कोलकाता : बकाये बिल के कारण कोलकाता के एक गैरसरकारी अस्पताल में दो माह से 64 वर्षीय वृद्धा को बंद करके रखा गया था. पीड़ित के परिवार को स्वास्थ्य आयोग और पुलिस प्रशासन में शिकायत के बाद भी कोई मदद नहीं मिली थी. अंत में हाइकोर्ट की शरण में गये पीड़ित परिवार को न्याय का मानवीय चेहरा दिखा और हाईकोर्ट के निर्देश के बाद अस्पताल से वृद्धा को रिहाई मिली. हाइकोर्ट ने गुरुवार को वृद्ध महिला वंदना बागची को रिहा करने का निर्देश जारी किया. बताया जा रहा है कि अस्पताल का बिल सात लाख के करीब हो गया था. हालांकि पीड़ित परिवारवालों ने दो दिनों में बिल बढ़ाने का भी आरोप लगाया है.
जानकारी के मुताबिक, हाइकोर्ट के न्यायाधीश जयमाल्य बागची व न्यायाधीश राजश्री भरतराज की डिवीजन बेंच ने अस्पताल प्रबंधन को बिल के लिए वृद्धा को रोक कर रखने की घटना की निंदा की और साथ ही कहा कि रोक कर रखने की वजाय कानूनी कदम उठाना उचित था, लेकिन इस तरह से किसी को रोक कर या बंद करके या कैद करके रखना गलत है.
तुरंत अस्पताल को उसे रिहा करने का निर्देश दिया गया. इधर, कोर्ट में अधिवक्ता सौम्यदास गुप्ता ने अदालत को बताया कि गत साल 13 दिसंबर सांस की समस्या से सॉल्टलेक के एक गैर सरकारी अस्पताल में वंदना को भर्ती कराया गया था. वह 26 दिसंबर को अस्पताल से छूटने वाली थी, लेकिन अस्पताल में बिल ज्यादा हो जाने के कारण उन्हें नहीं छोड़ा गया और जब तक बिल नहीं मिटाया जायेगा, तब तक नहीं छोड़ने की बात कहते हुए अस्पताल ने अपनी बात रखी थी.
महिला के पति सुबीर बागची ने अस्पताल से बकाये रकम के लिए समय की मांग की थी, लेकिन अस्पताल ने इजाजत नहीं दी और वृद्धा को नहीं छोड़ा. सुबीर ने पुलिस व प्रशासन से मदद की गुहार लगाने के बाद हाइकोर्ट का दरबाजा खटखटाया था. कोर्ट ने अंत में एक बजे तक वृद्धा को छोड़ने और दो बजे इसकी रिपोर्ट अदालत को बताने के लिए विधाननगर नार्थ थाने की पुलिस को निर्देश दिया. दो बजे पुलिस ने कोर्ट में वृद्धा की रिहाई व उसके परिवार के हाथ सौंपने की रिपोर्ट दी.