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हम कई पैमाने पर पिछड़ रहे हैं, मुझे मौका मिला तो बिजली व झारखंडियत मेरी प्राथमिकता : महेश पोद्दार

झारखंड से भाजपा के राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार 24 मई को प्रभात खबर डॉट कॉम के फेसबुक लाइव कार्यक्रम में शामिल हुए. उन्होंने प्रभात खबर डॉट कॉम के साथ दर्शकों-श्रोताओं के सवालों का भी जवाब दिया. उन्होंने बातचीत के क्रम में सरकार के प्रयासों, उसकी दिक्कतों और संभावनाओं पर भी अपनी शैली के अनुरूप बातचीत […]

झारखंड से भाजपा के राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार 24 मई को प्रभात खबर डॉट कॉम के फेसबुक लाइव कार्यक्रम में शामिल हुए. उन्होंने प्रभात खबर डॉट कॉम के साथ दर्शकों-श्रोताओं के सवालों का भी जवाब दिया. उन्होंने बातचीत के क्रम में सरकार के प्रयासों, उसकी दिक्कतों और संभावनाओं पर भी अपनी शैली के अनुरूप बातचीत की. वे मानते हैं कि झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य के लिए तुरंत बहुत कुछ करना चाहते हैं, लेकिन उसके क्रियान्व्यन के लिए दूसरे लोगों व अफसरों के अधिक सक्रिय होने की बात स्वीकारते हैं. झारखंड के विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण, निर्बाध व सस्ती बिजली को अहम शर्त मानते हैं, लेकिन यह स्वीकारते हैं कि इसमें समस्याएं हैं. प्रभात खबर डॉट कॉम से बातचीत में उन्होंने यह भी बताया कि अगर उन्हें कभी कोई कार्यकारी पद मिलता है तो वे सबसे पहले क्या कुछ करना चाहेंगे. झारखंड भाजपा के कोषाध्यक्ष महेश पोद्दार एक टेक्नोक्रेट व सफल कारोबारी हैं. वे इन्फ्रास्ट्रक्चर, न्यू इकोनॉमी जैसे विषयों पर बात करते हैं, साथ ही झारखंडियत के भी उतने ही मुखर प्रवक्ता हैं. प्रस्तुत है प्रभात खबर डॉट कॉम के लिए राहुल सिंहएवं पंकज कुमार पाठकसे हुई उनकी बातचीत :

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प्रश्न : आप अगले महीने राज्यसभा में अपने कार्यकाल का एक साल पूरा करेंगे. बीते एक साल में उच्च सदन में अपनी मौजूदगी को आप कैसे देखते हैं?


उत्तर : मैं अपने कार्यकाल से संतुष्ट हूं. लेकिन उससे ज्यादा आवश्यक है कि क्या मेरी पार्टी संतुष्ट है? मेरी पार्टी ने मुझे चुना, मुझे दायित्व दिया. अभी तक का जो अनुभव है उससे लगता है कि मेरी पार्टी मुझसे संतुष्ट है.


प्रश्न : आप नरेंद्र मोदी सरकार के मुद्दों के झारखंड या पूर्वी भारत में एक मुखर प्रवक्ता हैं. आप जिन मुद्दों को उठाते हैं, उस पर समीक्षात्मक ढंग से बात करते हैं. आप जो बात करते हैं, उसके हर पक्ष को रखते हैं. आप बिजली, कुशल श्रम आदि मुद्दों पर बात करते हैं. क्या यह माना जाये कि आपके रूप में केंद्र को एक मुखर प्रवक्ता मिला है?


