कोलकाता : वयोवृद्ध पत्रकार, साहित्यकार, कवि डॉ रु क्म त्रिपाठी का दो नवंबर की शाम देहांत हो गया. वे 93 वर्ष के थे. छह दशक से भी अधिक समय तक पत्रकारिता से जुड़े रहे और कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया. वे लंबे अरसे से अस्वस्थ चल रहे थे. उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के बेलबई गांव में 12 जुलाई 1925 को पराधीन भारत में जन्मे थे. देश को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए स्वाधीनता आंदोलन में भी योगदान दिया.
लाठियां खायीं, प्रताड़नाएं सहीं. मासिक-रूपवाणी, पागल, राजश्री, गल्प भारती, घरोवा साप्ताहिक-स्क्र ीन (हिंदी), स्वप्नलोक का संपादन किया. 50 वर्ष तक सन्मार्ग हिंदी दैनिक में साहित्य संपादक व महानगर सांध्य दैनिक का संपादक किया. उन्हें कई सम्मान मिले. लायंस क्लब कोलकाता द्वारा पत्रकारिता के 50 साल पूरे होने पर सम्मान, विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर की ओर से विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि मिली.
पीयूष साहित्य परिषद पटना की ओर से पत्रकारिता सम्राट, राजश्री स्मृति न्यास से सम्मान, मनीषिका कोलकाता से सार्वत रचनाकार सम्मान मिला. उन्होंने रोशनी और रोशनी, अनचाही प्यास, बर्फ की आग, मेरे दुश्मन मेरे मीत, अंगूरी, नीली रोशनी उपन्यास लिखे. उनके बहके कदम और नरोत्तम नारायणी (विधानचंद्र राय की जिंदगी पर आधारित) उपन्यास धारावाहिक छपे.