सिलीगुड़ी. गोरखालैंड आंदोलन के दौरान बिमल गुरुंग सहित गोजमुमो के अन्य नेताओं पर दर्ज 115 मुकदमे वापस लेने के राज्य सरकार के निर्णय के बाद दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई है. खासकर अखिल भारतीय गोरखा लीग ने राज्य सरकार के इस निर्णय का विरोध किया है.
यहां उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कल दार्जिलिंग में गोजमुमो नेताओं के साथ हुई बैठक में गोरखालैंड आंदोलन के दौरान गोजमुमो नेताओं पर दर्ज 115 मुकदमे वापस लेने की घोषणा की थी. मुख्यमंत्री ने कहा था कि वर्ष 2009 से 2011 तक गोरखालैंड आंदोलन के दौरान सड़क अवरोध आदि जैसे दर्ज मुकदमे वापस ले लिये जायेंगे. हालांकि हत्या आदि जैसे मुकदमे पहले की तरह चलते रहेंगे.
मुख्यमंत्री के इस एलान के बाद जहां गोजमुमो नेताओं में खुशी की लहर है, वहीं दूसरी ओर अखिल भारतीय गोरखा लीग ने इस मामले में अपनी आपत्ति जतायी है. गोरखा लीग के संस्थापक अध्यक्ष मदन तामांग की हत्या मामले में भी बिमल गुरुंग सहित 23 गोजमुमो नेताओं के खिलाफ चार्जशीट पहले से ही दायर कर दी गयी है. इस हत्याकांड की जांच सीबीआइ द्वारा की गयी है और कुछ महीने पहले कोलकाता के नगर दायरा अदालत में बिमल गुरुंग, उनकी पत्नी आशा गुरुंग, रोशन गििर, बिनय तामांग, हर्क बहादुर छेत्री सहित 23 गोजमुमो नेताओं के नाम हैं. इन लोगों पर पहले से ही गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है.
अग्रिम जमानत याचिका को लेकर यह सभी आरोपी नेता फिलहाल हाईकोर्ट की शरण में हैं और कलकत्ता हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने मामले के निपटारे तक इन लोगों की गिरफ्तारी पर रोक लगा रखी है. राज्य सरकार द्वारा गोजमुमो नेताओं पर दर्ज 115 मुकदमे वापस लेने के निर्णय पर अखिल भारतीय गोरखा लीग के महासचिव प्रताप खाती ने कहा है कि वह इस बात का अध्यन कर रहे हैं कि राज्य सरकार गोजमुमो नेताओं के खिलाफ किस तरह के मुकदमे वापस ले रही है. अगर इन नेताओं पर दर्ज गंभीर किस्म के मुकदमे वापस लिये गये, तो वह राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में मुकदमा दायर करेंगे. श्री खाती ने कहा कि बिमल गुरुंग तथा अन्य गोजमुमो नेताओं ने दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में लोकतंत्र की हत्या की है.
देश में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में जिन लोगों ने गोजमुमो का विरोध किया, उनकी आवाज दबा दी गयी. विरोधियों को या तो पहाड़ से खदेड़ दिया गया या फिर उनकी हत्या कर दी गयी. अखिल भारतीय गोरखा लीग शुरू से ही गोजमुमो के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है और यह लड़ाई आगे भी जारी रहेगी. श्री खाती ने आगे कहा कि वह पिछले महीने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिले थे. ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद उन्हें जो समझ में आया, उसके अनुसार मुख्यमंत्री दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में शांति और विकास चाहती हैं.
गोजमुमो नेताओं को खुश करने के लिए संभवत: उन्होंने मुकदमे वापस लेने के निर्णय लिये हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि किसी को शांत रखने और खुश करने के लिए इस तरह के निर्णय लिये जायें.
क्या है मामला
सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाली गोरामुमो का दबदबा खत्म कर कभी उनके सहयोगी रहे बिमल गुरूंग ने गोजमुमो का गठन किया और वर्ष 2009 में दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया. वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 2011 तक बिमल गुरूंग सहित अन्य गोजमुमो नेताओं के खिलाफ दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, कर्सियांग तथा डुवार्स में कई मुकदमे दर्ज किये गये. इनमें हत्या तक का मुकदमा भी शामिल है. अधिकांश मुकदमे तत्कालीन वाम मोरचा सरकार के शासनकाल के दौरान दर्ज किये गये हैं.
क्या है प्रावधान
राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद राज्य की तृणमूल सरकार, केंद्र सरकार तथा गोजमुमो के बीच त्रिपक्षीय समझौते के बाद गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्टे्रशन (जीटीए) का गठन किया गया. इस समझौते में गोरखालैंड आंदोलन के दौरान गोजमुमो नेताओं पर हत्या छोड़ अन्य मुकदमे वापस लेने का प्रावधान है. इसी प्रावधान के तहत गोजमुमो नेता राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लगातार मुकदमे वापस लेने की मांग कर रहे थे. मुकदमे वापस लेने के राज्य सरकार के निर्णय के बाद गोजमुमो नेताओं को बहुत बड़ी राहत मिलेगी.
क्या कहती हैं मुख्यमंत्री
मुकदमे वापस लेने के फैसले पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि यह निर्णय जीटीए के गठन के लिए हुए त्रिपक्षीय समझौते के आधार पर लिया गया है. गोजमुमो नेताओं पर अधिकांश मामले तत्कालीन वाम मोरचा सरकार की ओर से दर्ज किये गये थे. शीघ्र ही मुकदमा वापस लेने की कार्रवाई शुरू की जायेगी.