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स्कूल में मिल रही नि:शुल्क कोचिंग
डीएवी स्कूल (रूपनारायणपुर) के प्राचार्य एनके महंत ने की पहल अभिभावकों के साथ की बैठक, अतिरिक्त समय में समस्या समाधान रूपनारायणपुर. डीएवी स्कूल (एचसीएल, रूपनारायणपुर) के प्राचार्य एनके महंत ने अपने विद्यालय के छात्नों को ट्यूशन प्रथा से आजादी दिलाने के लिए मुहिम आरम्भ की है. उन्होंने स्कूल की अवधि समाप्त होने के बाद कमजोर […]
डीएवी स्कूल (रूपनारायणपुर) के प्राचार्य एनके महंत ने की पहल
अभिभावकों के साथ की बैठक, अतिरिक्त समय में समस्या समाधान
रूपनारायणपुर. डीएवी स्कूल (एचसीएल, रूपनारायणपुर) के प्राचार्य एनके महंत ने अपने विद्यालय के छात्नों को ट्यूशन प्रथा से आजादी दिलाने के लिए मुहिम आरम्भ की है. उन्होंने स्कूल की अवधि समाप्त होने के बाद कमजोर छात्नों के लिए एक घंटा अलग से कोचिंग देना आरम्भ किया है.
जिसमें छात्नों की उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया है. इसके अलावा सीबीएसई के नियमानुसार छात्नों की उपस्थिति 75 प्रतिशत को अनिवार्य करने के लिए अभिभावकों को अल्टीमेटम दिया है कि यदि छात्न की उपस्थिति 75 प्रतिशत नहीं हुया और प्रीबोर्ड परीक्षा में छात्न अनुतीर्ण हुआ तो उसे बोर्ड परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जायेगी.
इस मुद्दे पर प्राचार्य श्री महंत ने अभिभावकों के साथ बैठक की और इस निर्णय पर सभी की सहमति लेकर अभिभावकों से अंडरटेकिंग पर हस्ताक्षर कराया. प्राचार्य के इस प्रयास को अभिभावकों ने काफी सराहा है. प्राचार्य का यह प्रयास यदि सफल होता है तो प्रत्येक अभिभावक को प्रतिमाह ट्यूशन के एवज में खर्च होने वाली दो से तीन हजार रु पये की बचत होगी.
प्राचार्य श्री महंत ने कहा कि अभिभावक और स्कूल दोनों का लक्ष्य एक ही है कि छात्नों का वेहतर परिणाम हो. यदि छात्न नियमित रूप से स्कूल आते है तो वेहतर परिणाम की गारंटी होगी ही. वर्तमान समय में पढ़ाई में बेहतर परिणाम न करने पर अच्छे शिक्षा प्रतिष्ठानों में दाखिला मिलना मुश्किल हो जाता है.
इस बात से परेशान हर अभिभावक अपने बच्चे को अव्वल बनाने के लिए सभी प्रकार से प्रयास में जुटा रहता है. जिससे बच्चों का बचपन संकट में आ गया है और बच्चे मशीन बन गये है. उन्होंने कहा कि माध्यमिक और उच्च माध्यमिक के एक एक छात्न पांच से छह ट्यूशन कर रहे हैं. स्कूल में आने से लेकर घर पहुंचने तक एक छात्न का आठ घंटा समय इसमें व्यतीत होता है.
बाकी के सोलह घंटे में प्रतिदिन औसत तीन ट्यूशन के लिए जाने आने में बच्चे का चार घंटा समय जाता है. चार घंटा ट्यूशन पढ़ाई में लगता है. बाकी के आठ घंटे में बच्चे को पढ़ाई के साथ साथ अन्य काम निपटाना होता है. ऐसे में बच्चे सामाजिक जीवन से काफी दूर चले जाते हैं. वे सीखते कुछ नहीं, सिर्फ नंबरों की होड़ मं जुटे रहते हैं. अधिकांश अभिभावक बच्चे के साथ साथ ट्यूशन में ही घूमते रहते है. ऐसे में स्कूल की भूमिका औचित्यहीन होती जा रही है.
उन्होंने कहा कि अधिकांश स्कूलों में बच्चों का सिर्फ दाखिला करा दिया जाता है और छात्न स्कूल के बजाय ट्यूशन में ही अपना समय व्यय करते है. स्कूल में मेडिकल दे दिया जाता है. जिसकी मंजूरी स्कूल बोर्ड से ले लेता है और 75 प्रतिशत उपस्थिति का नियम सिर्फ नियम बन कर रह जाता है.
बच्चों को सामाजिक जीवन मे लाकर बेहतर शिक्षा देकर वेहतर परिणाम हासिल करने के उद्देश्य से ट्यूशन प्रथा को समाप्त करने का प्रयास है,. जिसके तहत स्कूल में एक घंटा का कोचिंग स्कूल अवधि के बाद दिया जा रहा है. जिसमे सभी विषयों के शिक्षक उपस्थित रहते हैं. छात्र की जो समस्या है शिक्षक के साथ बैठकर समाधान कर सकता है.
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