जयगांव : मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल पर राज्य सरकार ने गरीब श्रमिकों के लिये दो रुपए प्रति किलो की दर से महीने में पांच किलो चावल देने की जो योजना चलायी है वह जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो रही है. इस तरह के आरोप डुवार्स क्षेत्र के सैकड़ों श्रमिकों के अलावा पंचायत सदस्यों […]
जयगांव : मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल पर राज्य सरकार ने गरीब श्रमिकों के लिये दो रुपए प्रति किलो की दर से महीने में पांच किलो चावल देने की जो योजना चलायी है वह जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो रही है. इस तरह के आरोप डुवार्स क्षेत्र के सैकड़ों श्रमिकों के अलावा पंचायत सदस्यों ने लगाये हैं. उल्लेखनीय है कि यह योजना राज्य सरकार ने खास तौर पर चाय बागानों में संकट और वहां काम करने वाले श्रमिकों की बदहाली को देखते हुए शुरु की थी.
इस बारे में जब प्रेस की एक टीम ने डुवार्स के भार्नाबाड़ी, मालंगी और सुभाषिनी चाय बागानों का सर्वे किया तो राज्य सरकार के दावों से तस्वीर बिल्कुल उलट दिखी. श्रमिकों के अनुसार जहां हर सप्ताह उन्हें प्रति परिवार दो रुपए की दर से 35 किलो चावल मिलना चाहिये वहां उन्हें हफ्तों तक राशन मिलता ही नहीं है. सवाल है कि अगर यह चावल और आटा श्रमिकों को नहीं मिल रहा है तो वह आखिर जाता कहां है? आरोप लगा है कि इस योजना के अंतर्गत चावल की आपूर्ति में भारी अनियमितता हो रही है
जो जांच पड़ताल की अपेक्षा रखती है. कई पंचायत सदस्यों ने भी आरोप लगाया है कि इस योजना की आड़ में कई स्वनिर्भर दलों के लोग चांदी काट रहे हैं,जबकि चाय बागानों के श्रमिक भूखों मरने के लिये बेबस हैं. इस तरह से ये श्रमिक आज भी शोषण व उपेक्षा के शिकार बने हुए हैं. उन्हें आज भी अन्य राज्य में जाने के लिये ऐसे हालात पैदा कर बाध्य किया जा रहा है.
चाय श्रमिकों ने बताया कि चाय बागानों से उन्हें महीने में चार सप्ताह राशन मिलने की बात है. नियमानुसार प्रत्येक सप्ताह एक श्रमिक परिवार को सप्ताह में पांच किलो आटा और 3 किलो 750 ग्राम चावल देने की बात है. लेकिन जब से यह योजना चालू हुई है उस समय से 20 सप्ताह से अधिक का राशन बकाया है. कई श्रमिकों का तो यहां तक कहना है कि उन्होंने दो रुपए किलो की दर से 35 किलो राशन की बात सुनी है लेकिन आज तक उसे लागू होते हुए देखा नहीं है. बल्कि यहां तो उलट हो रहा है.
श्रमिकों को 35 किलो चावल तो नहीं ही मिल रहा है. उल्टे श्रमिक यदि किसी कारण से काम से गैरहाजिर रहता है तो उसका राशन बंद कर दिया जाता है. राशन चालू करने के लिये उसे जुर्माना भरना पड़ता है. वह भी उस श्रमिक को जो दाने दाने को मोहताज है. श्रमिकों ने आरोप लगाया कि क्लस्टर नामक एक स्वनिर्भर दल के लोग कई तरह के बहानेबाजी कर राशन का भुगतान नहीं करते हैं. कभी हाथी का बहाना तो कभी बीमारी का बहाना कर राशन से उन्हें वंचित किया जाता है.
कई चाय श्रमिक नेताओं ने आरोप लगाया कि एक सप्ताह राशन मिलता है उसके बाद वह बंद हो जाता है. यहां तक कि बागान मैनेजर के कहने के बावजूद कोई असर नहीं हो रहा है. इसके पूर्व उन्होंने कालचीनी के खाद्य अधिकारी को ज्ञापन देकर इसकी शिकायत की तो उसके बाद तीन माह तक ठीक ठीक राशन दिये गये. लेकिन उसके बाद ढाक के वही तीन पात, पहले की स्थिति बहाल रही. मालंगी ग्राम पंचायत के सदस्य विजय लोहार ने बताया कि राशन के भुगतान में भारी अनियमितता हो रही है.
सरकारी योजनाओं से उन्हें वंचित किया जा रहा है. इस बारे में भाजपा के चाय श्रमिक संगठन बीटीडब्लूयू के कालचीनी ब्लॉक अध्यक्ष प्रदीप कुजूर ने कहा कि इस तरह की अनियमितता के चलते जिन बागानों में श्रमिकों की मजदूरी ज्यादा नहीं है उन्हें विशेष रुप से परेशानी सहनी पड़ती है. इस बारे में स्वनिर्भर दल के कोषाध्यक्ष नीलंती उरांव ने फोन पर बताया कि श्रमिकों की संख्या के अनुपात में खाद्यान्न नहीं आ रहे हैं. इसलिये पूरा राशन देने में कठिनाई हो रही है. लेकिन उन्होंने बकाया राशन के आरोपों से इंकार किया है.
खाद्य अधिकारी वांगदेन लामा भूटिया ने बताया कि जिनके पास राशन कार्ड है उन्हें पूरा राशन मिलना चाहिये. जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उन्हें फॉर्म-3 भरकर जमा देना होता है. तब वे भी सस्ती कीमत वाले राशन के हकदार होंगे. वे इस मामले में छानबीन करेंगे.