खरसावां : अपनी उत्कृष्ट कला शैली के कारण छऊ नृत्य आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. 1938 में पहली बार सरायकेला राजघराने की अगुवाई में इस नृत्य कला ने विदेशों में जा कर अपनी आभा बिखेरी थी. 1937 में एक कार्यक्रम में सरायकेला छऊ देख गांधीजी ने उस वक्त आश्चर्य व्यक्त किया था, जब हरिजन ढ़ोलक वादक की थाप पर सरायकेला राजघरानों के राजकुमार नाज रहे थेे. इंदिरा गांधी की एक पुस्तक इंटरनेशनल इंडिया में भी छऊ नृत्य का उल्लेख किया गया है.
भारत की आजादी के पश्चात रॉयल स्कूल ऑफ छऊ के कलाकार प्रधानमंत्री आवास पर जब नृत्य करने पहुंचे तो नृत्य का आनंद लेने के लिए प्रधानमंत्री नेहरु ने अपने प्रिय गुलाब का पौधा भी कटवा दिया था. शुरुआत के दिनों में छऊ नृत्य सिर्फ पौराणिक तथ्यों पर आधारित होता था. इसके बाद इस नृत्य में आधुनिकता जोड़ कर इसे व्यापक बनाने का प्रयोग किया गया.