रांची: लगभग सभी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में महिलाओं की समस्याएं प्राथमिकता के तौर पर रखी जाती हैं. इन्हें बराबर का हिस्सेदार बताया जाता है, लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है, तो राजनीतिक दल पीछे हट जाते हैं. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से यहां दो बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. इनमें महिलाओं को हक नहीं दिया गया है.
यही वजह है कि संसद में उनकी उपस्थित नहीं के बराबर रहती है. हालांकि, राज्य की सभी बड़ी पार्टियों में महिला मोरचा काम कर रहे हैं. इन मोरचों का उपयोग सिर्फ वोट मांगने व प्रचार के लिए किया जाता है. जब चुनाव लड़ने की बारी आती है, तो पुरुष उम्मीदवारों की दावेदारी भारी पड़ती है. वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में झामुमो ने कोडरमा से चंपा वर्मा, भाजपा ने धनबाद से प्रो रीता वर्मा और जमशेदपुर से आभा महतो को टिकट दिया था.
वहीं कांग्रेस ने खूंटी से सुशीला केरकेट्टा को उम्मीदवार बनाया था. इनमें से सिर्फ सुशीला केरकेट्टा ही चुनाव जीत पायीं. इस चुनाव के बाद वर्ष 2009 में तो भाजपा और कांग्रेस की ओर से महिला उम्मीदवार दिया ही नहीं गया. सिर्फ झामुमो ने जमशेदपुर से सुमन महतो को टिकट दिया था. वहीं झारखंड जनाधिकार मंच ने लोहरदगा सीट से रमा खलखो को उम्मीवार बनाया था. शेष महिला उम्मीदवारों ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था. राजनीतिक दलों का भरोसा महिला उम्मीदवारों पर नहीं है. हालांकि, चुनाव में महिला वोटर अहम रोल अदा करती हैं. वर्ष 2004 में कुल वोट डालनेवाले मतदाताओं में महिलाओं का प्रतिशत 48.13 और वर्ष 2009 में इनका प्रतिशत 47.73 प्रतिशत था. आगामी लोकसभा चुनाव में भी महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं देखने को मिल रहा है. प्रत्याशी पद के दावेदारों में महिलाओं की उपस्थिति बहुत कम है.
लोकसभा चुनाव 2004
कुल मत पड़े : 7998175, महिलाओं का वोट : 3801786, महिला मतदाताओं का प्रतिशत 48.13
कुल उम्मीदवार : 182, पुरुष उम्मीदवार 169, महिला उम्मीदवार : 13
खूंटी से कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने जीत दर्ज की.
लोकसभा चुनाव 2009
कुल मत पड़े : 9135818, महिलाओं का वोट : 4033059, महिला मतदाताओं का प्रतिशत : 47.73
कुल उम्मीदवार : 249, पुरुष : 235, महिला उम्मीदवार : 14.
कोई भी महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पायी.