आसनसोल: होली का खुमार शहरवासियों पर चढ़ने लगा है. होली का नाम लेते ही सबके के मन में सबसे पहले रंगों का ख्याल आता है. होली का नाम लेने पर ही मन में सबके चेहरे पर लाल, हरा, नीला और पीला रंग नजर आने लगता है. वर्षो से हम इन्हीं रंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं, यह जानते हुए भी कि इनमें कैमिकल का इस्तेमाल किया जाता है.
अधिकांश लोगों को मालूम नहीं है कि होली में वे जिन रंगों को एक-दूसरे को लगाते हैं, वे कैमिकल्स से बनते हैं. इन रंगों को छुड़ाने के दौरान जब उन पर साबुन लगाते हैं, तो त्वचा छिल जाती है.
दाग-धब्बे नजर आने लगते हैं और जलन महसूस होने लगती है. पानीवाले रंगों में अलकलाइन बेस होता है, जो ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं. वहीं पेस्ट के फॉर्म में जो रंग होते हैं, उनमें इंजन ऑयल का बेस होता है. होली के केमिकल रंगों से वॉटर पॉल्यूशन भी होता है. उस दिन शहर के सभी नाले लाल रंग के हो जाते हैं, जो सीधे गंगा में जा कर मिलते हैं. इन रंगों में मौजूद केमिकल्स सिर्फ त्वचा में ही नहीं, बल्कि बहुत बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचाते हैं.