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बच्चे को जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं पिता
कोलकाता. एक बच्चे की परवरिश में माता-पिता की भूमिका अहम होती है. मां की ममता का कोई मोल नहीं होता लेकिन बच्चे को दुनिया में रहना, जीना, कठिनाइयों से संघर्ष करना, जीवन में सफल मुकाम तय करने की जिम्मेदारी का अहसास एक पिता ही कराता है. कहा भी गया है कि मां धरती तो पिता […]
कोलकाता. एक बच्चे की परवरिश में माता-पिता की भूमिका अहम होती है. मां की ममता का कोई मोल नहीं होता लेकिन बच्चे को दुनिया में रहना, जीना, कठिनाइयों से संघर्ष करना, जीवन में सफल मुकाम तय करने की जिम्मेदारी का अहसास एक पिता ही कराता है. कहा भी गया है कि मां धरती तो पिता है आसमान. प्रत्येक वर्ष जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे के रूप में मनाया जाता है. इस मौके पर प्रभात खबर, कोलकाता के कार्यालय में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया. मौके पर अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े सम्मानित जनों ने अपने अनुभव बताये. मौके पर प्रभात खबर, कोलकाता संस्करण के संपादक तारकेश्वर मिश्र भी मौजूद थे.
प्रेम कपूर (अनुवादक) : पिता को याद रखने के लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं होती है. मां की तरह बच्चे की परवरिश में पिता की भूमिका काफी अहम होती है. बच्चे के लालन-पालन में मां की सक्रिय भूमिका होती है लेकिन बच्चे की परवरिश को सही दिशा एक पिता ही देता है. मैं जब छोटा था तब बिना कुछ कहे मेरी जरूरत को पिताजी पूरी कर देते थे. मैंने एक बार उनसे पूछा था कि आप ऐसा कैसे कर लेते हैं तो उन्होंने बस इतना कहा कि तुम जब पिता बनोगे तो इसका पता चल जायेगा. पिता बनने के बाद मुझे उनकी बात समझ में आयी. मां बच्चों को संस्कार देती है लेकिन नैतिकता और अच्छे व्यक्तित्व का पाठ एक पिता ही बच्चों को पढ़ाता है.
नवल किशोर श्रीवास्तव (एटक समर्थित परिवहन संगठन के वरिष्ठ नेता) : बच्चों के सही निर्माण में पिता की भूमिका सबसे अहम होती है. पिता का चरित्र अच्छा होगा तो उसके बच्चे भी अच्छा बनेंगे. काफी पहले की बात है जब एक विषय में करीब नौ अंक कम लाने की वजह से उक्त विषय में मेरा बेटा फेल हो गया था लेकिन मैंने उसके अंक बढ़ाने के लिए स्कूल के प्रिसिंपल से पैरवी नहीं की. यदि मैं उस वक्त पैरवी कर देता तो मेरे बेटे का विकास वहीं थम जाता. यानी पिता के आदर्श का प्रभाव बच्चों पर जरूर पड़ता है. यह बात सही है कि मां धरती तो पिता है आसमान. बच्चे घर से सीखते हैं और परिवार के सही निर्माण में पिता की भूमिका काफीअहम होती है.
मनजीत सिंह गिल (पूर्व हॉकी खिलाड़ी) : मैंने अपने सपनों को अपने बच्चों में देखा. उनकी शिक्षा में कोई कसर नहीं रह जाये, इस पर जोर दिया. पिता वह है जो अपने बच्चों को स्नेह के साथ अनुशासन व दुनियादारी की सीख देता है. पिता के आदर्शों का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है. आज के दौर में जीवन काफी व्यस्त हो गया है. मां-बाप दोनों काम करने लगे हैं. ऐसे में अभिभावकों का सही वक्त बच्चों को नहीं मिल पा रहा. ऐसे में बच्चों का जीवन जैसे कोरे कागज के समान हो गया है. यही वजह है कि ओल्डेजहोम की प्रथा शुरू हो गयी है. हमारे देश में ओल्डेजहोम की संस्कृति नहीं रही है. अभी के दौर में बच्चों को ज्यादा समय देने की जरूरत है. नींव मजबूत होगी तो इमारत भी बुलंद रहेगी.
मनजीत सिंह ग्रेवाल (प्रसिद्ध समाजसेवी) : सबसे पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समय से पहले बच्चों की जरूरतें पूरा करना ठीक नहीं. पिता ही बच्चों को मेहनत की सीख देता है. पिता का आदर्श बच्चों के लिए सबसे अहम होता है. यदि पिता आदर्शवान और उसका चरित्र अच्छा हो तो बच्चों भी आदर्शवान व चरित्रवान बनते हैं.
त्रिभुवन कुमार मिश्रा (राष्ट्रीय भोजपुरिया एकता मंच के अध्यक्ष) : मां की ममता का कोई मोल नहीं. उसकी ममता दिखती है लेकिन एक पिता की जिम्मेदारी केवल बच्चों से स्नेह करने की ही नहीं बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार व्यक्ति बनाने की भी है. बच्चों का भी कर्तव्य बनता है कि वे अपने दायित्व का सही तरीके से निर्वहन करें. बच्चों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए की पिता की वजह से वे हैं.
