।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊः अपने ही शहर में बेगाने हो गए मुंशी नवल किशोर की उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक राज्यपाल डा.अजीज कुरैशी ने सुध ले ली. बीते गुरूवार को डा. कुरैशी ने रामपुर रजा पुस्तकालय की ओर से मुंशी नवल किशोर पुरस्कार शुरू करने का आदेश दे दिया. हालांकि यह काम यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को काफी पहले ही करना चाहिए था, पर उन्होंने इस मामले में कोई पहल नहीं की.
यूपी की सत्ता पर काबिज रहे अन्य मुख्यमंत्रियों ने भी मुंशी नवल किशोर के साहित्य, प्रकाशन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों पर ध्यान नहीं दिया. भाजपा के एक मुख्यमंत्री ने तो लखनऊ के हजरतगंज क्षेत्र में उनकी मूर्ति लगाने संबंधी प्रस्ताव को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया था. प्रदेश सरकारों के ऐसे रूख से यूपी और लखनऊ के लोगों ने भी मुंशी नवल किशोर जैसे महान व्यक्ति को भूला दिया.
परन्तु दो दिन पूर्व यूपी के कार्यवाहक राज्यपाल और उर्दू फारसी के जानकार डा. कुरैशी ने उन्हें फिर चर्चा में ला दिया. बीते गुरूवार को राजभवन में रामपुर रजा पुस्तकालय प्रबंधन की बैठक थी, जिसमें डा. कुरैशी ने मुंशी नवल किशोर की अरबी, फारसी और उर्दू के प्रति उत्कृष्ट सेवा को लेकर अधिकारियों ने पूछताछ की तो उन्हें पता चला कि मुंशी नवल किशोर के नाम से कोई पुरस्कार ही नहीं दिया जाता. यह जानकर डा. कुरैशी को दुख हुआ और उन्होंने मुंशी नवल किशोर के नाम पर पुरस्कार शुरू करने का निर्देश दिया. चंद दिनों पहले ही उत्तर प्रदेश आए 75वर्षीय डा.कुरैशी के इस निर्णय से मुशी नवल किशोर फिर चर्चा में आएंगे, ऐसा दावा करते वाले भाकपा नेता अशोक मिश्र कहते हैं कि अब यूपी ही नहीं देश के लोग भी जान सकेंगे कि साहित्य, फारसी और उर्दू की तरक्की में डेढ़ सौ वर्ष पूर्व मुंशी नवल किशोर ने क्या योगदान दिया था.
मुंशी नवल किशोर ने भारत में पहला छापाखाना लगाया था. एशिया में कुरान की पहली प्रति उनके ही नवल किशोर के प्रेस में छपी. हजरतगंज के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. लखनऊ का हजरतगंज किसी जमाने में मुंशी नवल किशोर का था. यही उन्होंने अपना प्रेस (छापाखाना) लगाया. देश का पहला अखबार अवध अखबार 1858 में यही से छपा. यह अखबार 1950 तक छपता रहा.
मुंशी नवल किशोर प्रेस को पेरिस के एल्पाइन प्रेस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्रेस होने का गौरव भी प्राप्त हुआ. इस प्रेस ने करीब पांच हजार किताबें छापी. उर्दू के मशहूर लेखक मिर्जा गालिब, अब्दुल हलीम शाह, मुंशी सज्जाद हुसैन जैसे तमाम नामी लेखक इस प्रेस से जुड़े रहे. कहते हैं कि अमीर खुसरो और बहादुर शाह जफर की पहली पुस्तकें भी मुंशी नवल किशोर प्रेस में छपी थी. और मिर्जा गालिब ने मुंशी नवल किशोर प्रेस के बारे में लिखा था कि इस छापेखाने में जिसका भी दीवान छपा उसे जमीन से आसमान पर पहुंचा दिया.
यह दावा भी किया जाता है कि दुनिया में शायद ही कोई ऐसा पुस्तकालय हो जहां मुंशी नवल किशोर प्रेस द्वारा छापा गया साहित्य ना हो. जापान में तो मुंशी नवल किशोर के नाम से एक लाइब्रेरी है. जर्मनी की हाइडिलबर्ग और अमेरिका में हार्वर्ड विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में मुंशी नवल किशोर के नाम से एक कक्ष है. मुंशी नवल किशोर का संसार में बड़ा नाम और सम्मान था, कहा जाता है कि 1888 में जब ईरान के शाह भारत आए तो उन्होंने कहा कि भारत आने के उनके दो मकसद हैं. एक वायसराय से मिलना तथा दूसरा मुंशी नवल किशोर से. देश और विदेश में ख्याति प्राप्त ऐसे मुंशी नवल किशोर के नाम पर यूपी में एक भी पुरस्कार नहीं है. यही नहीं लखनऊ शहर में उनकी एक भी मूर्ति भी नहीं लगाई गई. पंद्रह वर्ष पहले जरूर उनकी एक मूर्ति हजरतगंज क्षेत्र में लाने का प्रयास हुआ था क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने उनकी मूर्ति लगाने का प्रस्ताव रखा था. परन्तु बाद में प्रदेश की भाजपा सरकार ही इसके लिए तैयार नहीं हुई और जिस स्थान पर मुंशी नवल किशोर की मूर्ति लगाई जानी थी, वहां अंवतिबाई की मूर्ति लगा दी गई. जिन नेताओं ने यह किया था, वह आज भी राजनीति में सक्रिय हैं पर उन्होंने मुंशी नवल किशोर के नाम से एक पुरस्कार देने की पहल तक नहीं की. और यह काम किया कि यूपी में पांच दिन पहले कार्यवाहक राज्यपाल बने डा. कुरैशी ने.