उत्तर : यह बात सही है कि जैसे-जैसे आदमी की उम्र बढ़ती है, वह शारीरिक रूप से कमजोर होता है, लेकिन बौद्धिक रूप से मजबूत होता है, अगर वह अपने आप को सक्रिय रखे तो. मेरी पार्टी में बहुत से लोग हैं, मुझसे भी गुणवान लोग हैं, सक्षम भी. मेरी पूरी कोशिश रहती है कि पार्टी की नीतियों को समझूं, जो कमियां हैं उसे बताऊं, जो उपलब्ब्धि है उसे भी बताऊं. हमारे नेता ने कुछ स्पष्ट लक्ष्य रखा है कि जबतक अंतिम व्यक्ति का उदय नहीं होता है, तबतक सर्वोदय नहीं होता है. मुझे लगता है यह अच्छी थीम है. हर व्यक्ति को बिजली पहुंचाना, घर की समस्या को दूर करना, खाने की समस्या का हल करना, पानी की समस्या को दूर करना ये बहुत स्पष्ट शब्द में टारगेट रखे गये हैं. जहां आंकड़ों का खेल संभव नहीं है. जहां 10 प्रतिशत-20 प्रतिशत कर के भी संभव नहीं है. कमती-बेशी कर संभव नहीं है. इस वर्ग-उस वर्ग की भी बात नहीं है. हर व्यक्ति को घर मिले यह छोटा लक्ष्य नहीं है.


हम साबरमाला की, भारत माला की बात कर रहे हैं, वह सोच भी रखते हैं, लेकिन इंडिया की बात भी करते हैं. दोनों चीजों का सामंजस्य है, एक के बिना दूसरी चीज नहीं हो सकती है. दोनों विरोधी नहीं हैं, एक-दूसरे की पूरक हैं और इसमें मैं समझता हूं कि हम थोड़ा बहुत सहयोग कर सकते हैं.

प्रश्न : आपका पुराना इंटरव्यू पढ़ रहा था. उसपरआपके ट्वीट भी हैं. बिजली के मुद्दे पर आप मुखर हैं. आपने एक शख्स के बिजली समस्या वाले ट्वीट को टैग कर सीधे सीएम से आग्रह किया कि अब आप ही कुछ कीजिए. तो यह समस्या कैसे दूर होगी?


उत्तर : रांची शहर में डोरंडा में मुझे किसी ने फोन किया कि उनके यहां 24 घंटे से अधिक समय से बिजली नहीं थी और मैंने मुख्यमंत्री जी को कहा. चूंकि मुझे लगता है कि किसी क्षेत्र को आगे बढ़ना है, तरक्की करनी है तो बिजली की उपलब्धता, गुणवत्ता, दर उचित होना जरूरी है. इसमें हमलोग दशकों से पीछे होते रहे हैं. अगर हमारे झारखंड को आगे बढ़ना है तो यह जरूरी है. इसलिए मैंने मुख्यमंत्री जी का ध्यान इस ओर खींचा. यह उन्हें फीडबैक देना था.


प्रश्न : आप इन्फ्रास्ट्रक्चर और न्यू इकोनॉमी के पैरोकार हैं. हमारे राज्य में 40 प्रतिशत आबादी अब भी गरीबी रेखा से नीचे हैं. और, राज्य में कई बफर जोन हैं. ऐसे में हम कैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करेंगे, स्कील लोग तैयार करेंगे आैर न्यू इकोनॉमी की ओर बढ़ पायेंगे?


