खंडपीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि बिना कोर्ट के आदेश का एक भी काम नहीं हो पाता है. पर्यटन विभाग के संयुक्त सचिव सुनवाई के दाैरान उपस्थित थे. खंडपीठ ने संयुक्त सचिव को बुला कर जानना चाहा कि विभागीय अधिकारी पर्यटन स्थलों पर जब कभी घूमने जाते हैं, तो वहां वे देखते नहीं हैं क्या. आंखें बंद कर घूमने जाते हैं.
अधिकारी अपने कॉमन सेंस से पर्यटन स्थलों पर एक शाैचालय का भी निर्माण नहीं करवा सकते हैं. इसके लिए भी उन्हें हाइकोर्ट का आदेश चाहिए. अधिकारी विकास का स्वांग नहीं करें, बल्कि पर्यटन स्थलों का वास्तविक रूप से विकास करें. यदि अधिकारी प्रति वर्ष 10 प्रतिशत भी काम करते, तो 10 वर्ष में कार्य पूर्ण हो जाता. खंडपीठ ने संयुक्त सचिव से पूछा, तो उन्होंने बताया कि संबंधित जिले के उपायुक्त के माध्यम से पर्यटन स्थलों पर विकास कार्य करवाया जाता है. इस पर खंडपीठ ने पूछा कि स्थल पर काम हुआ या नहीं, इसकी जांच करायी जाती है. अधिकारी ने नहीं में जवाब दिया. कहा कि जांच के लिए विभाग में अभियंता नहीं हैं. खंडपीठ ने पर्यटन स्थलों पर किये गये कार्यों की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, साथ ही उपयोगिता प्रमाण पत्र भी पेश करने को कहा.
खंडपीठ ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता को बुला कर पर्यटन स्थलों के विकास के लिए किये जा रहे कार्यों की जानकारी देने का निर्देश दिया. इससे पहले खंडपीठ ने सरकार को उपलब्ध सुविधाअों के साथ सभी पर्यटन स्थलों की सूची प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध हैं आैर क्या-क्या सुविधा उपलब्ध कराना बाकी है. इसके लिए कितनी राशि स्वीकृत है. कार्य कब शुरू होगा तथा कब पूरा होगा, इसकी भी जानकारी देने के लिए कहा गया. किन-किन स्थलों पर कार्य बाधित है. यदि कार्य पूरा हो गया है, तो विभाग ने उसकी जांच की है या नहीं. उपयोगिता प्रमाण पत्र दिया गया है अथवा नहीं. उपरोक्त बिंदुअों पर दो फरवरी तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी बबलू कुमार ने जनहित याचिका दायर कर पर्यटन स्थलों के विकास की मांग की है.