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बोटानिकल गार्डेन का अस्तित्व खतरे में
जे कुंदन हावड़ा : एतिहासिक बोटानिकल गार्डेन का भविष्य खतरे में दिखता नजर आ रहा है. केंद्र सरकार जल्द इस गार्डेन को लेकर सचेत नहीं हुई, तो निश्चित रूप से इसका खामियाजा भुगतना होगा. 273 एकड़ जमीन पर फैला बोटानिकल गार्डेन नियमित देख-भाल व रख-रखाव नहीं होने के कारण बदहाली के दौर से गुजर रहा […]
जे कुंदन
हावड़ा : एतिहासिक बोटानिकल गार्डेन का भविष्य खतरे में दिखता नजर आ रहा है. केंद्र सरकार जल्द इस गार्डेन को लेकर सचेत नहीं हुई, तो निश्चित रूप से इसका खामियाजा भुगतना होगा. 273 एकड़ जमीन पर फैला बोटानिकल गार्डेन नियमित देख-भाल व रख-रखाव नहीं होने के कारण बदहाली के दौर से गुजर रहा है. बोटानिकल गार्डेन के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉक्टर अरविंद प्रमाणिक ने केंद्र सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुजारिश की है.
श्री प्रमाणिक के मुताबिक, गार्डेन के अनुरक्षण के लिए फिलहाल 20 से 25 लाख रुपये की जरूरत है. केंद्र सरकार को इसकी पूरी जानकारी भेजी गयी है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. गंगा किनारे बोटानिकल गार्डेन कुल 273 एकड़ जमीन पर फैला है. यहां लगभग 25 हजार प्रजाति के पेड़-पौधे हैं. इसके अलावा विभिन्न प्रकार के पक्षी, सांप, तितली भी यहां रखे गये हैं. गार्डेन के अंदर हजारों की संख्या में पेड़-पौधों को पानी देने के लिए गार्डेन में कुल 24 झीलों की व्यवस्था है, लेकिन कुछ महीनों से झीलों की सफाई नहीं होने के कारण पानी गंदा हो गया है.
झील में गंदगी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि झील के अंदर छोटे-छोटे पौधे उग गये हैं. शनिवार को इस झील की सारी मछलियां मरी पायी गयीं. माना जा रहा है कि झील का पानी इस कदर दूषित हो गया था कि मछलियां मर गयीं. गार्डेन के अंदर सभी 24 झीलें सीधे गंगा से जुड़ी हुई हैं. टनेल के माध्यम से गंगा का पानी झील तक पहुंचता है, लेकिन टनेल की सफाई कई महीनों से नहीं होने के कारण गंगा का पानी झील में नहीं पहुंच रहा है. यही कारण है कि सभी झीलों का पानी दूषित हो चुका है.
शनिवार को जिस झील में मछलियां मरी पायी गयीं, उस झील में बोटिंग की भी सुविधा थी, जो कि पिछले एक साल से बंद है. गार्डेन के पास सिर्फ फंड की ही कमी नहीं है. इतने विशाल क्षेत्रफल में फैले गार्डेन के अच्छे रख-रखाव के लिए पर्याप्त संख्या में कर्मचारी भी नहीं हैं. स्थिति बद से बदतर हो चुकी है. फंड की कमी व कर्मचारियों की संख्या में बेहद कमी होने की वजह से गार्डेन का अस्तित्व खतरे में है.
जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार की ओर से सिर्फ कर्मचारियों के वेतन व कार्यालय के रख-रखाव के लिए रुपये आते हैं, लेकिन गार्डेन के रख-रखाव के लिए फंड नहीं मिलने से ऐतिहासिक गार्डेन का भविष्य खतरे में दिखता नजर आ रहा है. ज्वाइंट डायरेक्टर श्री प्रमाणिक ने कहा है कि यह सच है कि स्थिति गंभीर है. बिना फंड के गार्डेन का रख-रखाव आखिर कैसे संभव है, यह मेरी समझ के बाहर है. उन्होंने कहा कि वह जल्द ही यहां आनेवाले लोगों के लिए एक नोटिस जारी करेंगे. गार्डेन की गरिमा बचाने के लिए लोगों के साथ की जरूरत है.
यहां आनेवाले लोगों से आग्रह किया जायेगा कि वे यहां आकर गंदगी नहीं फैलायें, बल्कि साफ रखने में हमारी मदद करें. इस बारे में पूछे जाने पर पर्यावरणविद सुभाष दत्ता ने कहा कि गार्डेन की सभी झीलों के पानी से बदबू फैल रही है. गंगा व झील को जोड़नेवाली टनेल गंदगी की वजह से अवरुद्ध है. झील के दूषित पानी का छिड़काव पेड़-पौधौं पर किया जाता है. ऐसे में पेड़-पौधों का भविष्य सुरक्षित नहीं है.
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