उत्तर : देखिए, जब बिहार से झारखंड अलग हुआ तो लोग यह मान कर चल रहे थे कि झारखंड में आर्थिक संपन्नता अधिक होगी और बिहार में बालू ही बालू होगा. लेकिन ऐसा नहीं है. आज हम कई पैमाने पर पिछड़ रहे हैं. उसे स्वीकार करने में संकोच नहीं होना चाहिए. लेकिन इसका कारण राजनीतिक है, जो आपलोग जानते हैं. यहां कभी स्थिर सरकारें नहीं रहीं. आप आज मुख्यमंत्री के किसी भी भाषण काे सुन लें, उसमें उनका दर्द झलकता है. क्यों? उनका आक्रोश भी झलकता है. वे जल्दी से जल्दी सबकुछ कर देना चाहते हैं. लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि नीति को जमीन पर लाने वाले लोगों को सक्षम होना होगा, उनको अपनी जिम्मेवारियों का अहसास होना होगा और उनको मुख्यमंत्री से ज्यादा काम करना होगा. यह आवश्यक है. आपने जो कहा कि न्यू इकोनॉमी…यह फैक्ट है कि धीरे-धीरे कोयला व मिनरल जिन्हें हम अपनी बहुत बड़ी ताकत समझते हैं उसकी वैल्यू कम होती जा रही है, और वैल्यू एडिशन पर जोर होता जा रहा है, हम यहां वैल्यू एडिशन कर नहीं पा रहे हैं. हमारे यहां का कोयला बाहर जा रहा है, सारी जगहों के तापघर हमारे कोयले से चल रहे हैं. लेकिन हमारे यहां आज भी अंधेरा है, ऐसी परिस्थिति हमने विरासत में ली है, लेकिन 2019 का लक्ष्य है कि सारे घर में बिजली पहुंच जाये मुझे लगता है कि ऐसा हो जायेगा. उसके बाद दूसरा चैलेंज होगा इस बिजली की व्यवस्था को बनाये रखना. मुझे लगता है कि इसके लिए हमें सोच बदलनी होगी.


दूसरी तरफ न्यू इकोनॉमी की बात है. अफसोस की बात है कि जमशेदपुर जैसे शहर के बच्चेटीयर2 वटीयर3 के शहर में न्यू इकोनॉमी यानी आइटी आदि क्षेत्र में काम करने जाते हैं. तो मुझे पीड़ा होती है, जनप्रतिनिधि होने के नाते स्वभाविक है. इसमें हमलोग काफी पिछड़े हैं. यह जो इकाेनॉमी है वह किसी मिनरल पर आधारित नहीं है. यह हम कर सकते हैं. अच्छे शहर, अच्छी तकनीक, अच्छे प्रयास की जरूरत है.


प्रश्न : आप एक टेक्नोक्रेट हैं, सफल कारोबारी हैं और इकोनॉमी को समझते हैं. केंद्र सरकार के पास अभी जीएसटी के क्रियान्वयन को लेकर बड़ी चुनौती है. चर्चा है कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद वित्त मंत्रालय में आपकी भूमिका तय की जा सकती है?


उत्तर : (हंसते हुए) ऐसी मेरे दिमाग में कोई कल्पना नहीं है. आप मेरे शुभचिंतक हो सकते हैं और भी शुभचिंतक हो सकते हैं. लेकिन ऐसी दूर-दूर तक कोई बात नहीं है, मैं पार्टी का बहुत छोटा आदमी हूं, अभी मेरा पहला सत्र बीता है, हां मेरा जो अनुभव है, जो मेरी शिक्षा है उसे नकार नहीं सकता, जो है सो है. जीएसटी के मामले में कोई शक नहीं है.

देखिए जब नोटबंदी हुई थी, तो करोड़ों लोगों को कष्ट हुआ था, लेकिन लोगों को एक विश्वास था. मोदी सरकार के तीन साल में जो सबसे बड़ी उपलब्धि है, वह है मोदी जी में जनता का विश्वास. जिसके कारण वे बड़ा से बड़ा कदम उठाने में सक्षम हैं. जीएसटी पर भी आशंकाएं बहुत हैं. लेकिन मैं और मेरे साथी व्यापारी को विश्वास है कि मोदी सरकार में ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे छोटे व्यापारी प्रताड़ित होंगे. हम मान कर चलते हैं कि अंतत: यह लाभदायक होगा. व्यापारियों की परेशानी घटेगी, बढ़ेगी नहीं.हमनेकई भाषणों व सभाओं में यह स्पष्ट कर दिया है और लोग इससे सहमत हैं.

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प्रश्न : मोमेंटम झारखंड पर क्या कहेंगे? सूरत बदलेगी या 16 साल के अवरोध अवरोध ही बने रहेंगे. अगले 16-17 साल पिछले 16-17 साल से अलग होंगे?


