न्यायाधीश कर्णन और न्यायमूर्ति राय की खंडपीठ ने 20 मई को 10 आरोपियों की जमानत नामंजूर कर दी थी. हालाकि खंडपीठ द्वारा जमानत अरजी ठुकराने के 18 दिन बाद न्यायमूर्ति कर्णन ने बाद में अपना मन बदला और सोमवार को आरोपियों की जमानत मंजूर करने के समर्थन में हस्ताक्षर किये. मंगलवार को जब खंडपीठ के रूप में दोनों न्यायाधीश अदालत में एक साथ बैठे तो न्यायमूर्ति राय ने न्यायमूर्ति कर्णन के फैसले पर आपत्ति जतायी. न्यायमूर्ति राय ने इस मामले से जुड़े सभी वकीलों को तलब किया.
उन्होंने न्यायमूर्ति कर्णन के फैसले को अपमानजनक करार दिया. न्यायमूर्ति राय ने कहा कि इस तरह के आदेश हमेशा खुली अदालत में दिये जाते हैं जबकि न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा कि अपने कक्ष में इस मामले से जुड़े कागजातों पर नये सिरे से गौर करने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि 10 आरोपियों को जमानत दी जानी चाहिए और इसलिए उन्होंने जमानत के पक्ष में फैसला किया. न्यायमूर्ति कर्णन के आदेश की वैधता पर दलीलों के बाद दोनों न्यायाधीश अदालत कक्ष से चले गये.
बाद में वरिष्ठ वकीलों ने दोनों न्यायाधीशों के कक्ष में जाकर विवाद सुलझाने की कोशिश की. 10 आरोपियों की जमानत याचिका को कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास भेजे जाने की संभावना है कि क्या असहमति के कारण इसे तीसरे न्यायाधीश के पास भेजा जाय. कलकत्ता उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने बाद में आम सभा की आपात बैठक बुलाकर न्यायमूर्ति कर्णन द्वारा ‘‘दुर्व्यवहार” का आरोप लगाते हुए उनकी अदालत में पेश नहीं होने का फैसला किया. एसोसिएशन ने इस संबंध में कलकत्ता हाइकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश से हस्तक्षेप की अपील भी की है.