उल्लेखनीय है कि टीआरए एक शताब्दी से भी ज्यादा पुराना है. असम के जोरहाट जिले के टोकलाइ में टीआरए की स्थापना की गयी थी. उसी की एक शाखा नागराकाटा में खोला गयी थी. मंगलवार शाम चार बजे तक केंद्र के 25 कर्मचारियों ने कार्यालय में धरना देने के अलावा कामबंदी का पालन किया.
डुवार्स, तराई और दार्जिलिंग के चाय बागानों की मृदा जांच, कीटनाशकों के उपयोग, चाय के पौधों की देखभाल की वैज्ञानिक विधि, सिंचाई और चाय की गुणवत्ता की वृद्धि को लेकर टीआरए में अनुसंधान किया जाता है. आंदोलनकारी रतन पाल ने बताया कि चाय उद्योग का यह महत्वपूर्ण अंग है यह केंद्र. ऐसा पहली बार हुआ है कि वेतन का केवल 60 प्रतिशत उन्हें दिया गया. इसी के प्रतिवाद में उन लोगों ने एक दिवसीय सांकेतिक कामबंदी का पालन किया. वहीं, वेतन मामले में केंद्र के उप निदेशक ए बाबू ने कोई मंतव्य करने से इंकार किया. उधर, केंद्र के प्रबंधन के सूत्र ने बताया कि इस बार आर्थिक कारणों से पूरा वेतन देना संभव नहीं हुआ. भारतीय चाय बोर्ड और चाय बागानों के संगठनों की वित्तीय सहायता से यह केंद्र चलता है. केंद्र सरकार की विभिन्न परियोजनाओं की राशि भी इस केंद्र को मिलती है. आज कामबंदी से कई घंटे तक काम प्रभावित रहा.