कोलकाता. राज्य सरकार और कोलकाता नगर निगम के संयुक्त प्रयास से महानगर को सजाया संवारा जा रहा है. इस ऐतिहासिक शहर को एक नया रंग व रूप देने की कोशिश हो रही है, पर न तो सरकार की नजरें इस खतरे की ओर है और न ही निगम की. भूगर्भ जल स्तर में तेजी से […]
कोलकाता. राज्य सरकार और कोलकाता नगर निगम के संयुक्त प्रयास से महानगर को सजाया संवारा जा रहा है. इस ऐतिहासिक शहर को एक नया रंग व रूप देने की कोशिश हो रही है, पर न तो सरकार की नजरें इस खतरे की ओर है और न ही निगम की. भूगर्भ जल स्तर में तेजी से आ रही कमी से इस शहर पर जबरदस्त खतरा मंडरा रहा है. पानी में आर्सेनिक की मात्र बढ़ रही है और शहर पर भूकंप का खतरा काफी बढ़ गया है. हालांकि निगम रोजाना शहरवासियों को 345 मिलियन गैलन पानी की सप्लाई कर रहा है, पर इसके बावजूद बढ़ती आबादी की बढ़ती मांग के कारण अंधाधुंध बोरिंग भी हो रही है. स्वयं निगम के 264 गहरे ट्यूबवेल एवं 10 हजार हैंड पंप हैं.
आम धारणा यह है कि इन डीप ट्यूबवेल और हैंड पंप (चापाकल) से रोजाना 400 मिलियन लीटर से अधिक पानी निकाला जाता है. अनियंत्रित जल निकासी के कारण सेंट्रल कोलकाता में भूगर्भ जल का स्तर पांच से 16 मीटर तक नीचे चला गया है. एक शोध के अनुसार महानगर में जल निकायों की संख्या में भारी कमी के कारण लोगों का भूगर्भ जल पर निर्भरता बढ़ी है. चूंकि भूगर्भ जल को बगैर किसी जांच के इस्तेमाल में लाया जाता है, इसलिए शहर की एक बड़ी आबादी आर्सेनिक व फ्लोराइड युक्त जल का इस्तेमाल कर रही है. महानगर के 144 में 77 वार्ड ऐसे हैं, जहां भूगर्भ जल में आर्सेनिक की अत्यधिक मात्र पायी गयी है. इनमें से 32 वार्डो में तो आर्सेनिक का स्तर खतरे के निशान को भी पार कर गया है और 32 से अधिक वार्ड के भूगर्भ जल में घातक उपधातु के नमूने भी पाये गये हैं. पर फिलहाल इसका स्तर खतरे के निशान से काफी नीचे है.
विशेषज्ञों के अनुसार हरियाली में कमी और बड़ी-बड़ी इमारतों के निर्माण के कारण औसतन प्रत्येक वर्ष महानगर भूगर्भ जल स्तर दो फीट नीचे जा रहा है. अगले दस वर्ष में यह 20 फीट तक नीचे चला जायेगा. सबसे खतरनाक तसवीर बाइपास संलग्न इलाकों की है, जहां पिछले एक दशक से कुछ अधिक समय में भूगर्भ जल के स्तर में 15-20 फीट तक की कमी आयी है.
आमतौर पर मानसून के महीने में जल स्तर में इजाफा होता है, पर यहां तो इसके विपरीत है. निगम के अधिकारी के अनुसार मानसून की समाप्ति के बाद जल स्तर में किसी तरह का इजाफा देखने को नहीं मिलता है. इसका मुख्य कारण भूगर्भ जल के स्तर में इजाफा किये जाने की कोई व्यवस्था का उपलब्ध नहीं होना है.