उत्तर : देखिए, सिंगल विंडो रांची में 23 साल पहले बना था और यशवंत सिन्हा ने उसका उद्घाटन किया था, लेकिन उसकी खिड़की कभी खुली ही नहीं. यह दुर्भागय है कि जिस तरह राज्य चल रहा था, उसी तरह से चलता रहता तो हम तेजी से आगे बढ़ नहीं सकते और पिछड़ते जाते. ऐसे में एक धमाका जरूरी था, जिसको बिगबैंग बोलते हैं, वह था मोमेंटम झारखंड. और, उसके बाद कई लोगों का ध्यान हमारी ओर गया, इसमें कोई शक नहीं है कि हम लोगों का ध्यान अपनी आकर्षिक करने में सफलहुए हैं. अब समय आया है रिजल्ट डिलीवर करने का. तो मैं देख रहा हूं कि एक नयी कार्यशैली में काम हो रहा है, लेकिन कुछ अड़चने आयेंगी. पुरानी मान्यताएं बाध्यताएं जल्दी खत्म नहीं होती हैं. लेकिन, एक बड़ी चीज है कि एक प्रोफेशनल को दायित्व दिया गया है, जो प्रतिष्ठित है. ऐसा नहीं है कि वे सलाह देकर चले गये, वे चीजों को एक्जक्यूट कर रहे हैं. अगर यह जमीन पर उतर गया तो इसमें हुआ खर्च मैनेज हो जायेगा.


प्रश्न : झारखंड में शराबबंदी होनी चाहिए या नहीं? सरयू राय जी तो इस पर बहुत मुखर हैं.


उत्तर : कोई नहीं कहता है कि शराब अच्छी चीज है, लेकिन जो कहता है कि खराब चीज है, वह भी शराब पीता है. कई बार देश में कई राज्यों में शराबबंदी की कोशिश हुई. गुजरात में लंबे समय से शराबबंदी चल रही है. बिहार में भी ताजा-ताजा है यह. इसे समझने की जरूरत है कि क्या शराबबंदी करने से यह रुक जायेगा या एक पैरलल शराब की व्यवस्था चलेगी. क्योंकि हर नशे की चीज के साथ ऐसा होता है. अमेरिका में ड्रग्स लाख कोशिशों के बाद नहीं रुक पाया है. जो रेगुलेटेड कंजम्शन है, उसको हम खत्म कर दें तो क्या हमारी सारी समस्या खत्म हो जायेगी. इस पर एक प्रश्न चिह्न है, जो मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं. हां, सामाजिक रूप से शराब व नशे की चीजों के खिलाफ जागरूकता लानी चाहिए. जैसे हम नशे की दूसरी चीजों के लिए करते हैं. हमें यह मानना पड़ेगा कि शराब अच्छी चीज नहीं है, जिसे हम प्रोत्साहन दें. लेकिन, शराबबंदी ही शॉल्यूशन है इसे मैं नहीं मानता.


प्रश्न : जमशेदपुर-सरायकेला में बच्चा चोर की अफवाह के बाद जो कुछ हुआ क्या यह कानून व्यवस्था की विफलता नहीं है? जबकि इससे पहले धनबाद-बोकारो क्षेत्र में ऐसा हो चुका था. इसे सिर्फ शिक्षा एवं संस्कार का दोष कैसे मान सकते हैं?


उत्तर : आप याद करें बेलछी कांड को. कितना बड़ा नरसंहार हुआ था? वहां भी पुलिस रही होगी. टेंशन था. फिर भी हुआ. यह सामाजिक समस्या है, लॉ एंड आॅर्डर की समस्या नहीं है. मुझे आश्चर्य होता है कि जब हम समाज के तौर पर इतने जागरूक हो गये हैं कि तीन तलाक मुद्दे पर खुली बहस हो रही है, उसे हर धर्म के लोग स्वीकार कर रहे हैं. ऐसे में वहां अफवाह में एक भीड़ के द्वारा लोगों की हत्या कर दी जाती है. मुझे जहां तक जानकारी है 18 लोगों की हत्या कर दी गयी. यह एक सामाजिक समस्या है. पुलिस प्रशासन अपना काम तोकरेगा, लेकिन इस सामाजिक समस्या के खिलाफ राजनीतिक, धार्मिक लोग और अन्य समाज के लोगों के सक्रिय होने की जरूरत है, ताकि यह अफवाह खत्म हो और उसके नाम पर लोग हिंसक न हों.


