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यूपी में सपा-बसपा का वोट प्रतिशत भी घटा

।।राजेन्द्र कुमार।।लखनऊ:सेक्युलरिज्म के नाम पर भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी का विरोध करने वाले तमाम बड़े राजनीतिक दलों की बोलती यूपी की जनता ने बंद कर दी है. 1977 के बाद सूबे में यह दूसरा मौका है जब सूबे की जनता ने तमाम बड़े राजनीतिक दलों के बड़बोलेपन पर सख्ती के साथ लगाम लगाई […]

।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊ:सेक्युलरिज्म के नाम पर भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी का विरोध करने वाले तमाम बड़े राजनीतिक दलों की बोलती यूपी की जनता ने बंद कर दी है. 1977 के बाद सूबे में यह दूसरा मौका है जब सूबे की जनता ने तमाम बड़े राजनीतिक दलों के बड़बोलेपन पर सख्ती के साथ लगाम लगाई है. जनता के इस रूख के चलते बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से लेकर राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और आम आदमी पार्टी (आप) के सभी उम्मीदवार को चुनाव हार गए. सोनिया गांधी और मुलायम सिंह के परिवारिक सदस्य ही इन चुनावों में मोदी लहर के आगे जीत हासिल कर सके, पर इन दलों का भी वोट प्रतिशत बसपा और रालोद की तरह घट गया है। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों ने यह सच्चाई उजागर कर दी है.

इन आंकड़ों के अनुसार भाजपा यूपी में जो काम राम लहर के सहारे नहीं कर सकी वह मोदी की लहर में नमो जाप के सहारे हो गया. इस नमो जाप (मोदी लहर) ने ही यूपी में सपा और बसपा के जातिवादी चक्रव्यूह को भेद कर भाजपा को 71 संसदीय सीटों पर जीत दिला दी और भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाले अपना दल को भी मिर्जापुर तथा प्रतापगढ़ संसदीय सीट से संसद में पहुंचा दिया. भाजपा के लिए यह ऐतिहासिक सफलता है क्योंकि बीते लोकसभा के चुनावों में भाजपा ने 17.50 प्रतिशत मत पाकर दस सीटों पर ही जीत हासिल की थी. जबकि इन चुनावों में भाजपा ने 42.3 प्रतिशत वोट हासिल कर 71 सीटों पर कब्जा किया. यूपी में भाजपा को इतना अधिक वोट कभी नहीं मिला था. सबसे अधिक 36.49 प्रतिशत मत भाजपा को वर्ष 1998 में मिले थे. तब भाजपा 57 सीटों पर जीती थी.

अब मोदी लहर में भाजपा ने अपना यह रिकार्ड भी तोड़ दिया है. वैसे चुनाव में रिकार्ड सफलता की बात करे तो 1977 में जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस का सूपड़ा यूपी में साफ हो गया था। तब सारी सीटें जनता पार्टी की सहयोगी भारतीय लोकदल के हाथों में गई थी. इसके बाद 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चली सहानुभूति की लहर में यूपी की 83 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था और महज दो सीटें विपक्ष के खाते में आई थीं. बीजेपी के लिए इस चुनाव के नतीजे भी क्लीन स्वीप जैसे ही हैं. रोचक तथ्य तो यह है भाजपा में इस रिकार्डतोड़ प्रदर्शन की उम्मीद किसी को भी नहीं थी. भाजपा के यूपी प्रभारी अमित शाह और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी 55 तक पहुंचने की उम्मीद जता रहे थे. परन्तु जैसे-जैसे यूपी में चुनावी माहौल गरमाया, जनता का रूझान सपा-बसपा और कांग्रेस की जातिवादी राजनीति से हट कर मोदी की ओर हुआ.

