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सांकतोड़िया : भूमिगत खदानों में मोनो रेल चलाने पर विचार

कोयला फेस तक जाने में कर्मियों को तय करनी पड़ती है लंबी दूरी बीसीसीएल की मुनीडीह कोलियरी में इसका ट्रॉयल रहा है पूर्ण सफल आगामी वित्तीय वर्ष में अन्य कंपनियों में भी की जायेगी इसकी तैयारी सांकतोड़िया : कोल इंडिया ने कोयला कर्मियों को बढ़ती खनन परेशानियों को देखते हुए भूमिगत खदानों में जल्दी ही […]

कोयला फेस तक जाने में कर्मियों को तय करनी पड़ती है लंबी दूरी
बीसीसीएल की मुनीडीह कोलियरी में इसका ट्रॉयल रहा है पूर्ण सफल
आगामी वित्तीय वर्ष में अन्य कंपनियों में भी की जायेगी इसकी तैयारी
सांकतोड़िया : कोल इंडिया ने कोयला कर्मियों को बढ़ती खनन परेशानियों को देखते हुए भूमिगत खदानों में जल्दी ही मोनो रेल उतारने की तैयारी में है. ताकि कोयले के फेस तक पहुंचने में कर्मियों को थकावट न हो तथा उनकी ऊर्जा का पूरा-पूरा उपयोग हो सके. अभी इसका ट्रायल बीसीसीएल के वेस्टर्न झरिया एरिया की मुनीडीह खदान में हो रहा है.
कोल इंडिया के सभी आनुषांगिक कोयला कंपनियों की भूमिगत खदानों में इसका उपयोग किया जायेगा. इसका पूरे खदान में पांच किमी एरिया में विस्तार किया जाना है. इस पर 1200 करोड़ की लागत आयेगी. चेक गणराज्य की कंपनी यह काम कर रही है. दो साल में प्रोजेक्ट पूरा होगा. इसी रेल लाइन से बड़ी ट्रॉली से कोयला भी निकाला जायेगा. यह योजना सबसे पहले झरिया में शुरू हो रही है. कोल इंडिया अगले वित्तीय वर्ष में अपनी अन्य अनुषांगिक कंपनियों में इसे शुरू करेगा.
ईसीएल की कई भूमिगत खदानों में श्रमिकों के आने जाने के लिए मैन राइडिंग लगाई गई है. कई खदानों में अभी भी कर्मी पैदल आते-जाते है. भूमिगत खदानों में उतरना काफी जोखिम भरा होता है. कामगारों को कम से कम तीन किलोमीटर तक इसी तरह अंदर जाना पड़ता है और बाहर निकलना पड़ता है. कई खदान तो पांच-पांच किमी के दायरे में है.
पानी रिसने से रास्ते में फिसलन का भी डर बना रहता है. रोजाना सीढ़ियों से अंदर जाने और बाहर निकलने के कारण कामगारों को काफी परेशानी होती है. मोनोरेल में 10 से 12 बोगियां होंगी. एक बोगी में छह से 14 कर्मी एक साथ जा सकेंगे. उन्होने कहा कि मोनो रेल मार्च, 2017 में शुरू हुआ था. 11 मई, 2018 को ट्रायल सफल रहा.

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