प्रश्न : आप संसदकीशहरी विकास समिति के सदस्य भी हैं. रांची स्वच्छता के पायदान पर पिछड़ गयी है. कोई समूह ओवर ब्रिज बनाने का विरोध करता है. रांची में बकरी बाजार व जयपाल सिंह स्टेडियम का विवाद है. इन सब के बीच रांची कैसे स्मार्ट सिटी बनेगी? मैं एक स्टोरी पढ़ रहा था कि हैदराबाद अकेले तेलंगाना का 40 प्रतिशत रेवेन्यू जेनरेट करता है. फिर यहां इतना कुछ होने पर…?


उत्तर : स्मार्ट सिटी का मतलब यह नहीं है कि शहर के हिस्से में एक नया शहर बसा दो और उसे स्मार्ट सिटी का नाम दे दो. जो समस्या आपने बतायी उन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए एक कंप्रिहेंसिव रास्ता, उपाय क्या निकाला जाये, जिसमें पुराना शहर नया शहर आगे आनेवाली बस्तियों का विकास हो. लोगों को रिहाइश की जरूरत पड़ेगी. यह एक तथ्य है. लोगों को अरबन ट्रांसपोर्ट की जरूरत है. जब से शहर बसने शुरू हुए तब से ये समस्याएं आती रहीं. फ्लाइओवर होना चाहिए, लेकिन जनता का विरोध हो रहा है, तो हम जनप्रतिनिधि को उनकी बातें सुननी होगी. इसमें सरकारी प्रशासन को लगाकर हम विकास का काम नहीं करा सकते. हमें उन्हें भी विकास के काम में पार्टनर बनाना होगा. जनसहभागिता भी स्मार्ट सिटी का बड़ा अंग है, इसमें कोई दो मत नहीं है.


अपर बाजार एक कारोबारी क्षेत्र है, जहां मकानों का घनत्व काफी अधिक है. वहां बकरी बाजार एकमात्र खुली जगह है. जैसे कोलकाता के बड़ा बाजार में बीच में खुली जगह है. वहां लोग सुबह कसरत करते हैं, बच्चे खेलते हैं, महिलाएं आती हैं. शाम में कथाएं होती हैं. मैं भी मानता हूं कि इस बकरी बाजार को हम खुला क्षेत्र रखें, उसको हम मार्केट बनाकर कंजस्टेड नहीं करें. जो भी लोग निर्णय लेने वाले हैं, वे मेरी भावनाओं को समझेंगे. इसी तरह जयपाल सिंह व बारी पार्क है, जिसे खुला रहने देना चाहिए. सरकार ही अपनी जगह खुली छोड़ सकती है. कोई निजी आदमी अपनी संपत्ति खुली नहीं छोड़ सकता है. आप कई शहरों कोलकाता, दिल्ली, बेंगलुरु, न्यूयार्क में देख लीजिए जिसमें शहर के बीच में पार्क हैं और उससे रास्ता जाता है.


प्रश्न : झारखंड की अावाज संसद में कैसे मुखर होगी? आप के जैसे कितने सांसद चाहिए होंगे?


उत्तर : मैं यह नहीं मानता हूं कि मैं ही मुखर हूं. झारखंड के और भी कई सांसद हैं, जो मुखर हैं. और, वहां छोटी-छोटी बातें उठती रहती हैं, जो हमें-आपको छोटी लगती हैं, लेकिन वे बहुत महत्वपूर्ण हैं. सारे सांसदों को बोलने का हक है. चूंकि मेरा आर्थिक क्षेत्र से जुड़ाव रहा है, तो मैं इन मुद्दों पर विश्वास के साथ बोलता हूं.


