-आशुतोष चतुर्वेदी-
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने सीटों का तिहरा शतक लगा दिया है. सभी अनुमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने 300 से अधिक सीटों पर अपना परचम लहरा कर ऐतिहासिक जीत हासिल की है. उत्तर प्रदेश में इससे पहले किसी पार्टी ने इतनी बड़ी जीत हासिल नहीं की थी. यहां तक 1991 की राम लहर पर सवार होकर भी भाजपा इतनी सीटें हासिल नहीं कर पायी थी.
जब90के दशक में राम मंदिर आंदोलन चला था,तब भाजपा ने यूपी में बहुमत हासिल किया था. कल्याण सिंह के नेतृत्व में लड़े गए वर्ष1991के चुनाव में भाजपा को221सीटें मिलीं थीं. इसके बाद से भाजपा कभी इस आंकड़े के आसपास तक नहीं पहुंच सकी. लेकिन मोदी की सुनामी ने इस आंकड़े को पार करने में सफलता हासिल कर ली है.
दरअसल उत्तर प्रदेश का यह चुनाव व्यक्ति केंद्रित था. इसके केंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे तो दूसरी ओर उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती थी. इस चुनाव में पार्टियां सहायक की भूमिका निभा रही थीं. व्यक्ति केंद्रित इस चुनाव में नरेंद्र मोदी सब पर भारी पड़े और उनकी बातों और वादों को जनता ने ज्यादा प्रामाणिक माना और अखिलेश व मायावती की बातों को नकार दिया.
नोटबंदी को लेकर बड़ा संशय था कि इसे लोग स्वीकार करते हैं कि नहीं. विपक्षी दल इसे बड़ा मुद्दा बना रहे थे. उनका दावा था कि नोटबंदी के बाद लोगों में पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ भारी गुस्सा है. जनता इस गुस्से का इजहार चुनावों में करेगी. लेकिन इन चुनावों से यह बात साफ हो गई कि जनता का प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा कायम है. वे मानते हैं कि मोदी व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार हैं, लोगों के हित में कदम उठाते हैं, हो सकता है कि उसका फायदा अभी नहीं मिल रहा हो, लेकिन आगे आने वाले समय में इसका लाभ मिलेगा.
यूपी- उत्तराखंड में भाजपा की जीत बताती है कि जनता में पीएम मोदी की लोकप्रियता आज भी कायम है. लोकसभा चुनावों में करीब अब दो साल बचे हैं. यह जीत 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के लिए एक मजबूत आधार बनेगी और इस बुनियाद पर भाजपा 2014 को दोहराने की कोशिश करेगी. भाजपा जहां नए जोश और उत्साह के साथ लोक सभा चुनावोंमें उतरेगी वहीं, यूपी की हार से विपक्षी दलों का उत्साह ठंडा पड़ सकता है.
पंजाब में कांग्रेस की जीत, आप को झटका
कांग्रेस उत्तराखंड में हार गई लेकिन पंजाब में जीत हासिल कर वह संतोष व्यक्त कर सकती है. दूसरी ओर केजरीवाल की पार्टी आप को पंजाब में झटका लगा है. आप नेता पंजाब में जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने दिल्ली में जीत के उत्सव की पूरी तैयारी कर ली थी. पंजाब में बहुमत हासिल न कर पाने से आप नेताओं के चेहरे उतर गए हैं.
पंजाब में सभी मान रहे थे कि अकाली दल-भाजपा गठबंधन की करारी हार होगी. विश्लेषक उन्हें दहाई के आंकड़े तक पहुंचने पर भी संशय जता रहे थे लेकिन अकाली दल-भाजपा की शिकस्त हुई है लेकिन उनका सूपड़ा साफ नहीं हुआ है.
(लेखक प्रभात खबर के प्रधान संपादक हैं)