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ओबीसी सूची की राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग कर रहा है समीक्षा

पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को मंगलवार को सूचित किया कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग पिछड़ेपन के मुद्दे की नये सिरे से समीक्षा कर रहा है.

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दी जानकारी, अब सुनवाई जुलाई में

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले की सुनवाई की

जातिगत पिछड़ेपन की समीक्षा तीन महीने में पूरी हो जायेगी: राज्य

एजेंसियां, नयी दिल्ली/कोलकाता

पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को मंगलवार को सूचित किया कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग पिछड़ेपन के मुद्दे की नये सिरे से समीक्षा कर रहा है. राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ को बताया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग नये सिरे से जातिगत पिछड़ेपन की समीक्षा कर रहा है और यह प्रक्रिया तीन महीने में पूरी हो जायेगी. मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने राज्य सरकार की दलील सुनते हुए मामले को जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कोर्ट से अनुरोध किया कि इस मुद्दे पर आगे की सुनवाई तीन महीने बाद की जाये. पीठ ने कपिल सिब्बल के अनुरोध को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई जुलाई माह के लिए स्थगित कर दी. अदालत ने कहा कि यह प्रक्रिया इसमें शामिल किसी पक्षकार के अधिकारों के प्रति किसी पूर्वाग्रह के बिना होगी.

राज्य सरकार की ओर से दाखिल याचिका सहित सभी याचिकाओं में कलकत्ता उच्च न्यायालय के 22 मई 2024 के फैसले को चुनौती दी गयी है, जिसमें 2010 से पश्चिम बंगाल में कई जातियों को दिया गया ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया गया था. उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों और राज्य सरकार संचालित शैक्षणिक संस्थानों में उनके आरक्षण को अवैध करार दिया था. इसने अपने फैसले में कहा: वास्तव में इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए धर्म ही एकमात्र मानदंड रहा है. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा: मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़े के रूप में चुनना समग्र रूप से मुस्लिम समुदाय का अपमान है.

कलकत्ता हाइकोर्ट ने 77 वर्गों की ओबीसी मान्यता रद्द कर दी है

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के तहत ओबीसी के रूप में 37 वर्गों को दी गयी मान्यता के अलावा अप्रैल, 2010 और सितंबर, 2010 के बीच दी गयी 77 वर्गों की ओबीसी मान्यता रद्द कर दी थी. उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष पांच अगस्त को राज्य सरकार से ओबीसी सूची में शामिल की गयी नयी जातियों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन तथा सरकारी नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर मात्रात्मक आंकड़े उपलब्ध कराने को कहा था.

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