श्री घोष ने बताया कि इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए कुछ बिंदुआें पर जलद्वार व बांध का निर्माण किया जायेगा, ताकि मांग के अनुसार संग्रह किया जा सके. जलद्वारों को साल में एक निश्चित समय के दौरान बंद रखा जायेगा ताकि गरमी के मौसम में खेती के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध रहे. इन जलद्वारों को मानसून के दौरान खोल दिया जायेगा. एकत्रित पानी को नहरों के माध्यम से खेतों तक पहुंचाने की व्यवस्था की जायेगी.
मत्स्य पालन के लिए बड़े तालाबों व झीलों की खुदाई कर उन्हें साफ किया जायेगा. आंध्र प्रदेश में मत्स्य पालन के लिए जलाशयों को जिस प्रकार तैयार किया जाता है, उत्तर बंगाल में मछली व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए वहीं मॉडल अपनाया जायेगा. श्री घोष ने कहा कि पहाड़ी नदियों के पानी का इस्तेमाल कृषि के लिए होगा, जिससे उत्पादन बढ़ेगा, क्योंकि इस पानी में खनिज की मात्रा अधिक होती है आैर लौह की मात्रा नहीं के बराबर पायी जाती है, वहीं सिंचाई के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले भूमिगत जल में लौह की मात्रा काफी अधिक पायी जाती है, जिससे कृषि पर प्रतिकूल असर पड़ता है इसलिए पहाड़ी नदियों के पानी के इस्तेमाल की योजना से न केवल साल भर पानी उपलब्ध रहेगा, बल्कि खेती की गुणवत्ता आैर मात्रा भी बढ़ जायेगी. वहीं भूमिगत जल का स्तर भी नियंत्रण में रहेगा.
श्री घोष ने बताया कि इस प्रस्तावित परियोजना के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया जायेगा. इस परियोजना के संबंध में राज्य सिंचाई व कृषि विभाग से जल्द ही बात भी की जायेगी. उत्तर बंगाल के लोगों के फायदे के लिए इस परियोजना में केवल एक बार ही निवेश करना होगा.