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तेनुघाट : 906 क्वार्टरों में से 600 पर अवैध कब्जा

रांची : राज्य में एक अोर जमीन के लिए मारामारी है, दूसरी ओर तेनुघाट की 17634 एकड़ सरकारी जमीन का एक बड़ा भाग बेकार पड़ा हुआ है. इस पर अवैध कब्जा है. यहां स्थित सिंचाई विभाग के कुल 906 क्वार्टरों में से 600 पर कब्जा है. हद तो यह है कि जब ऐसे कब्जाधारी कहीं […]

रांची : राज्य में एक अोर जमीन के लिए मारामारी है, दूसरी ओर तेनुघाट की 17634 एकड़ सरकारी जमीन का एक बड़ा भाग बेकार पड़ा हुआ है. इस पर अवैध कब्जा है. यहां स्थित सिंचाई विभाग के कुल 906 क्वार्टरों में से 600 पर कब्जा है. हद तो यह है कि जब ऐसे कब्जाधारी कहीं बाहर जाते हैं, तो वे उस सरकारी आवास को किसी और को बेच देते हैं. अभी भी ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने किसी न किसी कब्जाधारी से आवास खरीदा है (सनद रहे ऐसे लोगों की संख्या कम है). खरीदारी कागज पर न होकर आपसी लेन-देन के माध्यम से होती है.
सिंचाई विभाग करता है बिजली का भुगतान : हालात यह है कि वर्षों से यहां के लोग बिजली भी सिंचाई विभाग का ही जलाते रहे हैं. वर्ष 2010 तक यहां सिंचाई विभाग के पास एक जगह ही बिजली बिल आता था, विभाग अलग से एक रसीद लोगों में बंटवा कर बिजली का पैसा वसूलता था, पर पूरा पैसा कभी नहीं मिला.
इस कारण वर्ष 2002 में सिंचाई विभाग ने बिजली विभाग को लिख कर दिया कि उसे उतनी बिजली नहीं चाहिए, इसी दौरान इलाके में रहनेवाले वकीलों ने अलग बिजली कनेक्शन की मांग की, इस पर वर्ष 2010 में अलग कनेक्शन के लिए लोगों से आवेदन मांगा गया, पर आज भी महज 350 लोगों ने (इसमें अधिकतर वकील हैं) अलग कनेक्शन लिया है. अधिकतर अवैध रूप से ही बिजली जलाते हैं. इसका भुगतान सिंचाई विभाग करता है.
बिना किराया दिये चला रहे दुकान : जानकारों के अनुसार, इलाके से लाखों रुपये की मशीन व अन्य सामान चोरी हो गये. पर सिर्फ दो बार चोरी की प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है. वर्तमान स्थिति यह है कि यहां सिंचाई विभाग के मात्र 60 कर्मी हैं, पर अन्य लोग इसके संसाधनों का दोहन कर रहे हैं. तेनुघाट मुख्य चौक के दुकानदार भी वर्षों से बिना किराया दिये दुकान चला रहे हैं. 1996 में तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी ने एक विकास समिति बना कर यहां दुकानों का निर्माण कराया था, इसमें स्थानीय लोगों के पैसे लगे थे, तय हुआ था कि समिति के माध्यम से किराया वसूला जायेगा, पर आज तक किराया नहीं वसूला जा सका.
संसाधन की स्थिति बेहाल : दूसरी ओर विभाग के अपने संसाधन की स्थिति बेहाल है. इलाके की सड़कें टूटी हुई हैं. बोकारो तक जानेवाली नहर की स्थिति भी जर्जर है. विभाग की एकमात्र बरसों पुराने स्कूल नदी घाटी योजना उच्च विद्यालय बंद है. विभाग के कागज पर स्कूल चल रहा है, पर हकीकत में यहां न तो शिक्षक हैं और न ही कोई बच्चा. स्कूल के संचालन के लिए विभाग ने मानव संसाधन विभाग को पत्र भी दिया था, पर कोई मदद नहीं की और स्कूल बंद हो गया.
कुछ लोगों को आवंटित किया गया है आवास : इसी प्रकार सिंचाई विभाग का नौलखा (1965 में नौ लाख में बना था) गेस्ट हाउस, वर्कशॉप, पेयजलापूर्ति व्यवस्था सबकुछ खराब स्थिति में हैं. कुछ लोगों को आवास विभाग ने आवंटित भी किये हैं, इनमें शामिल हैं तेनुघाट कोर्ट के न्यायिक पदाधिकारी, वकील, सदर अनुमंडलाधिकारी के कार्यालय व कोर्ट के कर्मी, बैंककर्मी, दो निजी स्कूल के कर्मी व कुछ अन्य लोग. कोर्ट, बैंक, स्कूल व अन्य सरकारी कार्यालय भी सिंचाई विभाग के आवास या जमीन पर चल रहे हैं. इस संबंध में तेनुघाट बांध प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता एके झा कहते हैं कि उन्होंने विभाग को 600 क्वार्टरों के कब्जा होने की सूचना दे दी है. बेकार पड़े मशीन और अन्य सामान के लिए इ-अॉक्शन किया गया है. पर स्थिति कुछ और है. आज तेनुघाट का जनजीवन, व्यवसाय यहां के कोर्ट पर निर्भर है. कोर्ट बंद, तो तेनुघाट बंद की स्थिति है. बांध प्रमंडल का कोई नया काम इलाके में नहीं