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1000 साल नहीं सड़ता पॉलिथीन, पूर्ण प्रतिबंध है जरूरी

रांची: झारखंड में पॉलिथीन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की कागजी घोषणा कई बार की जा चुकी है. प्रदूषण की वजह से पॉलिथीन के सार्वजनिक प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की जाती रही है. यह मिट्टी की उर्वरक क्षमता को प्रभावित करती है. शहरों व कस्बों में बहनेवाली नालियां पॉलिथीन की वजह से जाम […]

रांची: झारखंड में पॉलिथीन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की कागजी घोषणा कई बार की जा चुकी है. प्रदूषण की वजह से पॉलिथीन के सार्वजनिक प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की जाती रही है. यह मिट्टी की उर्वरक क्षमता को प्रभावित करती है. शहरों व कस्बों में बहनेवाली नालियां पॉलिथीन की वजह से जाम हो जातीं हैं, जिसकी वजह से बरसात के दिनों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हाे जाते हैं.

इन सबसे बचने के लिए पॉलिथीन के सार्वजनिक प्रयोग को प्रतिबंधित करने का प्रयास किया जाता रहा है, पर केवल सरकार द्वारा पॉलिथीन के इस्तेमाल पर प्रतिबंधित लगा देना ही उपाय नहीं है. पॉलिथीन के दुष्प्रभावों से बचने के लिए इसके निर्माण और इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध जरूरी है.

पॉलिथीन पर प्रतिबंध की बात होते ही केवल कैरी बैग का इस्तेमाल रोकने पर जोर दिया जाता रहा है. पॉलिथीन धरती, पर्यावरण व स्वास्थ्य सभी के लिए अत्यंत हानिकारक है. केवल कैरी बैग को प्रतिबंधित करने से समस्या का हल नहीं होगा. दरअसल देश में पॉलिथीन में आने वाले सामानों की लंबी सूची है. आम लोगों के दैनिक जीवन में प्रयोग होने ब्रेड, दूध, दही, लस्सी, चिप्स,नमकीन, बिस्कुट, गुटखा, शैंपू समेत अनेक वस्तुएं प्लास्टिक में पैक होती हैं. पर्यावरण बचाने के लिए इन सब पर पूर्ण प्रतिबंध जरूरी है.
बढ़ाता है भूस्खलन का खतरा : पॉलिथीन को सड़ने में 1,000 वर्ष तक लग जाते हैं. उपयोग के बाद ज्यादातर पॉलिथीन को यहां-वहां फेेंक दिया जाता है. जमीन में डंप रहते हुए यह जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म कर देती है. दिल्ली की संस्था पब्लिक इंटरेस्ट रिसर्च ग्रुप द्वारा किये गये एक अध्ययन के मुताबिक खेतों में अगर पॉलिथिन को डंप किया जाये, तो एक साल के भीतर ही जमीन बंजर हो जाती है. पहाड़ी इलाकों में होनेवाले भूस्खलन की बड़ी वजह पॉलिथिन ही है. जमीन में डंप होकर पॉलिथिन धरती को भुरभुरी बना देती है, जिससे जमीन धंसने लगती है. लैंड फिलिंग में पॉलिथीन का उपयोग होने के कारण समूचा भवन ही धंस जाने के कई उदाहरण मौजूद हैं.
पेड़-पौधों के लिए यमराज है पॉलिथीन : पॉलिथीन को पेड़-पौधों के यमराज की संज्ञा दी जा सकती है. जमीन में पड़ा पॉलिथीन पेड़-पौधों को पोषक तत्व लेने से रोकती है. इससे पौधों को आवश्यक आहार नहीं मिल पाता और कुछ ही दिनों बाद पौधा सूखने लगता है. एक अध्ययन के मुताबिक बीस किलोग्राम पॉलिथीन छह महीने से भी कम समय में 50 वर्ष पुराने बरगद का नाश करने की क्षमता रखती है.
कागज हो सकता है पॉलिथीन का विकल्प
कागज दुनिया भर में पॉलिथीन के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. जूट और कपड़ा भी पॉलिथीन का बेहतर विकल्प है. बड़ी कंपनियां ऐसे ही इको-फ्रेेंडली झोले में अपने ग्राहकों को सामान उपलब्ध करा रही हैं. खाद्य सामग्री रखने के लिए सिल्वर फ्वाइल का प्रयोग बड़ी मात्रा में होने लगा है. पिज्जा हट से लेकर निरूलाज और मैकडोनल्ड जैसे चेन रेस्तरां में पॉलिथीन का प्रयोग पूरी तरह बंद हो चुका है.
ठोंगा या लिफाफा निर्माण बन सकता है स्वरोजगार
पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगने के बाद ठोंगा या लिफाफा निर्माण का काम स्वरोजगार का अच्छा माध्यम बन सकता है. घर बैठे रद्दी कागज और आटे की लाई के प्रयोग से ठोंगा तैयार किया जा सकता है. विस्तृत बाजार मिलने पर घरों की महिलाएं भी यह काम आराम से कर सकती हैं. इसके अलावा कागज के डब्बे भी घरों में सहज ही तैयार किये जा सकते हैं. अभी भी राजधानी रांची समेत शहरों और कस्बों में ठोंगा और कागज के डब्बे बनाने का काम घरेलू महिलाएं कर रही हैं. इसके अलावा पॉलिथीन के विकल्प के रूप में दुनिया भर में जूट के थैलों का इस्तेमाल किया जाता है. पॉलिथीन पर प्रतिबंध मृतप्राय हो चुके जूट उद्योग में नयी जान डाल सकता है. जूट उद्योग में बड़ी संख्या में रोजगार उत्पन्न कर सकता है. बड़े पैमाने पर जूट की डिमांड किसान और मजदूर वर्ग को उत्साहित कर सकती है.

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