ब्रांडेड दवाअों से इनकी कीमत करीब एक चौथाई कम होती है. इससे पहले राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने भी अपने चिकित्सकों को जेनेरिक दवा लिखने तथा दवाअों के नाम कैपिटल लेटर में लिखने का निर्देश दे रखा है. हालांकि इस अादेश का भी अभी पूरी तरह पालन नहीं हो रहा है. उधर, देश भर में ब्रांडेड दवाअों की संख्या करीब 80 हजार है. इनमें से कई के नाम में मामूली फर्क है. स्पष्ट तरीके से दवाअों के नाम न लिखे रहने से कई मरीजों का जीवन संकट में पड़ने की खबर अाती रहती हैं.
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जेनेरिक नाम ही लिखें डॉक्टर
रांची: एमसीआइ ने डॉक्टरों को निर्देश दिया है कि वे दवाअों के नाम कैपिटल लेटर (बड़े अक्षरों) में स्पष्ट तरीके से लिखें. साथ ही उनसे दवाअों के तार्किक इस्तेमाल सुनिश्चित करने की बात भी कही गयी है. करीब दो माह पहले 26 सितंबर को जारी इस अधिसूचना का प्रकाशन भारत के गजट में भी कर […]
रांची: एमसीआइ ने डॉक्टरों को निर्देश दिया है कि वे दवाअों के नाम कैपिटल लेटर (बड़े अक्षरों) में स्पष्ट तरीके से लिखें. साथ ही उनसे दवाअों के तार्किक इस्तेमाल सुनिश्चित करने की बात भी कही गयी है. करीब दो माह पहले 26 सितंबर को जारी इस अधिसूचना का प्रकाशन भारत के गजट में भी कर दिया गया है. इस तरह यह निर्देश अब पूरी तरह प्रभावी है. हालांकि, झारखंड में खास कर निजी चिकित्सकों पर इस निर्देश का असर फिलहाल नहीं दिखता. न ही एमसीआइ के झारखंड चैप्टर ने चिकित्सकों को इसकी याद दिलायी है.
सस्ती होती हैं जेनेरिक दवाएं, गुणवत्ता ब्रांडेड जैसी : जेनेरिक दवाएं गुणवत्ता के मामले में ब्रांडेड दवाअों से कहीं कम नहीं होती. बस ब्रांड के प्रचार-प्रसार पर होने वाला खर्च जेनेरिक नाम पर नहीं होने से ये दवाएं सस्ती होती हैं.
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