मायावती से लेकर मुलायम सिंह और सोनिया गांधी तक ने जनता के इस मूड को भापा पर किसी ने अपनी चुनावी रणनीति बदली नहीं। और मुस्लिम समाज से भाजपा को हराने के लिए एकजुट होकर मतदान करने की अपील करते है. सपा, बसपा और कांग्रेस की तर्ज पर अरविंद केजरीवाल भी भाजपा को हराने के लिए ऐसी ही अपीले करने लगे. सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद थी कि सूबे की जनता उनकी बात मानेगी. पर ऐसा नहीं हुआ. यूपी की जिस जनता ने 2009 के चुनावों में बसपा को 27.42 प्रतिशत वोट देकर उसके 20 उम्मीदवारों को संसद में पहुंचाया था, उसी जनता इन चुनावों में बसपा के उम्मीदवारों को मात्र 19.6 प्रतिशत वोट दिए. जिसके चलते बसपा का कोई भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका. हालंकि बसपा के 34 उम्मीदवार दूसरे स्थान पर जरूर रहे.

मायावती कहती है कि कम वोट मिलने की वजह से उनके उम्मीदवार नहीं हारे, वह हारे तो इसलिए क्योंकि मुस्लिम और अपर कास्ट का वोट बसपा के उम्मीवारों को नहीं मिला और बसपा के उममीदवारों को हराने के लिए सपा, कांग्रेस और कांग्रेस ने साजिश की. फिलहाल सपा के नेता ऐसा कोई दावा नहीं कर रहे हैं. दो साल पहले यूपी की जनता ने जिस तरह से अखिलेश यादव को प्रचंड बहुमत देकर सत्ता सौपी थी. उससे तो यही लगता था कि इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करेगी. पर वर्ष 2009 में 23 संसदीय सीटों पर जीत हासिल करने वाली सपा मात्र पांच सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. इनमें से दो सीटों मैनपुर और आजमगढ़ पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जीते हैं. जबकि बदायूं से धर्मेन्द्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव तथा कन्नौज से डिंपल यादव चुनाव जीती है.

डिंपल यादव सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की बहू हैं और धमेन्द्र तथा अक्षय भतीजे. बाकी की सभी सीटों पर सपा के उम्मीदवार चुनाव हार गए. हालांकि सपा के 32 उम्मीदवार दूसरे, 28 तीसरे और 11 चौथे स्थान पर रहे और 22.2 प्रतिशत वोट सपा उम्मीदवारों को मिले, लेकिन जातीय आधार पर राजनीति के सजाए समीकरणों के गडबड़ाने के चलते सपा की मंशा इन चुनावों में अधूरी रह गई. कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस और रालोद का भी हुआ. कांग्रेस ने पिछले चुनावों में 21 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस को उम्मीद थी कि इनमें से आधी सीटों पर वह फिर जीतेगी. पर ऐसा नहीं हुआ. सोनिया गांधी और राहुल गांधी को छोड़कर कांग्रेस के सभी उम्मीदवार हार गए.

मात्र 13 सीटों पर ही कांग्रेस उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। इन चुनावों में कांग्रेस को 7.5 प्रतिशत वोट ही मिले. कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी रालोद का हाल भी बुरा रहा. बीते लोकसभा चुनावों में रालोद के पांच सांसद चुने गए, पर इस बार रालोद के मुखिया अजित सिंह सहित रालोद के सभी आठों उम्मीदवार चुनाव हार गए. चुनावों के ठीक पहले जाटों को आरक्षण दिलाने का चला दांव भी अजित सिंह के किसी उम्मीदवार को जिता नहीं सका. पहली बार चुनाव लड़ी आम आदमी पार्टी भी यूपी में कोई करिश्मा नहीं कर सकी. इस दल के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल सहित कुल 77 उम्मीदवारों ने यहां चुनाव लड़ पर कोई भी जीत नहीं सका. पात्र एक प्रतिशत वोट ही इस दल को इन चुनावों में यूपी में मिले.

यूपी में किसे मिले कितने वोट

बीजेपी को 42.3%

सपा को 22.2%

बीएसपी को 19.6%

कांग्रेस को 7.5%

रालोद को 0.9%

आप को 1.0%

नोटा बटन दबाया 0.7% ने

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