं बेचा जा सकता है. फटी-पुरानी या पुरानी पाठ्यक्रम की किताबों को बेचने का प्रावधान है.
अधिक संख्या में पुरानी किताबें विद्यालय में जमा होने पर स्कूल प्रशासन उसकी जानकारी जिला इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल (डीआइ) को लिखित में रूप में देगा. इसके बाद डीआइ पूरे सर्कल और शिक्षा जिले के अंतर्गत सभी विद्यालयों में जमा पुरानी किताबों की छानबीन कर एकत्र करेंगे. इसके बाद डीआइ राज्य शिक्षा विभाग से अनुमति लेकर टेंडर के माध्यम से पुरानी किताबें बेच सकते हैं. इस प्रक्रिया के बाहर जाकर बिना डीआइ की अनुमति के ही विद्यालय प्रभारी या शिक्षकों द्वारा किताबें बेचना गंभीर अनियमितता है.
बिना किसी की अनुमति के, स्वेच्छा से सरकारी किताबें बेचने की बात विद्यालय के प्रभारी शिक्षक मुन्ना शर्मा ने भी स्वीकार की है. उन्होंने कहा कि विद्यालय की किसी भी चीज को बेचने के लिए डीआइ की अनुमति की आवश्यकता होती है. अपनी सफाई देते हुए श्री शर्मा ने बताया कि किताबों को जलाया भी जा सकता था, लेकिन उससे कोई लाभ नहीं था. इसलिए उन्होंने बिना किसी की अनुमति के किताबों को कबाड़ में बेच दिया. वैसे भी बेची गयी किताबें वर्ष 2007-08 की थीं. काफी पुरानी किताबें जमा होने की वजह से कचरा हो गया था.
इस संबंध में सिलीगुड़ी शिक्षा जिला प्राइमरी काउंसिल के डीआइ तपन बसु ने बताया कि इस तरह बिना अनुमति के सरकारी किताबें नहीं बेची जा सकतीं. हालांकि अब तक इस मामले को लेकर कोई लिखित शिकायत उन्हें नहीं मिली है. उन्होंने अपने स्तर पर छानबीन करने का आश्वासन दिया है.
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