है, कुछ काम है भी तो वह मरम्मत और देखरेख का. यहां से राज्य सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व (100 करोड़ रुपये सालाना) की प्राप्ति होती है. इसके बाद भी सिंचाई विभाग की चिंता का विषय यह इलाका नहीं है. यहां पर कुछ नया नहीं होने जा रहा. पर दूसरी ओर राज्य के जानकार और इलाके के प्रबुद्ध लोग कहते हैं कि यहां की जमीन विवादित नहीं है, सारी सुविधाएं भी हैं, ऐसे में यहां पर विश्वविद्यालय, अस्पताल या अन्य कोई संस्थान खोल सकती है सरकार. ऐसा करने से न सिर्फ इलाके का विकास होगा, बल्कि जमीन के लिए होनेवाले संघर्ष से भी मुक्ति मिल सकती है. सनद रहे कि तेनुघाट डैम बनने के बाद से यहां के विस्थापित लगातार मुआवजे और नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस कारण कई बार तेनु नहर को काटने से लेकर पानी रोकने की घटना हो चुकी है. यहां विश्वविद्यालय, अस्पताल या अन्य कोई केंद्र खुलने से इस समस्या का भी समाधान होगा. इन्हें नौकरी मिलेगी.
एग्जीक्यूटिव इंजीनियर एके झा से सवाल
आपको पता है कि सिंचाई विभाग के क्वार्टरों पर अवैध कब्जा है? अगर पता है तो आपने क्या किया?
जी, मेरे यहां 600 आवासों पर कब्जा है. इसकी सूची मुख्यालय को भेज दी गयी है.
क्या लोग सिंचाई विभाग की बिजली चोरी कर जलाते हैं?
नहीं, कैसे जलाते हैं पता नहीं.
क्या आपको पता है कि सरकारी घर काे कब्जाधारी बेचते हैं?
नहीं, इसकी जानकारी नहीं है. यह गलत सूचना है.
सरकारी जमीन पर दुकानें बनवायी गयी और यह तय हुआ था कि किराया वसूला जायेगा, क्या कभी किराया वसूल किया जा सका?
एसडीअो के माध्यम से दुकानें बनी थी और समिति के माध्यम से किराया वसूला जाना था, पर आज कर नहीं वसूला जा सका.
इस मामले में आपने क्या किया?
मैंने सूचना विभाग को दे दी है.
इलाके से डेड एसेट चोरी होते रहे हैं, आपको इसकी जानकारी है और है तो क्या किया?
दो बार चोरी की प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है. इ अॉक्शन किया जा रहा है.
तेनुघाट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कुमार अनंत मोहन सिन्हा (अंतू बाबू) ने कहा
इस इलाके में विकास की असीम संभावनाएं हैं, गंभीर प्रयास की जरूरत है. तेनुघाट व आसपास के इलाके में कम आबादी और ऊसर जमीन ज्यादा है, सबको एक कर के बेहतर विकास का काम किया जा सकता है. यहां अवैध रूप से रहने के लिए लोग विवश हैं, क्योंकि विभाग ने लीज पर नहीं दिया और यहां कई विभाग खोल दिये. जब लोग काम करने आयेंगे तो फिर रहने की जगह तो चाहिए ना. कोर्ट खुला तो हाइकोर्ट व बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे व सिंचाई मंत्री रामाश्रय प्रसाद सिंह ने भी वकीलों और संबंधित लोगों को यहां रहने देने को कहा था. दोनों ने एसडीओ के अॉडरसीट पर सहमति दी थी. इसके बिना पर यहां लोग रहने लगे. पर यहां का विकास होना जरूरी है. यहां के लोग विकास के पक्षधर हैं, पर यहां के लोगों को भी रहने के लिए लीज पर जमीन दी जाये. जब लोग रहेंगे तो दुकानें खुलेंगी ही, पर उनके लिए भी सही व्यवस्था की जरूरत है.
(साथ में तेनुघाट से राकेश वर्मा)
एक नजर तेनुघाट पर
तेनुघाट में सिंचाई विभाग का डिवीजन 1965 में मुख्यमंत्री केबी सहाय के समय बना. बोकारो स्टील प्लांट को पानी देने के उद्देश्य से इस डैम का निर्माण किया गया. 1965 में बीएसएल बना और 1972 से तेनुघाट में डैम व कैनाल शुरू हुआ. 1965 में तेनुघाट सिंचाई विभाग में 10 डिवीजन चलता था. डैम का काम पूरा होने के बाद काफी लोग चांडिल चले गये. पूर्व में सिंचाई विभाग में कर्मियों की संख्या लगभग 10 हजार थी, वर्तमान मेें लगभग 60 है. एशिया का सबसे बड़ा अर्थन (मिट्टी डैम) है यह. इसमें 10 फाटक है. सात किमी मिट्टी का बांध है. पहले सिंचाई विभाग के 10 हजार लोगों के लिए पीने का पानी, रहने का क्वार्टर, अस्पताल, गेस्ट हाउस सहित कई सुविधा थी, अब यह सब भी बंद है. दो साल से यहां का भव्य नदी-घाटी परियोजना स्कूल भी बंद है. लाखों की मशीनें, यांत्रिक कर्मशाला सब बरबाद हो गयी.

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