रांची : उत्तर प्रदेश में एक अज्ञात बीमारी वर्षों से बच्चों की जान ले रही थी. किसी को इस बीमारी के बारे में नहीं मालूम था. गोरखपुर के एक युवा सांसद ने इस मामले को देश की संसद में पहली बार उठाया. हालांकि, राज्य के मामलों को लोकसभा में उठाने का नियम नहीं था, लेकिन इस युवा सांसद ने तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन के सामने हठ कर दी. कहा कि यह उनके संसदीय क्षेत्र का बेहद संवेदनशील मामला है और उन्हें इस मुद्दे को उठाने का मौका मिलना चाहिए. आखिरकार महाजन को झुकना पड़ा और संसद में पहली बार यह मुद्दा उठा.
https://www.youtube.com/watch?v=WAxrN2mpJ9Y
वही हठयोगी आज उत्तर प्रदेशके मुख्यमंत्री हैं. पिछले दिनों एक टेलीविजन को दिये इंटरव्यू में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था पूर्वांचल में सबसे ज्यादा बच्चों की जान लेनेवाली इस बीमारी का इलाज करके रहेंगे. उन्होंने कहा कि इन्सेफलाइटिस पर उनके भाषण ने कई सांसदों पर गंभीर छाप छोड़ी. इसके बाद तो संसद में ऐसे मुद्दे उठाने के वह एक्सपर्ट माने जाने लगे.
बकौल योगी, ‘दूसरी पार्टियों के नेता मेरे पास आते और कहते कि आप हमारे इलाके की इस समस्या पर सदन में बहस शुरू करें. मैंने उनसे कहा कि मैं जिस चीज के बारे में जानता तक नहीं, उसके बारे में चर्चा कैसे कर सकता हूं. उन साथियों ने कहा कि सामग्री हम देंगे, बस चर्चा आप शुरू करें. आप चर्चा की शुरुआत प्रभावी तरीके से करते हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते.’ और ऐसे जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर बहस की शुरुआत करने का पेटेंट योगी को सभी दलों के सांसदों ने दे दिया.
इसे भी पढ़ें : इन्सेफलाइटिस से सात लोगों की मौत
इस बीमारी को रोकने के लिए उनकी सरकार ने टीकाकरण अभियान शुरू किया. मेडिकल अधिकारियों को कई निर्देश दिये, लेकिन जापानी इन्सेफलाइटिस है कि पूर्वांचल से जाने का नाम ही नहीं ले रहा. हिंदी चैनल को दिये साक्षात्कार में योगी ने कहा था कि अब वह राज्य के मुखिया हैं. इन्सेफलाइटिस को जड़ से मिटाने के लिए जो भी करना होगा, करेंगे, लेकिन बच्चों की जान के दुश्मन इस रोग को प्रदेश से मिटा कर रहेंगे. लेकिन, यह बीमारी है कि उत्तर प्रदेश छोड़ कर जाने का नाम ही नहीं ले रही. लोग कह रहे हैं, ‘जागिये योगीजी, आपके राज्य में इन्सेफलाइटिस से अब भी बच्चे मर रहे हैं.’
हर बार की तरह इस बार भी स्वास्थ्य विभाग इसे रोकने और प्रभावित बच्चों का उच्चस्तरीय इलाज कराने का दावा कर रहा है, लेकिन छहमहीने में लगभग एक दर्जन बच्चों को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया जा चुका है. सरकारी आंकड़ों की बात करें, तो इस साल 37 मरीज जिला अस्पताल के इन्सेफेलाइटिस वार्ड में भर्ती किये गये. इनमें से एक मरीज की मौत हो गयी और 13 मरीजों को गोरखपुर मेडिकल काॅलेज रेफर कर दिया गया. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में कितने बच्चों की मौत हुई, इसका आधिकारिक आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन गैर सरकारीआंकड़ेबताते हैं कि लगभग आधा दर्जन मौतें तो हो ही चुकी हैं.
इसे भी पढ़ें : इकलौता संस्थान 18 साल से है बंद
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि दिमागी बुखार के इस कहर से कुशीनगर जिला सबसे ज्यादा प्रभावित है. यहां कई बच्चों की जानें जा चुकी हैं और कई शारीरिक और मानसिक रूप से अपंग हो गये हैं.इसकी सबसे बड़ी वजह पूर्वांचल के शहरों में गंदगी को बताया जाता है. बीमारी जब कहर ढाती है, तो प्रशासन हरकत में आता है और सफाई व्यवस्था में जुट जाता है. एक बार मौसम बदला, बीमार लोगों की संख्या कम हुई, तो फिर वह अपने पुराने रवैये पर आ जाता है.
इतना ही नहीं, गंदगी के अलावा दूषित पेयजल भी जिले की एक बड़ी समस्या है. इससे पूरा जिला प्रभावित है. लोग बताते हैं कि इस बीमारी को रोकने के जितने उपाय किये गये, सब फाइलों में ही हो गये. इसलिए बीमारी रुकने की बजाय बढ़ती चली गयी. सरकार और प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद जापानी इन्सेफलाइटिस से पीड़ित करीब एक दर्जन मरीज अभी भी जिला अस्पताल के आइसीयू वार्ड में मौत से जंग लड़ रहे हैं.