सरकार ने जून 2013 में भ्रष्टाचार के आरोप में इस जूनियर इंजीनियर को बरखास्त कर दिया था. कोडरमा जिला प्रशासन ने 2008-10 में इस इंजीनियर द्वारा की गयी गड़बड़ी के आरोप में कोडरमा थाने में वर्ष 2016 में प्राथमिकी(197/ 2016) दर्ज करायी. सात सितंबर 2016 में इस इंजीनियर के विरुद्ध तीन योजनाओं के लिए दिये गये अग्रिम में से 44.87 लाख रुपये का हिसाब नहीं देने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करायी. प्राथमिकी में उस पर जालसाजी का आरोप लगाया गया है. प्राथमिकी दर्ज कराये जाने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के बदले जमानत लेने के लिए मौका दिया. उसने कोडरमा के सत्र न्यायाधीश की अदालत में अग्रिम याचिका दायर की.
जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान इंजीनियर की ओर से यह तर्क दिया गया कि उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के दौरान जिला अभियंता ने तथ्यों को छिपाया. उसकी ओर से यह तर्क दिया गया कि पूरे मामले में सिर्फ 15.52 लाख रुपये की ही वसूली की जानी है. इस राशि का एक तिहाई अर्थात 5.17 लाख रुपये उसने जिला परिषद के खाते में जमा करा दिये हैं. इसलिए उसे अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए. याचिका का विरोध करते हुए सरकार की ओर से यह कहा गया कि एक योजना का पैसा दूसरी योजना में समायोजित नहीं किया जा सकता है. विवेकानंद को 2008-10 की अवधि में कुल 2.12 करोड़ रुपये का अग्रिम दिया गया था. मापी पुस्तिका के अनुसार इस राशि के मुकाबले 1.67 करोड़ रुपये का काम किया हुआ पाया गया. इसलिए उससे 44.87 लाख रुपये की वसूली की जानी है. कोडरमा के सत्र न्यायाधीश ने अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद याचिका खारिज कर दी.