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देशी त्योहार, विदेशी औजार: मेक इन इंडिया पर मेड इन चाइना का ग्रहण

कोलकाता: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रांड इंडिया और मेक इंडिया पर जोर दे रहे हैं, पर कोलकाता में हर तरफ ड्रैगन ब्रांड का ही डंका बजता दिख रहा है. विदेशी बाजार तो दूर, हम अपने बाजार में भी ड्रैगन से पटखनी खाते दिख रहे हैं. शादी ब्याह हो या फिर तीज त्योहार भारत की निर्भरता चाइना […]

कोलकाता: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रांड इंडिया और मेक इंडिया पर जोर दे रहे हैं, पर कोलकाता में हर तरफ ड्रैगन ब्रांड का ही डंका बजता दिख रहा है. विदेशी बाजार तो दूर, हम अपने बाजार में भी ड्रैगन से पटखनी खाते दिख रहे हैं. शादी ब्याह हो या फिर तीज त्योहार भारत की निर्भरता चाइना बाजार पर बढ़ती जा रही है.

वह चाहे खान-पीने की वस्तु हो, खिलौने हों, पटाखे या फिर बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं पर जगमगाती एलक्ष्डी लाइटें या फिर आप के पूजा घर में रखी गणोश-लक्ष्मी की प्रतिमा, प्राय: सभी तो मेड इन चाइना है. कोलकाता का दिवाली बाजार पूरी तरफ से चाइनीज लाइटों से पटा पड़ा है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या हम सचमुच दीपावली मना रहे हैं? घी के दीये के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक बतियां, मिट्टी की लक्ष्मी-गणोश की प्रतिमा के स्थान पर चाइना से आयात हुई फाइबर की मूर्तियों से प्रतीकात्मक पूजा करते हैं. ना तेल है, ना ही बाती, ड्रैगन लाइटों का बहार. झालर, एलईडी, क्रि स्टल, पाइप लाइट, रॉकेट एलईडी, जवा फूल और मिर्ची झालर के साथ-साथ दर्जनों आइटम के आगे भारतीय परंपरागत रोशनी वाली सामग्रियां दम तोड़ रही हैं. म्यूजिक मंत्र वाली लाइट, शिव-पार्वती और गणोश की प्रतिमा पर लाइट, पान के पत्ते पर गणोश लाइट भी लोग पसंद कर रहे हैं. बड़ाबाजार के इजरा स्ट्रीट स्थित इलेक्ट्रॉनिक मार्केट का एक विक्रेता बताता है कि चाइनीज बल्बों का कब्जा है, वहीं मिट्टी के दीयों का कारोबार ठप पड़ गया है. मिट्टी के दीये के कारोबार करनेवाले अब सीमटते जा रहे हैं. लाइटों के साथ-साथ भारतीय बाजार में चीनी पटाखों ने भी घुसपैठ कर रखी है. ज्यादा मुनाफा होने के कारण व्यापारी खिलौनों के पैकेट में प्रतिबंधित चाइनीज पटाखों को चोरी- छुपे मंगवाते हैं. एक पटाखा व्यापारी ने बताया की चीन निर्मित पटाखे ज्यादा धुआं करते हैं, इनमें केमिकल की मात्र भी ज्यादा होती है, लिहाजा ये पटाखे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं. ग्राहक भी बाजार में अपेक्षा कृत सस्ती चाइनीज लाइटों और पटाखों की ही मांग करता है.

बड़ाबाजार स्थित राज्य के सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक व्यवसायियों के संगठन कनफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स के बंगाल चेप्टर के उपाध्यक्ष हकीकत राय कपूर बताते हैं कि यह सच है कि दिवाली के लाइट बाजार में चीन का बोल-बाला है.

आज दिवाली हो या होली हर त्यौहार पर भारतीय व्यवसायी चीन के माल पर निर्भर होता जा रहा है. खाने-पीने वाली वस्तुओं पर चाइनीज बाजार का कब्जा है. घरों में देसी चिप्स और पापड़ों की बजाय विदेशी पापड़ों की घुसपैठ हो गयी है. रंगीले रंगों, आकर्षक डिजाइनों और दाम में कम इस चाइनिज चिप्स पापड़ों की मांग देसी पापड़ों की अपेक्षा बढ़ गयी है, ये भारतीय पापड़ व चिप्सों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. दूसरी तरफ राज्य में आलू की कम पैदावार भी राज्य में चिप्स के ज्यादा दाम होने का एक कारण माना जा रहा है. चीन निर्मित पापड़ 150 से 200 रु पये प्रति किलो बिक रहे हैं, जबकि आलू के घरेलू चिप्स की कीमत 300 से 400 रु पये प्रति किलो है. कुम्हार टोली में दीया बनानेवाला एक कुम्हार बताता है कि 10 वर्ष पहले दीपावली के समय 20 हजार दीयों का ऑर्डर मिल जाता था, लेकिन अब तो पांच हजार दीये भी बिक जाये तो बड़ी बात है.

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