हावड़ा: 13 साल की सृजा अब दुनिया में नहीं रही, लेकिन दुनिया से अलविदा होने के बाद भी वह लोगों के दिल में जिंदा रहेगी. लाख कोशिश करने के बाद भी डॉक्टर जान को बचा नहीं सके. छोटी सी उम्र में दुनिया छोड़ कर चली गयी. 13 साल की बेटी की शव का जलते देखना मां-बाप को मंजूर नहीं था. दंपती ने एक ऐसा फैसला लिया, जो दूसरों के लिए उदहारण बन गया.
देहदान राज्य में कोई नयी बात नहीं है, लेकिन राज्य में दूसरा माैका है जब 13 साल की आयु में किसी का देहदान हुआ हो. पिता सुबीर आैर मां अर्पिता बात करने की स्थिति में नहीं हैं. शिवपुर की रहनेवाली सृजा की तबीयत बिगड़ी. उसे पार्क सर्कस स्थित एक नर्सिंग होम में दाखिल कराया गया था. वह एचएलएच बीमारी (रक्तजनित बीमारी) से ग्रसित थी. तबीयत में बहुत अधिक सुधार नहीं हो सका. गुरुवार सुबह हार्ट अटैक से उसने दम तोड़ दिया. बेटी की मौत ने माता पिता को झकझोर कर रख दिया. दंपती ने फैसला लिया कि बेटी के शव को दान किया जाये. राज्य स्वास्थ्य विभाग से संपर्क साधा गया.
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी डॉ अदिति किशोर सरकार की देखरेख में सृजा के शव को एसएसकेएम अस्पताल लाया गया. यहां उसके स्कीन को निकाल कर प्लास्टिक सर्जरी विभाग में संभाल कर रखा गया, ताकि आग से जलनेवाले लोगों के काम आ सके. उसकी आंखों को मेडिकल कॉलेज के आरआइओ विभाग को दे दिया गया. प्रकिया पूरी होने के बाद शव को मेडिकल छात्रों के लिए एनाटोमी विभाग के हवाले कर दिया गया. पिता व मां ने कहा: हमें बेटी को जलता देखना बरदाश्त नहीं था. यही कारण रहा कि उसके शव को दान करने का फैसला लिया.
मालूम रहे कि पिछले दिनों नदिया के बगुला में 829 लोगों ने देहदान करने का फैसला लिया है. भारत में ऐसा पहला मौका है जब इतने बड़ी संख्या में देहदान किया गया है.
सृजा समाज के लिए उदाहरण बनी है. इसके पहले 2007 में आठ साल के एक शिशु का देहदान किया गया था. यह दूसरा मौका है, जब 13 साल की आयू में किसी का देहदान हुआ है. हमसबों को इससे सीख लेने की जरूरत है.
-डॉ अदिति किशोर सरकार, स्वास्थ्य विभाग अधिकारी.