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सशक्तीकरण के लिए दिव्यांगजनों को दिये गये राष्ट्रीय पुरस्कार, हावड़ा की सुकेशी को राष्ट्रपति पुरस्कार
नयी दिल्ली/हावड़ा: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस के अवसर पर दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिए हावड़ा की समाजसेविका सुकेशी बारूई को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके अलावा देश के आैर कई समाजसेवियों को राष्ट्रपति ने पुरस्कार से सम्मानित किया गया. राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान में दिव्यांगजनों सहित सभी […]
नयी दिल्ली/हावड़ा: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस के अवसर पर दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिए हावड़ा की समाजसेविका सुकेशी बारूई को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके अलावा देश के आैर कई समाजसेवियों को राष्ट्रपति ने पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान में दिव्यांगजनों सहित सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, न्याय और गरिमा की गारंटी दी गयी है. सरकार ने दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण, समावेश और उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने के लिए कानून लागू किये हैं.
उन्होंने कहा कि किसी भी दिव्यांगजन का मूल्यांकन उसकी शारीरिक क्षमता से नहीं, अपितु उसकी बुद्धि, ज्ञान और साहस से किया जाना चाहिए. राष्ट्रपति ने पुरस्कार विजेताओं को बधाई देते हुए कहा कि उन्हें पूर्ण आशा है कि वे अन्य दिव्यांगजनों को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए प्रेरणा दे सकेंगे. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि हमारे देश के नागरिक अपने सभी दिव्यांगजन भारतीयों के लिए एक उचित और संवेदनशील दृष्टिकोण के साथ एक नये समावेशी भारत का निर्माण करेंगे.
कौन हैं सुकेशी बारूई
59 वर्षीय सुकेशी बारूई उलबेड़िया के काटिला में रहती हैं. घर पर एक बेटा है. 70 के दशक में समाजसेवा का सफर शुरू हुआ. कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर उन्होंने मानसिक आैर शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों आैर लोगों के लिए काम करना शुरू किया. वर्ष 1978 में आमता में भयावह बाढ़ आयी थी. सुकेशी खुद से बाढ़ पीड़ितों के बीच जाकर मदद की थी. इसके अलावा ओड़िशा में आये तूफान में वह खुद पहुंचीं थीं. करीब 30 साल विभिन्न एनजीओ के साथ काम करने के बाद वर्ष 1999 में वह उलबेड़िया के काटिला में आशा भवन सेंटर का निर्माण किया. वतर्मान में अलग-अलग जिलों में 11 सेंटर हैं, जहां 15000 दिव्यांगजनों की सेवा की जाती है. साथ ही 11 स्पेशल स्कूल भी हैं. इन स्कूलों में सामान्य बच्चों के साथ मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को विषेश तरीके से शिक्षा दी जाती है. कुल 11 स्कूलों में बच्चों की संख्या 2500 है. वर्तमान में उलबेड़िया आशा भवन सेंटर में 111 लड़कियां हैं. ये सभी 18 साल की कम आयु की हैं.
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