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महानगर की पहली कैब ड्राइवर कैसे बनीं सुचेता

कोलकाता. सुचेता सिन्हा कभी कारपोरेट जगत से जुड़ी थीं. वर्ष 2014 में हुए एक हादसे ने उनका जीवन बदल दिया. सलफ्यूरिक एसिड से लदी एक साइकिल उन पर गिर गयी थी, जिससे उनके शरीर का 43 फीसदी हिस्सा झुलस गया था. इस हादसे से उबरने में उन्हें नौ महीने लगे और काफी पैसा खर्च हो […]

कोलकाता. सुचेता सिन्हा कभी कारपोरेट जगत से जुड़ी थीं. वर्ष 2014 में हुए एक हादसे ने उनका जीवन बदल दिया. सलफ्यूरिक एसिड से लदी एक साइकिल उन पर गिर गयी थी, जिससे उनके शरीर का 43 फीसदी हिस्सा झुलस गया था. इस हादसे से उबरने में उन्हें नौ महीने लगे और काफी पैसा खर्च हो गया. उन्होंने स्वास्थ्य बीमा नहीं कराया था. लिहाजा सुचेता ने अपने गहने गिरवी रखे और उससे मिले पैसों से एक कार खरीदी. शुरुआत में उन्होंने ड्राइवर रखा था. लेकिन कुछ समस्याएं होने लगी. सुचेता कहती हैं कि पुरुष प्रधान समाज में गाड़ी चालक आमतौर पर पुरुष ही होते हैं. उन्हें लगता है कि गाड़ी चलाने का काम पुरुषों का है.

अपने निजी काम के लिए जब वह गाड़ी का इस्तेमाल करते थे और पकड़े जाने पर उलटे नाराज हो जाते थे. एक बार तो उनके एक चालक ने कहा कि वह एक महिला हैं और महिला की तरह रहें. सुचेता ने उसे तत्काल नौकरी से निकाल दिया. वर्तमान में सुचेता की एक गाड़ी से दैनिक आय पांच हजार रुपये है. उनके पास फिलहाल सात कार है. कई अन्य ड्राइवर उनकी सहायता करते हैं.

अभी भी शारीरिक तौर पर वह अधिक सक्षम नहीं. हादसे ने उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव डाला है. लेकिन मानसिक तौर पर वह बेहद शक्तिशाली हैं. जब सुचेता ने यह करियर चुना तो उनके घरवालों ने इसका विरोध किया. लेकिन उन्होंने यह ठान लिया था कि अपनी राह उन्हें खुद चुननी होगी. वह कहती हैं कि जब तक पैसे ईमानदारी से कमाये जाये कोई भी काम गलत नहीं होता. कोलकता को अन्य भारतीय शहरों से सुरक्षित मानते हुए वह कहती हैं कि जब भी लोग उनकी कैब में बैठते हैं तो अधिकांश समय उन्हें अपनी कहानी बतानी पड़ती है.

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