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जहां भक्ति, वहीं भगवान : आचार्य धर्मेद्र

कोलकाता. पवित्र पुरुषोत्तम मास में आज श्रीमत्पंचखण्डपीठाधीश्वर समर्थगुरु पाद परमपूज्य आचार्य स्वामी श्री धर्मेद्रजी महाराज ने नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पहले दिन कहा कि जहां भक्त रहते हैं वहीं भगवान वास करते हैं. भगवान बैकुंठ में नहीं रहना चाहते लेकिन जहां उनकी भक्ति का गुणगान होता है वहां रहना चाहते हैं. भोगी के मन […]

कोलकाता. पवित्र पुरुषोत्तम मास में आज श्रीमत्पंचखण्डपीठाधीश्वर समर्थगुरु पाद परमपूज्य आचार्य स्वामी श्री धर्मेद्रजी महाराज ने नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पहले दिन कहा कि जहां भक्त रहते हैं वहीं भगवान वास करते हैं. भगवान बैकुंठ में नहीं रहना चाहते लेकिन जहां उनकी भक्ति का गुणगान होता है वहां रहना चाहते हैं.

भोगी के मन में भोग रहता है जबकि भक्त के मन में हमेशा भजन का मनन होता रहता है. सभी को कीर्तन करना चाहिए. कीर्तन में जो ताल दे वही है ताली. मनोरंजन के लिए कथा नहीं है. कथा का एकमात्र उद्देश्य होता है सर्वत्र भगवान का कीर्तन गूंजे. जिस दिन ऐसा होगा उस दिन नयी क्र ांति आयेगी. महाराजजी ने कहा कि तुलसीदास ने कहा है कि माया कभी दीवार नहीं बनती. मां ही बेटे को पिता से मिलाती है. जीव को मिलाने वाली हमारी मां है. सीता मैया ने ही लव-कुश को श्रीरामजी से परिचय करवाया था. राम ने सीताजी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. सीताजी को परीक्षा देनी पड़ी थी. सनातन धर्म में भजन, कीर्तन का काफी अधिक महत्व है. आजकल के जमाने में हमारे बच्चे और परिवार पश्चिमी सभ्यता की पकड़ में जकड़ता जा रहा है. जो समाज, परिवार के लिए घातक सिद्ध हो सकता है.

हमारे बच्चों में सनातन धर्म की सीख बचपन से ही देनी चाहिए ताकि उसमें पश्चिमी सभ्यता का असर न पड़े. बच्चे को संस्कारी बनाने में माता-पिता की प्रमुख भूमिका होती है. आजकल के माता-पिता काफी व्यस्त हो गये हैं जिसके कारण उनके बच्चे कुसंस्कारी होते जा रहे हैं. इसका असर माता-पिता पर ही पड़ रहा है जिसके कारण वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है. अपने पिता व्यास मुनि से श्रीमद्भागवत कथा सुनने के बाद शुकदेव जी ने कहा : मैं आपको क्या दक्षिणा दूं. तब वेदव्यास ने कहा कि जो श्रीमद्भागवत कथा मुझसे सुने हो उसका जगत में प्रचार-प्रसार करो. संसार का अद्वितीय ग्रंथ महाभारत है.

दयानंद सरस्वती ने भी इसे आर्ष ग्रंथ कहा है. ऐसे अद्वितीय ग्रंथ लिखने के बावजूद भी उन्हें तृप्ति और आनंद नहीं मिला. नारद के कहने पर वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत कथा को लिखा तभी उन्हें सचमुच ब्रह्मानंद की प्राप्ति हुई. महाराजजी ने कहा कि हमारे देश में सनातन धर्म का बोलबाला सदा से रहा है. हाल के कुछ दिनों में परिवर्तन जरूर हुआ है. जिस दिन सिंधु नदी के तट पर कथा का आयोजन होगा उस दिन हमारा देश सनातनी हो जायेगा. इसके लिए हम सबों को मिलकर काम करना होगा. इससे पहले विश्वनाथ सेकसरिया, रामलाल तिवारी, श्रीभगवान बगड़िया, पुरुषोत्तम परसरामपुरिया, शंकरलाल गुप्ता (हेतमपुरिया), शिवकुमार गुप्ता (मातनिया), नारायण प्रसाद बगड़िया, हरिकिशन निगानिया, अरु ण कुमार गुप्ता, विजय गुप्त निगानिया आदि ने महाराजजी का माल्यार्पण कर स्वागत किया. कार्यक्र म का संचालन महावीर रावत ने किया.

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