कोलकाता: प्राचीन काल में जब अंगरेज कोलकाता से लंदन जाते थे, तो वे अपने साथ जहाजों में गंगा जल भी ले जाते थे. इसका इस्तेमाल वे महीनों तक खाने-पीने के लिए करते.
कई महीनों तक स्टॉक में रहने के बाद भी गंगा जल पवित्र व निर्मल बना रहता. लेकिन आज गंगा का पानी प्रदूषित हो चुका है. विकास की बात करने वालों से यह पूछना चाहिए कि अमृत-तुल्य गंगा जल आखिर क्यों विष तुल्य हो गया है.
ये बातें ज्योतिष, द्वारका व शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने हुगली के कोन्नगर स्थित राज राजेश्वरी सेवा मठ में प्रवचन करते हुए कहीं. उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि कोलकाता में भी गंगोत्री जैसा गंगा जल मिले. कोन्नगर को एक पवित्र स्थान घोषित करते हुए उन्होंने कहा कि यह स्थान गंगा के पश्चिम-तट पर स्थित है, लिहाजा यह काशी जैसा पवित्र है. जहां से गंगा पूर्व दिशा की तरफ हो जाती है वह स्थान काशी जैसा मुक्ति प्रदाता माना जाता है.
उन्होंने गंगा अवतरण की पौराणिक कथा को सुनाते हुए कहा कि भगीरथ की तपस्या से सागर के 60 हजार पुत्रों को उद्धार करने के लिए मां गंगा पृथ्वी पर आयी. इसी पौराणिक मान्यता को मानते हुए प्राचीन काल से हिंदू अपने इष्ट-मित्रों की अस्थियां का विसजर्न गंगा में करते हैं, और बड़े ही आश्चर्यजनक रूप से अस्थियां भी गंगा जल में घुल जाती हैं. महाराज ने कहा कि गंगा का जल अस्थि विसजर्न से नहीं, बल्कि कारखानों का रासायनिक अपशिष्ट, अस्पतालों के कचरे से प्रदूषित हो रही हैं. गंगा की सर्वोच्च आध्यात्मिक महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि जिसने गीता का थोड़ा भी अध्ययन कर के गंगा जल का आचमन कर लिया, उस व्यक्ति से यम दूत भी दूर भागते हैं. इस दौरान महाराज के निजी सचिव ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद जी, प्रभारी ब्रह्मचारी सच्चित स्वरूप, इंद्रदान चारण, शशि रुंगटा, अरुण पाटोदिया, शरद शिवहरे आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे.