कोलकाता. किसी भी मार्ग या माध्यम से पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ ठाकुर के पथ पर चलें तो मेरा पूर्ण विश्वास है कि ठाकुर अपना लेते हैं. मेरे जीवन का यह अनुभव है. मेरे सदगुरु स्वामी रोटी राम बाबा, स्वामी अखंडानंद सरस्वती, पंडित रामकिंकर महाराज के सामने अपनी गलतियों को बताया और उन लोगों ने उसकी निवृत्ति भी बतायी. फलस्वरूप उसकी निवृत्ति भी हुई. मेरे जीवन में दोष थे, दोष हो सकते हैं, पर ईश्वर और गुरु कृपा से सहज निवृत्ति हो जाती है. मैंने ईश्वर और गुरु के प्रति कोई बेईमानी नहीं की. मेरा संबंध ठाकुर से है और मैंने इसका अनुभव किया है.
जो ठाकुर के हैं, वे मुझे पंसद आते हैं. जिस दिन सांसारिक घर वालों को छोड़ा, तबसे किसी की याद नहीं आयी. और ना ही किसी सांसारिक व्यक्ति के लिए रोया. हां, यह ज़रूर है कि मैं ईश्वर और गुरुदेव के लिए रोया. एक बाबा कहते हैं, दुनिया तो मुर्दा कंपनी है. जो दिनभर भिखारी बने घूम रहे हैं, उनसे क्या मांगते हो. मांगो ठाकुर से, तो मांगने की इच्छा ही समाप्त हो जायेगी. ध्रुव जी घर से निकले, तो सिंहासन के प्रति उनके मन में आसक्ति थी, लोभ था, पर भगवान को पाकर वह सब कुछ भूल गये. भगवान से जुड़ोगे, तो लोभ स्वत: ही चला जायेगा. चाहे जिस रूप में हो, भगवान से जुड़ो. ध्रुव लोभ से. कुब्जा कामना से, पूतना भावना से भगवान से जुड़ी, तो भगवान ने तीनों का कल्याण कर दिया. दुनिया के लिए जितना ध्यान करते हो, उसका 10वां हिस्सा भी ठाकुर का ध्यान करो. माता-पिता, पति-पत्नी और मित्र के बगैर के रह नहीं सकते हो, तो ठाकुर के बिना कैसे जि़ंदा हो. भक्त प्रह्लाद को गुरुकुल में एक दिन अवकाश मिला, तो उन्होने दैत्यबालकों को एकत्र किया और बोले- भगवान का भजन-कीर्तन करो.
दैत्यबालकों पर उनकी वाणी का ऐसा असर हुआ कि वे हरिकीर्तन करने लगे. और गुरुकुल संकीर्तन से गूंज उठा. प्रह्लाद ने जैसा संकीर्तन किया, वैसा ही आगे चल कर बंगाल में चैतन्य महाप्रभु ने वैसा ही संकीर्तन किया. संकीर्तन को सुन कर प्रह्लाद के गुरु संडामर्ग समझ गये कि एक प्रह्लाद से मैं इतना भयभीत था, और अब तो सारे बच्चे प्रह्लाद-सम हो गये. वह दौड़ता हुआ, हिरण्यकशिपु से बोला – मैं अापके पुत्र को नहीं बदल सकता. ये बातें संगीत कलामंदिर के तत्वावधान में प्रह्लाद चरित्र पर प्रवचन करते हुए स्वामी गिरीशानंद सरस्वती महाराज ने कलामंदिर सभागार में कहीं.