कोलकाता. केंद्र सरकार की नीतियों और पेट्रोल-डीजल की कीमत में बढ़ोतरी के खिलाफ बुधवार को केंद्रीय ट्रेड यूनियन व फेडरेशन समूह की ओर से महानगर में विरोध रैली निकाली गयी. रैली धर्मतल्ला के वाइ चैनल के निकट से निकाली गयी, जो विभिन्न मार्गों से गुजरते हुए काॅलेज स्क्वायर के निकट समाप्त हुई.
रैली का नेतृत्व माकपा नेता रॉबिन देव, सीटू नेता दीपक दासगुप्ता, एटक के रंजीत गुहा व इंटक के रमेन पांडेय ने किया. इसके अलावा रैली में सीटू, आइएनटीयूसी, एटक, यूटीयूसी, टीयूसीसी, एचएमएस, 12 जुलाई कमेटी, मर्केनटाइल फेडरेशन, बीएसएनएलइयू, एसइआरएमयू, बीइएफआइ के कार्यकर्ता मौजूद रहे.
माकपा नेता ने पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ोतरी का विरोध किया है.
आरोप के अनुसार भाजपा नीत केंद्र सरकार की नीति जनविरोधी है. पेट्रोल व डीजल की कीमत में बढ़ोतरी से महंगाई और बढ़ेगी. आम लोगों पर और आर्थित दबाव होगा. उन्होंने केंद्र सरकार की नीति की आलोचना करते हुए पेट्रोल व डीजल की कीमत बढ़ोतरी के मसले पर तृणमूल सरकार की खामोशी पर भी सवाल उठाये गये हैं. रैली के दौरान केंद्रीय ट्रेड यूनियन व फेडरेशन समूह ने 12 सूत्री मांगों को लेकर दो सितंबर को प्रस्तावित देशव्यापी हड़ताल को सफल बनाने का आह्वान भी किया है. सीटू की ओर से कहा गया है कि 24 जून को महानगर में श्रमिक संगठनों की ओर से सम्मेलन भी किया जायेगा. सम्मेलन में 12 सूत्री मांगों के बारे में चर्चा के साथ प्रस्तावित हड़ताल को सफल बनाने की रूपरेखा भी तैयार की जायेगी.
वाम महिला संगठनों ने किया धरना-प्रदर्शन : विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में राजनीतिक हिंसा तथा महिलाओं और बच्चों के साथ हो रहीं वारदातों के खिलाफ वामपंथी महिला संगठनों ने बुधवार को महानगर में धरना-प्रदर्शन किया. अखिल भारत गणतांत्रिक महिला समिति, पश्चिम बंग महिला समिति, अग्रगामी महिला समिति और निखिल बंग महिला संघ की ओर से अपराह्न लगभग दो बजे से रानी रासमणि एवेन्यू के निकट से धरना- प्रदर्शन शुरू किया गया. प्रदर्शन शाम लगभग चार बजे तक चला. राज्य में राजनीतिक हिंसा को रोकने के लिए वामपंथी महिला संगठनों ने राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी से हस्तक्षेप की मांग की है. महिला संगठनों की ओर से आरोप लगाया है कि राज्य में महिलाओं और बच्चों के साथ वारदातें बढ़ी हैं. इसके लिए तृणमूल सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाये गये हैं.
संगठनों की ओर से चेतावनी दी गयी है कि हिंसा की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए यदि सरकार व प्रशासन की ओर से ठोस कदम नहीं उठाये गये, तो वामपंथी महिला संगठन लगातार आंदोलन को मजबूर होंगे.