एटॉपिक डर्मेटाइटिस को दवा के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है. इस बीमारी के कारण त्वचा की नमी खो जाती है. त्वचा के शुष्क होने के कारण खुजली होने लगती है. ज्यादातर लोग अनुवांशिक जीन के कारण इसके चंगुल में फंसते हैं. ऐसे लोगों को किसी भी वस्तु या जानवरों से एलर्जी हो सकती है. मौसम के बदलाव होने से भी इन्हें सर्दी-खांसी की समस्या हो सकती है. इस बीमारी के चंगुल में फंसे लोगों को कुछ खाद्य पदार्थों जैसे मूंगफली, अंडे, गेहूं मछली या सोया उत्पादों से एलर्जी की समस्या हो सकती है.
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राज्य में नौ फीसदी लोग एक्जिमा की चपेट में
कोलकाता : शिशुओं के त्वचा संबंधी मिथक व गतल धारणा के पीछे की सच्चाई को जानने तथा जागरूकता के लिए महानगर के कला मंदिर में इंडियन सोसाइटी फॉर पेडियाट्रिक डर्मेटोलॉजी (आइएसपीडी) की ओर से एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इस सेमिनार में आइएसपीडी के अध्यक्ष तथा इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के वरिष्ठ चर्म रोग […]
कोलकाता : शिशुओं के त्वचा संबंधी मिथक व गतल धारणा के पीछे की सच्चाई को जानने तथा जागरूकता के लिए महानगर के कला मंदिर में इंडियन सोसाइटी फॉर पेडियाट्रिक डर्मेटोलॉजी (आइएसपीडी) की ओर से एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इस सेमिनार में आइएसपीडी के अध्यक्ष तथा इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के वरिष्ठ चर्म रोग विशेषज्ञ प्रो डॉ संदीपन धर, त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ रघुबीर बनर्जी और डॉ राजीव मालाकार उपस्थित थे.
डॉ धर ने बताया कि त्वचा में होनेवाली बीमारियों को लेकर लोगों के मन में कई गलत धारणाएं हैं. उन्होंने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि एटॉपिक डर्मेटाइटिस (एक्जिमा) त्वचा में होनेवाली बीमारी है. पश्चिम बंगाल में करीब नौ फीसदी लोग जबकि देशभर में करीब 11 फीसदी लोग इसकी चपेट में है. उत्तर भारत में इस बीमारी से ग्रसित मरीजों की संख्या अधिक है.
भारत में एक फीसदी लोग विटिलिगो की चपेट में
डॉ धर ने इस दौरान विटिलिगो बीमारी पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारत में करीब एक फीसदी लोग विटिलिगो की चपेट हैं. जबकि पश्चिम बंगाल 0.5 से 0.6 फीसदी लोग इसके शिकार हैं. डॉ ने बताया कि आम तौर पर 200 में एक बच्चा इसकी चपेट में है.
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