प्रश्न : किसी दिन आपको कार्यकारी अवसर मिले तो वे कौन-सी दो-तीन प्राथमिकताएं होंगी जिस पर आप पहले काम करना चाहेंगे?

उत्तर : बिजली पहली बात. दूसरा झारखंडियत. हम अब और अफोर्ड नहीं कर सकते कि झारखंड अपनी पहचान नहीं बना पाये. हमारी बातचीत, भाषा, खानपान, पोशाक हर चीज में झारखंडियत दिखनी चाहिए. और, यह एक बहुत बड़ा पक्ष है, जिससे राज्य की पहचान होती है. तीसरी चीज राष्ट्रीय कार्यक्रम बिजली, पानी, सड़क का अक्षरश: पालन. जिससे हर नागरिक का जीवन स्तर ऊपर हो. स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी हम काम कर रहे हैं, मकान बना रहे हैं. कैसे अधिक से अधिक डॉक्टर, स्वास्थ्य सेवा हम लोगों तक पहुंचा सकें. ये बेसिक चीजें है, जिसकी आपूर्ति या व्यवस्था करना पहली जरूरत है.


प्रश्न : जाते-जाते एक सवाल. कैसे आप राजनीतिक, कारोबारी और सामाजिक या आध्यात्मिक कार्य में तालमेल बैठाते हैं?


उत्तर : मैं तो बहुत छोटा आदमी हूं, आप कल्पना करें कि नरेंद्र मोदी जी कैसे देश चला रहे हैं. उनका कहना है कि जब लोगों के लिए काम करते हैं तो थकान नहीं होती है, यही तथ्य है औरों के लिए चिंता करते हैं तो शरीर मन नहीं थकता है. अपने व्यक्तिगत जीवन के कुछ समय सार्वजनिक जीवन में देने पड़ते हैं, और यह एक बदलाव करने से बहुत सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं. इसके लिए जरूरी है कि परिवार इसको स्वीकार करे.


फेसबुक लाइव के दर्शकों के सवाल


क्या राज्य सरकार केंद्र सरकार की योजनाओं की कॉपी कर रही है, जबकि लोकल इश्यू अलग हैं?


उत्तर : कोई भी अच्छी सरकार राष्ट्रीय योजना को लागू करती है. उसी को मैनेज करते हुए लोकल परिस्थितियां के अनुसार थोड़ा बहुत बदलाव करती है. राज्य सरकार स्थानीय मुद्दों पर जरूर काम करती है, लेकिन केंद्रीय योजनाओं को वह नकार नहीं सकती है.


इज ऑफ डूइंग बिजनेस कब तक दुरुस्त होगा?


उत्तर : इज ऑफ डूइंग बिजनेस पर चर्चा शुरू हुई है. वर्ल्ड बैंक ने कुछ पैरामीटर बनाये थे, झारखंड इसमें थर्ड हुआ, जिसमें श्रम विभाग का सबसे ज्यादा रोल था. इसके चलते मार्किंग अच्छी हुई थी. श्रम विभाग ने साधारण बदलाव किये पर वे इतने बड़े थे कि राज्य की सराहना हुई. अब राज्य इस दिशा में हर विभाग में काम करने की सोच रहा है. लेकिन, कोई स्पष्ट एजेंडा नहीं बना है कि किस विभाग में क्या-क्या करना है. कई सारे कानून हैं, जो खत्म किये जा सकते हैं. कई सारी चीजें एक साथ मर्ज की जा सकती हैं. मुझे विश्वास है कि 2019 के चुनाव में जाने से पहले ये चीजें पटरी पर हो जायेंगी.


इंस्पेक्टर राज कैसे खत्म होगा?


इंस्पेक्टर राज कम हुआ है. कुछ अति उत्साही अफसर कहीं अचानक पहुंच जाते हैं और यदा-कदा अपने अधिकार का उपयोग करते हैं. पर, सूचना मिलने पर मीडिया इतना जागरूक है कि उन पर अंकुश लग जाता है. ऐसे अपवाद होते हैं, लेकिन वे कम होंगे.

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