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सेंसर भेजेगा ट्रेन ड्राइवर को हाथी की मौजूदगी का संदेश, महानंदा अभयारण्य से लगी रेल लाइन पर परीक्षण शुरू

नागराकाटा: ट्रेन के धक्के से हाथियों को बचाने के लिए स्पेनिश तकनीक का इस्तेमाल करके एक अल्ट्रासोनिक साउंड कैचर बनाया गया है. यह उपकरण अत्यंत संवेदनशील सेंसर से लैस है, जो करीब आधा किलोमीटर दूर से हाथियों की किसी गतिविधि से उत्पन्न हल्की से हल्की आवाज को पकड़ लेगा. साथ ही आसपास के क्षेत्र में […]

नागराकाटा: ट्रेन के धक्के से हाथियों को बचाने के लिए स्पेनिश तकनीक का इस्तेमाल करके एक अल्ट्रासोनिक साउंड कैचर बनाया गया है. यह उपकरण अत्यंत संवेदनशील सेंसर से लैस है, जो करीब आधा किलोमीटर दूर से हाथियों की किसी गतिविधि से उत्पन्न हल्की से हल्की आवाज को पकड़ लेगा. साथ ही आसपास के क्षेत्र में हाथियों की मौजूदगी की सूचना वन विभाग के कार्यालय में भेज देगा.

ऑटोमेटिक तरीके से रेल लाइन से गुजर रही ट्रेनों के चालकों और गार्डों के पास भी एसएमएस चला जायेगा. इसके अलावा देसी तकनीक से बना सेस्मिक सेंसर भी है, जिसे जमीन के नीचे फिट किया जायेगा. 500 से 700 से मीटर की दूरी पर अगर हाथियों का कोई झुंड है तो उनके पैरों से जमीन में होनेवाला कंपन सेंसर की पकड़ में आ जायेगा और वन विभाग के पास अपने आप अलर्ट चला जायेगा. इसके अलावा हाथियों की मौजूदगी की खबर इंफ्रारेड किरणों के इस्तेमाल से भी मिल सकती है, जो रात के अंधेरे में हाथियों के शरीर की गर्मी से एक थर्मल इमेज दे सकते हैं.

उपरोक्त तकनीकों के आधार पर एक योजना बनाकर केंद्र सरकार को जल्द ही सौंपी जायेगी. शनिवार को चालसा के एक रिसॉर्ट में ‘ट्रेन के धक्के से उत्तर बंगाल में हाथियों की मौत रोकने के लिए विभिन्न तकनीकों के इस्तेमाल’ पर एक दो-दिवसीय कार्यशाला में इस बारे में चर्चा की गयी. इसमें देश-विदेश के विशेषज्ञों, तकनीकविदों, वन और रेल विभाग के अधिकारियों ने हिस्सा लिया. इसका आयोजन बेंगलुरू की एशियन नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन नामक एक संस्था ने किया. इस संस्था में शीर्ष पद देश के जाने-माने हाथी विशेषज्ञ डॉ रमन सुकुमार हैं.

एशियन नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन और वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि प्रायोगिक तौर पर महानंदा अभयारण्य से लगे रेल पथ पर स्पेन की एक संस्था द्वारा तैयार अल्ट्रासोनिक साउंड कैचर यंत्र लगाया गया है. इसके काम को वन विभाग और रेलवे दोनों ही परख लेना चाहते हैं. कार्यशाल के दौरान प्रजेंटेशन में बताया गया कि इसी तकनीक से समुद्र में डॉल्फिनों की मौजूदगी की सटीक जानकारी मिल जाती है.

अगर यह हाथियों के मामले में भी सफल होती है, तो ट्रेन के धक्के से हाथियों की मौत की घटनाओं को काफी हद तक रोक जा सकेगा. वहीं आइआइटी दिल्ली के एक अध्यापक सुब्रत सूर द्वारा तैयार सेस्मिक सेंसर यंत्र की कुशलता ने कार्यशाला में उपस्थित सभी लोगों को हैरत में डाल दिया. इसके अलावा भी कई तरह की तकनीकों का प्रदर्शन किया गया, जिनसे समय रहते रेल लाइन के आसपास हाथियों की मौजूदगी के बारे में जानकारी मिल सकती है.

कार्यशाला आयोजक संस्था इन तमाम तकनीकों के आधार पर एक एक्शन प्लान तैयार करके केंद्र सरकार को देगी. उत्तर बंगाल के मुख्य वनपाल (वन्यजीव) उज्ज्वल घोष ने कहा कि कई तरह की तकनीकों पर चर्चा हुई है. यहां के परिवेश और परिस्थिति में कौन-सी तकनीक सबसे कारगर साबित होगी, इस पर गहन विचार करके देखा जायेगा. अंतिम निर्णय पर पहुंचने में अभी कुछ समय लेगा.

डुआर्स रूट पर 14 साल में मरे 67 हाथी

कार्यशाला में वन विभाग और रेलवे की ओर से दिये गये आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में 1987 से 2015 के बीच ट्रेनों के धक्के से 266 हाथियों की मौत हो चुकी है. अकेले डुआर्स में सिलीगुड़ी से अलीपुरद्वार जंक्शन के बीच 168 किलोमीटर में 2004 से अब तक 67 हाथियों की मौत हुई है. हाथियों पर खतरे को देखते हुए ही डुआर्स रूट को डबल लाइन करने की दिशा में कदम नहीं उठाया जा रहा है.

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