राकेश कुमार भालोटिया (एचएमएजी टाइगर्स चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व मैनेजिंग ट्रस्टी) : रही एक पिता की बात तो मैंने अपने पिता से जो कुछ सीखा है वह मेरे जीवन में अनमोल है.
पिता बच्चों को हर परिस्थिति से निबटने की सीख और जिम्मेदार बनने का अहसास दिलाते हैं. मेरा जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. स्कूल में पढ़ाई के दौरान मैंने अपने प्रधानाध्यापक को फीस माफ करने के लिए मना लिया था लेकिन जब मेरे पिता को पता चला तो उन्होंने ऐसा नहीं करने दिया. उन्होंने इतना कहा कि वे फीस दे सकते हैं. बच्चों के निर्माण में पिता की भूमिका काफी अहम होती है. वह बात सही है कि बिन बरसात फसल नहीं होती और बिन संस्कार जीवन सफल नहीं होता.
अशोक पुरोहित (समाजसेवी) : यह सही बात है कि जिन बच्चों के पिता नहीं है उनके सिर पर आकाश नहीं है.यदि ऐसा बच्चा मिले तो आप उसका आकाश बन जाओ. मेरे पिता ने हमेशा मुझे मोटिवेट किया. वे अपने कार्यालय में अधिकारियों से मिलवाते थे. कई अधिकारी कहते थे कि सीएस बनना मेरे लिए आसान नहीं है. मेरे पिता ने मुझे कुछ नहीं कहा लेकिन उनकी चाहत उनका सपना मुझे पता चल गया. पिता चाहते थे कि उनका बेटा भी वैसा अधिकारी बने. मैंने अपने पिता से यह बात सीखी है यानी बच्चों को सारी बातें बोलने की नहीं बल्कि आचरण से समझाने की भी जरूरत होती है.
विमल शर्मा (टेलीकॉम कंस्लटेंट) :बच्चों के साथ संवाद जरूरी है. बच्चों को सही जानकारी और जिम्मेदार बनने का अहसास पिता बेहतर तरीके से करा सकता है. मैं अपने बेटे से बात करता हूं. हर विषयों पर बात करता हूं. बच्चों को सही सीख देने में पिता की भूमिका काफी अहम होती है.
सेराज खान बातिश (साहित्य जगत से जुड़े) : मेरा बचपन शायद सबसे जुदा हो. मैंने पिता से कष्ट पाये, हालांकि उन्हीं कष्टों से मुझे सीख भी मिली. मेरे पिता मुझे कहीं भी ले जाने में हिचकिचाते थे. उनकी यही बातोें से मुझे कई सीख भी मिली. मैंने अपने बच्चों के साथ ऐसा न किया. बेटियों को ज्यादा पढ़ाया. बेटे को ऐसी सीख दी कि उसे कभी भी मेरे साथ चलने में दिक्कत नहीं हुई. असल में पिता बनना तो सहज होता है लेकिन एक पिता की जिम्मेदारी निभाना काफी कठिन है.
सज्जन सहल (एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ) : मेरा बचपन काफी कष्टों में बिता. काफी संघर्षों के बीच मैं बड़ा हुआ. मेरी पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण मैंने अपने बच्चों के लिए मां-बाप दोनों की जिम्मेदारी निभायी है. हर पिता की तरह मेरे बच्चों के प्रति काफी स्नेह है.
इसके बावजूद पिता बनने के बाद मैंने अपने बच्चों में यह आदत कभी नहीं डाली की सारी चीजें आसानी से मिल जाये. मुझे खुशी है कि इसी व्यवहार ने मेरे बच्चे आत्मनिर्भर बन पाये हैं. पिता अपने बच्चों के जिम्मेदारी का अहसास कराता है.
राजा बाबू सिंह (योग शिक्षक व समाजसेवी) : सवाल यह है कि हम अपने बच्चों को कितना समय दे पाते हैं? सच मानिये तो न हम अपने आप को समय दे पाते हैं न अपने बच्चों को. बच्चों की गलती पर केवल उन्हें दोष देना सही नहीं है. पहले अपने आपको को अनुशासित करने की जरूरत है. जब अपने को अनुशासित रखेंगे तो बच्चे भी अनुशासन के दायरे में होंगे. अपने बच्चे के प्रति यह जिम्मेदारी मां-बाप दोनों को निभानी जरूरी है. बच्चों के अंदर जिस आदर्श को आप देखना चाहते हैं उसे पहले अपने अंदर लायें. बच्चों को जिम्मेदार बनाने के लिए पिता की भूमिका ज्यादा अहम होती है.
डॉ एपी राय (स्कूल के प्रधानाचार्य) : मौजूदा समय में हम पाश्चात्य संस्कृति से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं.अपनी संस्कृति को बच्चे नहीं भूलें यह जरूरी है. पिता के समक्ष आर्थिक समस्याएं होती है लेकिन बच्चों को नैतिकता का पाठ एक पिता ही अच्छे से पढ़ा सकता है. ताकि उसका बच्चा सुयोग्य नागरिक बन सके. सबसे पहले अपने अंदर वह गुण ढूंढे जो अपने बच्चों के अंदर आप ढूंढ़ते हैं. परिचर्चा में विनोद सिंह, रछपाल सिंह, राजविंदर सिंह गरेबाल, शिक्षक जय प्रकाश पांडेय, डीएन ओझा, रामजी राय समेत अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे.
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