कोलकाता : कलकत्ता हाइकोर्ट ने पश्चिम बंगाल विधानसभा द्वारा पारित उस विधेयक को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए निरस्त कर दिया, जिसके जरिये ममता बनर्जी सरकार ने राज्य के मंत्रियांे को ‘परामर्श देनेवाले’ 26 संसदीय सचिव नियुक्त किये थे. चीफ जस्टिस मंजुला चेल्लूर और जस्टिस असीम कुमार बनर्जी की खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते एवं अन्य प्रावधान) विधेयक 2012 को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) का उल्लंघन करता है.
संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) में कहा गया है कि मुख्यमंत्री के नेतृत्ववाले मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती. लेकिन राज्य सरकार में इनकी संख्या इससे अधिक है, क्योंकि राज्य सरकार ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है व उन्हें भी राज्यमंत्री की तरह सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, जो संविधान के खिलाफ है. राज्य सरकार ने विभिन्न विभागों में 25 परिषदीय सचिव की नियुक्ति की है. अदालत ने यह भी कहा कि राज्य विधानसभा इस तरह का कानून बनाने के लिए सक्षम नहीं है.
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने मंत्रियों के कामकाज में सहयोग करने के लिए संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी. राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये गये संसदीय सचिव के संबंध में विशाल भट्टाचार्य व पुष्पल चक्रवर्ती ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस मामले की पैरवी करते हुए याचिकाकर्ता पक्ष के वकील विकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य सरकार के पास संसदीय सचिव नियुक्त करने का अधिकार ही नहीं है. राज्य के विभिन्न विभागों के लिए 44 मंत्री बनाये गये हैं और उसके बाद मुख्यमंत्री ने 25 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है. इस तरह से आम जनता के धन को बरबाद किया जा रहा है.