कोलकाता: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन नयी दिल्ली के निदेशक राकेश सिन्हा ने तीन तलाक मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा कि हमने भी महिलाओं के साथ गुनाह किया है. 1921 में हुई देश की जनगणना के अनुसार हमारे देश में बाल विधवाओं की संख्या 7, 36, 238 थी. यह देश के लिए एक कलंक था. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उस वक्त उस कलंक को धोने के मुहिम की शुरुआत की. उस वक्त भी उनके इस मुहिम का विरोध हुआ था.
कुछ लोगों ने कहा कि ऐसा करने से धर्म भ्रष्ट होगा, लेकिन पूरा हिंदू समाज ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रगतिशील सोच के साथ उठ खड़ा हुआ. हमने इस कलंक को दूर कर दिया. आज हमारे समाज में महिलाएं अपनी श्रेष्ठता की तरफ बढ़ रही हैं, लेकिन हम तब तक श्रेष्ठता को प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक यहां के एक बड़े वर्ग की महिलाएं चलते-फिरते पिंजरों में बंद रहेंगी, जब तक महिलाएं तीन तलाक की शिकार रहेंगी. इस समस्या का समाधान कुरान के अनुसार नहीं, बल्कि संविधान के अनुसार होगा. हिंदू समाज केवल अपने समाज की नहीं, बल्कि हम पूरे भारत के वैशिष्टय की कल्पना कर रहे हैं. इस वैशिष्टय का हिस्सा बनने के लिए हर किसी को प्रगतिशीलता और आधुनिकता के साथ चलना होगा.
1921 में हुई की जनगणना के अनुसार देश में बाल विधवाओं की संख्या
0-1 उम्र की बाल विधवाओं की संख्या 594, 1-2 वर्ष की बाल विधवाओं की संख्या 494, 2-3 उम्र की बाल विधवाओं की संख्या 1257, 3-4 वर्ष की बाल विधवाओं की संख्या 2837, 4-5 वर्ष की बाल विधवाओं की संख्या 6760, 5-10 वर्ष की बाल विधवाओं की संख्या 95,038, 10 से 15 वर्ष उम्र की बाल विधवाओं की संख्या 2,33,147 और 15 से 20 उम्र की बाल विधवाओं की संख्या 3,96,105 थी.
मूर्ति तोड़नेवालों को हिंदुस्तान बर्दाश्त नहीं करेगा
कोलकाता. देश की आजादी के बाद से लेकर 2011 तक कुल 15 जनगणनाएं हो चुकी हैं, लेकिन किसी भी जनगणना में हिंदुओं की संख्या स्थिर नहीं रही है. हर बार हिंदुओं की जनसंख्या गिरती चली गयी. मैं बंगाल को याद दिलाना चाहता हूं कि बंगाल चिंतन की वह भूमि रही है, जिसके हर कण में एक चिंतक पैदा लेता रहा है. यहां मालदा जैसी घटनाएं बहुत निंदनीय है. उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन, नई दिल्ली के निदेशक राकेश सिन्हा ने कहीं. राम एवं शरद कोठारी प्रतिभा सम्मान कार्यक्रम को प्रधान वक्ता के तौर पर संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मूर्ति तोड़नेवालों को यह हिंदुस्तान ज्यादा दिनों तक बर्दाश नहीं करनेवाला. हम भगवाना राम की तरह उदार हैं, लेकिन जब समुद्र रास्ता नहीं देता है तो भगवान राम धनुष भी उठा लेते हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश बनने से पहले हमारे देश की चौहद्दी क्या थी. देश में आज भी ऐसे लोग हैं जो अभी भी हमारे देश की सीमाओं को छोटी करने का सपना देख रहे हैं, लेकिन ऐसे लोगों को मैं बताना चाहता हूं कि तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने बाल्यावस्था में था, आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ युवावस्था में उस ऋषि के उस वरदान के साथ है जो कभी युवावस्था खोयेगा नहीं. इसलिए ऐसे सपने देखनेवाले अपने सपने बदल लें, और राह पर आ जायें, नहीं तो हम मंदिर के लिए शहादत देनेवाले भारत माता की एक-एक इंच भूमि के लिए ऐसी शहादत देंगे कि वे कई चीजें भूल जायेंगे, जिसे वे याद कर के भारत में रह रहे हैं. इसीलिए बंगाल में दूसरी बार मालदा जैसी घटना ना हो ये चेतावनी उनको है.
काशी, मथुरा व अयोध्या पर समझौता नहीं, कोठारी भाइयों का बलिदान अमर रहेगा
कोलकाता. मुलायम सिंह की तुलना गुलाम भारत के पटना के गवर्नर विलियम आरचर से करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन नयी दिल्ली के निदेशक राकेश सिन्हा ने कहा कि विलियम ने 1942 में जिस प्रकार से पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराने जा रहे सात किशोरों को गोली मारने का आदेश दिया था, उसी प्रकार मुलायम सिंह नेे भी हिंदुस्तान की संस्कृति के लिए लड़नेवाले दो भाइयों राम और शरद कोठारी व अन्य लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया था. राम और शरद कोठारी ने सांस्कृतिक सरहदों पर जाकर अपना बलिदान दिया है. जब तक भारत मां रहेगी, दोनों शहीद भाइयों का नाम अमर रहेगा. जब कोठारी बंधुओं ने भगवा पर अपना कफन लिया था, तब उन्होंने यह नहीं सोचा था कि हमारी शहादत पर कोलकाता में श्रद्धांजलि सभा होगी. उन्होंने शहादत की कहानी इसलिए लिखी थी, क्योंकि वह भी जानते थे कि भगवान राम की इस भूमि पर काशी, मथुरा और अयोध्या पर किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता.